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परस्पर साझेदारी बढ़ाए ब्रिक्स

भारत की नजर एक सम्यक व्यवस्था बनाने की है. न रूस के विरोध में और न ही अमेरिका के गठजोड़ में.

ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का 14वां शिखर सम्मेलन 23 जून को बीजिंग में वर्चुअल माध्यम से आयोजित होगा. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में हो रही इस शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो एवं दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा शामिल होंगे. इसका विषय ‘उच्च गुणवत्ता वाली ब्रिक्स साझेदारी को बढ़ावा देना, वैश्विक विकास के लिए एक नये युग की शुरुआत’ है.

टिकाऊ विकास के लिए 2030 के एजेंडा को संयुक्त रूप से लागू करने और वैश्विक विकास साझेदारी को बढ़ावा देने जैसे विषयों पर वार्ता होगी. इससे पहले ब्रिक्स विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (एनएसए) की बैठकें हो चुकी हैं. पांच देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों ने विचारों का आदान-प्रदान किया और बहुपक्षवाद तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के नये खतरों एवं चुनौतियों का जवाब देने जैसे मुद्दों पर आम सहमति जतायी.

एनएसए अजित डोभाल ने बिना किसी भेदभाव के आतंकवाद के खिलाफ सहयोग बढ़ाने का आह्वान किया. वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय समन्वय की भूमिका को बनाये रखने पर चर्चा हुई. साथ ही समावेशी, प्रतिनिधि और लोकतांत्रिक वैश्विक इंटरनेट शासन प्रणाली का आह्वान किया गया. इससे पहले, विदेशमंत्री एस जयशंकर ने 19 मई को चीनी समकक्ष वांग यी के साथ ब्रिक्स विदेशमंत्रियों की डिजिटल बैठक में भाग लिया था. ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक मजबूत संगठन बन रहा है. लेकिन, सच कुछ और भी है.

बीस साल पहले ब्रिक्स की सैद्धांतिक पहल अमेरिका जनित आर्थिक ढांचे से हटकर एक वैकल्पिक आर्थिक व्यवस्था बनाने के लिए हुई थी. सोच बेहतर थी, लेकिन ढंग से काम नहीं हुआ. वर्ष 2009 से लेकर 2022 के बीच में ब्रिक्स के औचित्य पर ही सवाल खड़ा होने लगा. 24वां शिखर सम्मेलन कई कारणों से महत्वपूर्ण होगा. आशंका है कि विस्तार की आड़ में कहीं विघटन न शुरू हो जाये. इसके अनेक कारण हैं.

पहला, चीन अपने नक्शे कदम पर ब्रिक्स का विस्तार चाहता है. वह कुछ देशों को ब्रिक्स में शामिल करना चाहता है. इसमें एक इंडोनेशिया भी है. इंडोनेशिया के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं. चीन नाइजीरिया और सेनेगल को शामिल करने की कोशिश करेगा. दक्षिण अफ्रीका की अनुशंसा के बिना इन्हें खेमे में लेना ब्रिक्स के विघटन का कारण बन सकता है. उसी तरह अर्जेंटीना से ब्राजील के संबंध अच्छे नहीं हैं. चीन एक नये खेमे की व्यूह रचना करने की कोशिश में है, जो अमेरिकी सांचे में खलल पैदा कर सके.

दूसरा, ब्रिक्स का आर्थिक आधार अभी भी बहुत कमजोर है. वहीं इन पांच देशों की आबादी तकरीबन दुनिया की आधी आबादी है. वैश्विक जीडीपी में 25 प्रतिशत हिस्सा है. फिर भी 15 वर्षों में इसकी धार कुंद हुई है. पच्चीस ट्रिलियन आर्थिक व्यवस्था में करीब 17 ट्रिलियन हिस्सा अकेले चीन का है और 3.5 ट्रिलियन के साथ भारत दूसरे स्थान पर है. शेष तीन देशों की स्थिति बेहद नाजुक है.

वैश्विक महामारी में ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका काफी पीछे रह गये. चीन की आर्थिक स्थिति उन तीनों देशों से 10 गुना ज्यादा बड़ी है. आर्थिक विकास में तीनों देश सुस्त पड़ गये हैं. आपसी व्यापार मुश्किल से 20 फीसदी है. क्या उम्मीद की जा सकती है कि ब्रिक्स, यूरोपीय समूह या जी-7 की बराबरी कर पायेगा.

तीसरा, यूक्रेन युद्ध ने नयी मुसीबत खड़ी कर दी है. विश्व पुनः दो खंडों में विभाजित हो गया है. पेट्रोलियम और गैस की कीमतों में इजाफा हो रहा है. फरवरी तक अंतराष्ट्रीय बाजार नियंत्रित था. लेकिन, युद्ध से स्थिति बदल गयी है. दरअसल, चीन इसे लेकर चौकड़ी बनाने की कवायद में लगा है.

रूस आर्थिक तौर पर कमजोर है, युद्ध ने उसे और जर्जर बना दिया है, इसलिए रूस को लेकर चीन ऐसी टीम बनाना चाहता है, जो उसे दुनिया का मठाधीश बनाने का स्वप्न पूरा कर सके. इसके लिए वह अमेरिका से ताइवान पर युद्ध के लिए भी आमादा है. चौथा, चीन की विस्तारवादी नीति दुनिया के सामने है. श्रीलंका, पाकिस्तान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देश चीनी दंश को झेल रहे हैं. भारत और चीन के बीच 2020 से संघर्ष की स्थिति बनी हुई है.

चीन की नजर में सीमा विवाद कोई मसला नहीं है. लेकिन, चीन को लेकर भारत सतर्क है. चीन ने पिछले कुछ वर्षों में जिस तरीके से विश्व की व्यवस्था को अपने तरीके से संचालित करने की साजिश रची है, उससे दुनिया सहमी हुई है. पांचवां, यूक्रेन युद्ध को लेकर चीन भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करेगा कि भारत, रूस और चीन के पक्ष में दिखे. भारत किसी खेमे में नहीं बंधना चाहता. अन्य देश भी भारत की तरह न्यूट्रल रहने की कोशिश में होंगे.

अगर चीन और रूस के दबाव में कुछ गलत निर्णय लिये जाते हैं, तो ब्रिक्स की सार्थकता और ढीली पड़ जायेगी. रूस-यूक्रेन जंग के बीच भारत महाशक्तियों के केंद्र में है. प्रमुख देशों की नजर भारत पर टिकी है. भारतीय कूटनीति के लिए यह अग्निपरीक्षा है. भारत को दुविधा और दबाव में डालने का खेल जारी है. हालांकि, भारत अपने स्‍टैंड पर कायम है.

भारत ने शुरू से साफ कर दिया है कि रूस-यूक्रेन जंग के दौरान उसकी विदेश नीति तटस्‍थता की है और रहेगी. इसके साथ राष्‍ट्रीय हितों के अनुरूप भारत की विदेश नीति स्‍वतंत्र है. आखिर विदेश मंत्रियों की यात्रा का मकसद क्‍या है. अचानक दुनिया की महाशक्तियों का केंद्र भारत क्‍यों बना? इसके पीछे वजह क्‍या है? क्‍या भारत रूस-यूक्रेन जंग में मध्‍यस्‍थ बन सकता है? रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने भारतीय विदेश नीति को क्‍यों सराहा.

ब्रिक्स सम्मेलन के कुछ ही दिन बाद प्रधानमंत्री मोदी जी-7 की बैठक में शिरकत करेंगे. इसमें ब्रिक्स से बिल्कुल विरोधी टीम होगी, इसलिए भारत की नजर एक सम्यक व्यवस्था बनाने की है. न रूस के विरोध में और न ही अमेरिका के गठजोड़ में. एक स्वतंत्र इकाई बनाने की पहल, जिसमें मिडिल पॉवर की विशेष अहमियत होगी. ब्रिक्स की बनावट भी भारत उसी रूप में चाहता है, लेकिन चीन इसे हथियार के रूप में प्रयोग करना चाहता है. इसलिए इस बात की पूरी उम्मीद है कि ब्रिक्स का विस्तार नहीं बल्कि विघटन शुरू हो सकता है, जिसके लिए दोषी चीन होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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