CP Radhakrishnan : जगदीप धनखड़ के औचक इस्तीफे से खाली हुए उपराष्ट्रपति पद को नया चेहरा मिल गया है. दक्षिण बनाम दक्षिण की जंग में तमिलनाडु भाजपा का चेहरा रहे सीपी राधाकृष्णन देश के नये उपराष्ट्रपति होंगे. झारखंड की धरती से द्रौपदी मुर्मू की तरह उनका भी नाता रहा है. झारखंड की राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू देश के शीर्ष संवैधानिक पद पर हैं. निर्वाचित उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन भी झारखंड के संवैधानिक प्रमुख के पद की शोभा बढ़ा चुके हैं.
राधाकृष्णन तमिलनाडु की तीसरी शख्सियत हैं, जो उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने में कामयाब हुए. इससे पहले तमिलनाडु के सर्वपल्ली राधाकृष्णन और आर वेंकटरमण उपराष्ट्रपति रह चुके हैं. नरेंद्र मोदी के उभार के पहले तक भाजपा की छवि ब्राह्मण-बनिया समुदायों की बुनियाद पर टिकी उत्तर भारतीय पार्टी की रही. मोदी की राजनीतिक छाया में भाजपा ने इस छवि को काफी हद तक तोड़ते हुए अपनी अखिल भारतीय छवि बनायी है. इसके बावजूद तमिलनाडु, केरल और पंजाब जैसे राज्यों में भाजपा की प्रभावी उपस्थिति नहीं बन पायी है. इनमें भी खासकर तमिलनाडु पार्टी के लिए अब भी प्रश्न प्रदेश बना हुआ है. तमिलनाडु में अपना समर्थक आधार बढ़ाने के लिए भाजपा प्रयोग-दर-प्रयोग कर रही है. राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना और उन्हें चुनाव जिताना उसी प्रयोग का विस्तार कहा जा सकता है.
सीपी राधाकृष्णन के सामने उपराष्ट्रपति के रूप में कुछ चुनौतियां जरूर रहेंगी. राधाकृष्णन कामचलाऊ हिंदी समझ तो लेते हैं, दो-एक लाइनें बोल भी लेते हैं. उपराष्ट्रपति के रूप में राधाकृष्णन की जिम्मेदारी राज्यसभा की कार्यवाही चलाना होगी. राज्यसभा में ज्यादातर सांसद हिंदीभाषी हैं. वे अपनी बात हिंदी में रखते हैं, बहसें हिंदी में करते हैं और हंगामा भी हिंदी में करते हैं. ऐसे में, राधाकृष्णन को मेहनत करनी होगी. वैसे वह कहते रहे हैं कि राजनीति में अखिल भारतीय छवि बनाने के लिए हिंदी बोलना जरूरी है. वह तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति की तरह हिंदी के विरोधी नहीं है. वह हिंदी सीखना चाहते थे, पर ऐसा नहीं हो पाया. अब उन्हें कामचलाऊ से कुछ ज्यादा हिंदी तो सीखनी ही पड़ेगी. मोदी और शाह की जोड़ी ने तमिलनाडु को साधने के लिए रणनीतिक तौर पर खूब कोशिशें की हैं. संसद के नये भवन में तमिल राजदंड के प्रतीक सेंगोल की स्थापना हो या वाराणसी में तमिल-काशी संगम का आयोजन हो, ये तमिल जनमानस तक मोदी और भाजपा की बैठ बढ़ाने की कोशिश का ही प्रतीक हैं.
सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु में भाजपा का बड़ा चेहरा रहे हैं. छात्र राजनीति से आये राधाकृष्णन 1998 और 1999 में कोयंबटूर से भाजपा के सांसद रहे. वह तमिलनाडु में तमिल मोदी के तौर पर भी प्रसिद्ध हैं. सीपी राधाकृष्णन राज्य में पिछड़े वर्ग में शामिल गौंडर जाति से आते हैं. इस जाति के वोटर कन्नड़ ब्राह्मण महिला जे जयललिता की अन्नाद्रमुक के समर्थक माने जाते हैं. अन्नाद्रमुक की अगुवाई कर रहे पलानिसामी और भाजपा के फायरब्रांड नेता अन्नामलाई भी इसी बिरादरी के हैं. इस लिहाज से सीपी राधाकृष्णन को शीर्ष पर बैठाकर भाजपा ने गौंडर समुदाय को साधने की कोशिश की है. राधाकृष्णन के वैसे तो राज्य के तकरीबन हर दल के शीर्ष नेतृत्व से बेहतर संबंध है, पर वह अन्नाद्रमुक के बेहद करीबी रहे हैं. बहरहाल, राधाकृष्णन के उपराष्ट्रपति बनने के बाद अन्नाद्रमुक को एक तरह से साथ आने का भी संदेश है, क्योंकि भाजपा को भी आभास है कि तमिलनाडु की राजनीति में शीर्ष स्थान पर अकेले पहुंचना फिलहाल संभव नहीं है.
आजादी के बाद से ही तमिलनाडु की राजनीति में पिछड़े और दलित समुदाय का प्रभुत्व रहा है, जबकि अगड़ा समुदाय किनारे पर है. तमिलनाडु में भाजपा की छवि सवर्ण जातियों की उत्तर भारतीय पार्टी की है. उस राज्य में भाजपा के उभार में यह बड़ी बाधा रही है. ऐसे में, गौंडर समुदाय के राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने एक तरह से अपनी छवि तोड़ने की कोशिश की है. बेशक गौंडर समुदाय बहुत बड़ा नहीं है. लेकिन उसकी शख्सियत को देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंचाकर मोदी-शाह की जोड़ी ने एक तरह तमिलनाडु के पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को संकेत दिया है कि भाजपा उनकी वैचारिकी और सोच का सम्मान करती है. यह भी ध्यान देने की बात है कि केरल में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सीपी राधाकृष्णन केरल भाजपा के प्रभारी थे.
राधाकृष्णन जिस तिरुपुर इलाके से आते हैं और जिस कोयंबटूर के सांसद रहे हैं, वह केरल के नजदीक है. यानी भाजपा ने उन्हें उपराष्ट्रपति बनाकर केरल को भी साधने की कोशिश की है. तमिलनाडु और केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. तमिलनाडु में जिस गठबंधन के पास 35 प्रतिशत वोट होगा, उसकी जीत सुनिश्चित है. पिछले लोकसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक को करीब 20.5 प्रतिशत वोट मिले थे. अन्नाद्रमुक के साथ राज्य में उसका गठबंधन बन चुका है. पिछले लोकसभा चुनाव में मिले दोनों के वोट को जोड़ दें, तो यह तकरीबन 32 प्रतिशत होता है. सीपी राधाकृष्णन के चेहरे के सहारे भाजपा अपने गठबंधन के वोट प्रतिशत में पांच फीसदी की वृद्धि करने की तैयारी में है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

