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चुनाव से पहले अन्नाद्रमुक में एकजुटता की कोशिश, पढ़ें आर राजगोपालन का लेख

AIADMK : सेंगोट्टायन ने ओणम के दिन आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के विभाजित गुटों को एक मंच पर आने के लिए दस दिन का अल्टीमेटम दिया. इससे कई तरह की बातें चल रही हैं. क्या अन्नाद्रमुक की आपसी कोशिशों से विभिन्न गुटों में विभाजित पार्टी एकजुट होगी या फिर इसके लिए फिर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, खासकर अमित शाह को सक्रिय होना होगा? हालांकि कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सहमति बनाने का काम आसान नहीं होगा.

AIADMK : तमिलनाडु में विगत शुक्रवार को एक बार फिर अन्नाद्रमुक के बागी गुटों से एक साथ आने का आह्वान किया गया. ओणम के दिन पूर्व मुख्यमंत्री (स्वर्गीया) जयललिता के परम निष्ठावान और भरोसेमंद सेंगोट्टायन ने उनके प्रति श्रद्धा रखने वाले पार्टी नेताओं को एकजुट होने के लिए चेताया. सेंगोट्टायन अन्नाद्रमुक के संस्थापक सदस्यों में से है. हालांकि जयललिता की मृत्यु के बाद जातिगत विवादों और आपसी अहंकार में यह पार्टी तीन गुटों में बंट चुकी है. जयललिता की मृत्यु के बाद पलानीस्वामी ने अन्नाद्रमुक की सरकार सफलतापूर्वक चार साल तक चलायी थी. तब प्रधानमंत्री मोदी ने पलानीस्वामी की सरकार चलाने में काफी मदद की थी.

यहां यह बताना भी आवश्यक है कि 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह अन्नाद्रमुक के विभिन्न गुटों को एक साथ लाने के लिए एक फॉर्मूला लेकर आये थे. तब अमित शाह की पहल के बावजूद मेल-मिलाप के लिए की जाने वाली बातचीत विफल हो गयी थी. लेकिन तमिलनाडु में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए अन्नाद्रमुक के अलग-अलग गुटों के एकजुट होने की आवश्यकता फिर से महसूस की जा रही है. जाहिर है, अन्नाद्रमुक की एकजुटता ही आने वाले विधानसभा चुनाव में उसकी जीत की संभावना को प्रशस्त करेगी. यह भी स्पष्ट है कि तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की संभावित जीत से ही एनडीए, खासकर भाजपा को दक्षिण भारत में अपने पैर पसारने में मदद मिल सकती है.


सेंगोट्टायन ने ओणम के दिन आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के विभाजित गुटों को एक मंच पर आने के लिए दस दिन का अल्टीमेटम दिया. इससे कई तरह की बातें चल रही हैं. क्या अन्नाद्रमुक की आपसी कोशिशों से विभिन्न गुटों में विभाजित पार्टी एकजुट होगी या फिर इसके लिए फिर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व, खासकर अमित शाह को सक्रिय होना होगा? हालांकि कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर सहमति बनाने का काम आसान नहीं होगा. जैसे, आगामी विधानसभा चुनाव में अन्नाद्रमुक की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा? क्या बागी गुट पलानीस्वामी को मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर स्वीकार करेंगे? हालांकि अन्नाद्रमुक के अंदरूनी विवाद में अभी तक अदालत और चुनाव आयोग का फैसला पलानीस्वामी गुट के पक्ष में रहा है, इसलिए वह सबसे मजबूत स्थिति में हैं. एक प्रश्न यह भी है कि पन्नीरसेलवम और टीटीवी दिनाकरण के मामले में पार्टी का क्या रुख रहेगा? क्या ये दोनों नेता पलानीस्वामी के अधीन काम करना स्वीकार करेंगे? और क्या दिनाकरण अपने गुट को पलानीस्वामी के गुट में शामिल करने को राजी होंगे?

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेंगोट्टायन ने यह स्वीकार किया कि भाजपा नेताओं के बुलावे पर पार्टी को एकजुट करने की कोशिश के बारे में बातचीत करने के लिए वह हाल ही में नयी दिल्ली गये थे. दरअसल भाजपा अपनी तरफ से भरपूर कोशिश कर रही है कि विधानसभा चुनाव से पहले अन्नाद्रमुक में सब ठीक हो जाये. लेकिन क्या अन्नाद्रमुक में एकजुटता की कवायद बाहरी प्रयासों से सफल हो सकेगी? इसका जवाब हां है. अगर फिल्म अभिनेता विजय जोसफ के नेतृत्व वाली तमिल वेत्री कझगम राज्य के 234 विधानसभा क्षेत्रों का सघन दौरा शुरू करे, तो फिर अन्नाद्रमुक के लिए परेशानी बढ़ सकती है. एक बात और है, जो पार्टी की एकता के लिए बाहरी कोशिशों का औचित्य ठहराती है. वह यह है कि अन्नाद्रमुक को एकजुट करने की अमित शाह की कवायद निश्चित तौर पर राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक को कमजोर करेगी, जिसका असर विधानसभा चुनाव के नतीजे पर पड़ने की उम्मीद है.


इस बीच तमिलनाडु के भाजपा नेता नयनार नगेंद्रन ने सेंगोट्टायन का समर्थन किया है. इससे भी स्पष्ट है कि अन्नाद्रमुक के आपसी विवाद सुलझाने की गंभीर कोशिश भाजपा की तरफ से की जा रही है. हालांकि एक आशंका यह भी जतायी जा रही है कि अपने विरोधियों को खामोश करने के लिए पलानीस्वामी क्या सेंगोट्टायन को पार्टी से निलंबित करने का कदम उठा सकते हैं. यह आशंका इसलिए है, क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी के भाजपा के साथ रिश्ते बहुत सहज नहीं हैं. उन्होंने कई बार जताया है कि भाजपा के साथ गठबंधन में वह झुकने वाले नहीं हैं. भाजपा भी पलानीस्वामी के रुख से बहुत खुश नहीं लगती. इसके बावजूद पलानीस्वामी सेंगोट्टायन के खिलाफ कदम नहीं उठायेंगे. वह फिलहाल पार्टी में अपने विरोधियों की संख्या बढ़ाना नहीं चाहते, क्योंकि चुनाव के बाद आवश्यकता पड़ने पर सरकार बनाने के लिए उन्हें हर किसी के समर्थन की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए वह फिलहाल नरम रुख अपनाना चाहेंगे. दूसरी तरफ राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक विपक्षी पार्टी में व्याप्त असहमति को देखकर संतुष्ट है. इस कारण वह अन्नाद्रमुक में एकजुटता की कोशिशों का विरोध करेगी. अन्नाद्रमुक में एकता की चाहे जितनी भी बातें क्यों न की जाये, लेकिन आगे का रास्ता उतना सहज भी नहीं है. यह देखने वाली बात होगी कि अन्नाद्रमुक एकजुट हो पाती है या नहीं. विधानसभा चुनाव से पहले तमिलनाडु का राजनीतिक माहौल बेहद दिलचस्प बन गया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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