11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कजाखस्तान की अशांति

कजाख्स्तान में हुए सामूहिक दंगों की कजाख कानून प्रवर्तन जांच करेगा और इसकी रिपोर्ट पेश करेगा. कजाख सरकार इस घटना को तख्तापलट की साजिश मान रही है. जबकि यह सच नहीं है.

कजाखस्तान मध्य एशिया का सबसे बड़ा देश है. क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया का नौवां सबसे बड़ा देश. ब्रिटेन से तकरीबन पांच गुना बड़ा. हालांकि,आबादी एक चौथाई ही है. इसकी भू-राजनीतिक स्थिति इस देश को अहम बनाती है. इसके उत्तर में रूस है, जिसके साथ इसकी करीब 7600 किलोमीटर की लंबी सीमा है. पूर्व में चीन की सीमा मिलती है.

वर्ष 1990 तक मध्य एशिया सोवियत रूस के अंतर्गत था. उस समय सैनिक दृष्टि से कजाखस्तान रूस के लिए सबसे अहम प्रदेश था. आण्विक परीक्षण स्थल से लेकर स्पेस शटल का केंद्र भी यही होता था. आज भी कई मसलों पर रूस कजाखस्तान पर निर्भर है. इतना ही नहीं 2015 में यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के निर्माण में भी कजाखस्तान और बेलारूस ही मुख्य प्रेरक तत्व थे.

रूस की बात इसलिए भी जरूरी है कि जो कुछ भी वहां पर घटित हुआ, उसमें उसकी भूमिका महत्वपूर्ण थी. कजाखस्तान की 1.9 करोड़ की आबादी में आज भी 40 लाख रूसी मूल के लोग हैं. नौकरी और रोजगार की खोज में कजाख रूस की दौड़ लगाते हैं. स्कूली और बुद्धिजीवी लोगों की भाषा आज भी रसियन है. सत्ता के गलियारों में उनकी पकड़ है.

दूसरी महत्वपूर्ण भूमिका सुरक्षा साझेदारी की है जिसे सीएसटीओ कहा जाता है, जिसके अंतर्गत रूस के साथ पांच और देश शामिल हैं, लेकिन हुकुम रूस का ही चलता है. इस बार भी जब अल्माती में उपद्रव जोड़ पकड़ने लगा और वहां की सेना नाकाम हुई, तो रूस ने पीस कीपिंग फोर्स भेज दिया और बलपूर्वक लोगों पर गोलियां दागी गयीं, जिसमें सैकड़ों लोग हताहत हुए, हजारों जख्मी हुए, लाखों जेल में ठूस दिये गये. रूस का मानना था कि उपद्रवी भीतर के नहीं बल्कि बाहरी शक्तियां थीं यानि वो आतंकी थे. दस दिनों के प्रयास के बाद स्थिति काबू जरूर हुई, लेकिन लोगों का क्रोध अभी भी धधक रहा है.

यह जानना जरूरी है कि उपद्रव का मुख्य कारण क्या था? क्या यह हिंसक विरोध महज बाहरी शक्तियों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से चलाया गया था या यह अंदर की चिंगारी थी जो वर्षों से सुलग रही थी. दरअसल, कहानी नये वर्ष के साथ ही शुरू होती है. यहां एलपीजी यातायात का मुख्य ईंधन है, जिसका बहुत बड़ा स्रोत कजाखस्तान के पश्चिमी शहर में है, वहीं विद्रोह की चिंगारी फूटी. सरकार ने एलपीजी ससब्सिडी खत्म कर दी और निजी कंपनियों के हाथों में ईंधन की बागडोर सौंप दी, रातों-रात ईंधन की कीमतें दोगुनी हो गयीं.

जब लोग घूमने निकले तो उनके होश उड़ गये. हालांकि, विद्रोह के कारण का एक छोटा सा हिस्सा है. सबसे बड़ा कारण अधिनायकवादी राजनीतिक व्यवस्था है, जो 1991 से निरंतर अभी तक चलती आ रही है. सत्ता के केंद्र में कजाखस्तान के प्रथम राष्ट्रपति नजरबायेव की भूमिका है. वर्ष 1991 से लेकर 2019 तक वे सत्ता की बागडोर सीधे अपने हाथों में लिये हुए थे. उनके कार्यकाल में दर्जनों बार राजनीतिक विद्रोह की तेज लपटें उठीं, लेकिन रूस की मदद से हर बार दबा दी गयीं.

साल 2015 में कजाख करेंसी की साख गिरने पर विद्रोह पनपा, 2017 में एलीट लोगों के ऑटो एक्सपो के विरोध में जनता सड़कों पर उतरी थी और 2016 में मनमानी तौर पर जनता की जमीन को चीन के हाथों सौंप दिया गया था, इन सबके विरोध में विद्रोह की चिंगारी तेज हुई थी. साल 2019 में नजरबायेव द्वारा सत्ता हस्तांतरण के बाद टोकायेव राष्ट्रपति बने, लेकिन नजरबायेव खुद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् के निदेशक के रूप में परदे के पीछे काम करते रहे.

जनता का विरोध का सबसे अहम कारण था नजरबायेव की शासन प्रणाली. दूसरा कारण था वहां की गरीबी और बेरोजगारी. कजाखस्तान की आबादी की औसत आयु 30 वर्ष है और वहां बेरोजगारी की गंभीर स्थिति है. कोरोना महामारी में हालात और भी गंभीर हुए हैं. तीसरा कारण भ्रष्टाचार और परिवारवाद है. भौगोलिक बंदरबांट की जिरह में बाहरी शक्तियों का हस्तक्षेप भी कजाखस्तान में अर्से से चला आ रहा है.

वर्ष 1991 के बाद से ही अमेरिका की निगाह कजाखस्तान पर थी. साल 1996 में नाभिकीय समझौते को अमेरिका ने कजाखस्तान के साथ आगे बढ़ाया, जो 2000 के बाद भी चलता रहा. वहां की अर्थव्यवस्था में अमेरिकी लागत भी बढ़ती गयी और 2000 के बाद चीन की शिरकत हुई. सबसे मजबूत बाहरी शक्ति के रूप में रूस आज भी मध्य एशिया के बीचों-बीच है. सुरक्षा ढांचा रूस द्वारा निर्धारित किया जाता है.

इस बार भी वैसा ही हुआ. कजाखस्तान के लोगों में यह डर है कि कहीं रूस देश के उत्तरी हिस्से को अपने क्षेत्र में मिलाने की व्यूह रचना तो नहीं बना रहा है. वर्ष 2019 में रूस की संसद ने यह चेतावनी भी दी थी. भारत के लिए मध्य एशिया एक वृहत्तर पड़ोसी देश है. इसके बीच में अफगानिस्तान की समस्या भी है.

मध्य एशिया के देशों के साथ भारत का सांस्कृतिक संबंध रूस के अधिपत्य के पहले से बना हुआ है, इसलिए भारत की प्राथमिकता सबसे पहले शांति स्थापित करने की होगी. पाकिस्तान की वजह से मध्य एशिया पूरी तरह से भारत से दूर खिसक गया है. हालांकि, जरूरत है कि संपर्क और साझेदारी बढ़ायी जाये. प्रधानमंत्री मोदी इस बात की गंभीरता से भली-भांति परिचित हैंै.

पिछले दिनों कजाखस्तान में हुए सामूहिक दंगों की कजाख कानून प्रवर्तन जांच करेगा और इसकी रिपोर्ट पेश करेगा. कजाक सरकार इस घटना को तख्तापलट की साजिश मान रही है. जबकि यह सच नहीं है, यह एक क्रांति का आगाज है. यह मध्य पूर्व के देशों में 2011 में चेन रिएक्शन की तरह शुरू हुई है. सच को अधिनायकवादी राजनीतिक व्यवस्था से ढका जा रहा है. लेकिन यह चिंगारी फिर से जंगल की आग बनकर फैल सकती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें