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जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई साझा सिद्धांतों पर होनी चाहिए, लेकिन सामूहिक वैश्विक प्रयासों में विकसित देशों का रवैया अब तक निराशाजनक ही रहा है.

जलवायु परिवर्तन इस ग्रह के हर हिस्से को अपने प्रभाव में लेने लगा है. शहरों से लेकर छोटे द्वीपों तक समुद्र के बढ़ते जलस्तर, सूखे, असहनीय गर्म हवाओं की गिरफ्त में आ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने हालिया रिपोर्ट में चेताया है कि अगर उत्सर्जन कटौती जैसे उपायों को तुरंत लागू नहीं किया गया, तो कई देश गंभीर खतरों को झेलने के लिए विवश हो जायेंगे.

कार्बन उत्सर्जन की वजह से गर्मी और आर्द्रता मानव जीवन की दुश्वारियां बढ़ा रही हैं. धरती का तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा, तो अफ्रीका में हर वर्ष गर्मी और आर्द्रता से प्रति एक लाख पर मौतों का आंकड़ा 80 से 180 तक और बढ़ सकता है. वहीं, सिडनी और मेलबोर्न जैसे शहरों का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जा सकता है.

बढ़ी गर्मी नदियों और जलाशयों के अस्तित्व के लिए खतरनाक है. इससे फसलों का उत्पादन भी प्रभावित होने लगा है. जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैंड, जापान तथा कनाडा समेत कई देशों में बाढ़ की विभीषिका बढ़ रही है, तो वहीं शुष्कता ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के जंगलों की अाग को विनाशकारी बना रही है.

जलवायु परिवर्तन जनित शुष्कता के कारण 2050 तक जंगली आग के दिनों में 70 फीसदी तक इजाफा हो सकता है. अमेजन वर्षावनों की आग जैवविविधता और स्थानीय प्रजातियों को तबाह कर रही है. बदलता मौसमी मिजाज खाद्यान्न आपूर्ति में भी बाधक बन रहा है. अनाज, मांस, मछली, डेयरी उद्योग मुश्किलों में फंस रहा है. इससे 2050 तक आठ करोड़ लोग भुखमरी की गिरफ्त में आ जायेंगे.

इसमें ज्यादातर सब-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और मध्य अमेरिका के लोग होंगे. गर्मी और अत्यधिक बारिश मिट्टी को नुकसान पहुंचाती हंै, वहीं अधिक कार्बन डाइऑक्साइड फसलों के पोषक तत्वों और विटामिन को कम कर देता है. जलवायु परिवर्तन जहां विकास और आमदनी पर अंकुश लगा रहा है, वहीं इससे अरबों डॉलर का नुकसान हो रहा है.

अगर प्रभावी और साझा पहल नहीं हुई, तो 2030 तक साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोग मुफलिसी में धकेले जा सकते हैं. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई साझा सिद्धांतों पर होनी चाहिए, लेकिन सामूहिक वैश्विक प्रयासों में विकसित देशों का रवैया अब तक निराशाजनक ही रहा है. उत्सर्जन और प्रदूषण बढ़ने के पीछे विकसित देशों का औद्योगीकरण ऐतिहासिक वजह है. लेकिन, वे जिम्मेदारी मानने और स्वीकारने को तैयार नहीं हैं.

स्वच्छ ऊर्जा उपायों को अपनाने में विकासशील देशों के समक्ष वित्त और तकनीक आदि अड़चनें हैं. हालांकि, भारत ने उत्सर्जन कटौती और स्वच्छ ऊर्जा उपायों को लागू करने में प्रभावी पहल की है. ‘विकसित और विकासशील’ देशों के भेद को जल्द खत्म कर साझा उपायों पर विचार हो और उसे लागू करने की प्रतिबद्धता भी तय हो. क्योंकि, जलवायु परिवर्तन पर्यावरणीय समस्या के साथ-साथ विकास की राह में सबसे गंभीर चुनौती भी है.

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