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विदेशी निवेश के अनुकूल है भारत

नयी पीढ़ी की कौशल दक्षता, स्टार्टअप, आउटसोर्सिंग और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति के कारण अब विदेशी निवेशक 'भारत क्यों की जगह भारत ही क्यों नहीं' कहने लगे हैं.

एक अक्तूबर को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में आयोजित दुबई एक्सपो में 191 देशों की मौजूदगी में भारतीय पवेलियन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय को भारत में निवेश करने का न्योता दिया. उन्होंने कहा कि भारत निवेश के लिए अनुकूल अवसरों का देश है. कहा, भारत आर्थिक सुधारों, नवाचार व तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है.

वैश्विक रिपोर्टों में भारत को निवेश अनुकूल देश बताया जा रहा है. वित्त वर्ष 2020-21 में देश में एफडीआइ रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में एफडीआई 19 प्रतिशत बढ़ कर 59.64 अरब डॉलर हो गया. इस दौरान इक्विटी, पुनर्निवेश आय और पूंजी सहित कुल एफडीआई 10 प्रतिशत बढ़ कर 81.72 अरब डॉलर हो गया. वित्त वर्ष 2019-20 में एफडीआइ का कुल प्रवाह 74.39 अरब डॉलर था.

जब पिछले वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट रही है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों ने भारत को प्राथमिकता क्यों दी? इसका जवाब है कि भारत में निवेश पर बेहतर रिटर्न है, यहां डिमांड वाला बाजार है. एक ही बाजार में कई तरह के बाजारों की लाभप्रद निवेश विशेषताएं हैं. कोरोना के बीच शेयर बाजार ने ऊंचाई प्राप्त की है. विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा है, डिजिटल अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है. शोध व नवाचार में तरक्की हुई है.

भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) सहित विभिन्न उद्योग संगठनों ने कहा कि भारी एफडीआइ प्रवाह से वैश्विक निवेशकों के बीच भारत के पसंदीदा निवेश गंतव्य होने की पुष्टि हुई है. विदेशी निवेशक पहले शेयर बाजार को अच्छी तरह मूल्यांकित करते हैं. इस समय निवेशक भारत के शेयर बाजार की तेजी को महत्व दे रहे हैं. जो बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 23 मार्च, 2020 को 25981 अंकों के साथ ढलान पर था, वह 27 सितंबर को 60000 की रिकॉर्ड ऊंचाई पर बंद हुआ. देश का विदेशी मुद्रा भंडार 24 सितंबर को 638 अरब डॉलर की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया.

महामारी के कारण लॉकडाउन में ई-कॉमर्स, डिजिटल मार्केटिंग, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्रॉम होम की प्रवृत्ति, बढ़ते इंटरनेट के उपयोगकर्ता, सरकारी सेवाओं का तेजी से डिजिटलीकरण हुआ है. इससे अमेरिकी टेक कंपनियों समेत कई कंपनियां भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि तथा रिटेल सेक्टर के ई-कॉमर्स बाजार की संभावनाओं को मुठ्ठियों में करने के लिए निवेश कर रही हैं.

एफडीआइ बढ़ने का बड़ा कारण है कि सरकार ने कई ऐतिहासिक सुधार किये हैं. बड़े टैक्स रिफॉर्म हुए हैं. जीएसटी लागू हुआ. कॉरपोरेट कर में बड़ी कमी की गयी है. आधार बायोमेट्रिक परियोजना, रेलवे, बंदरगाहों तथा हवाई अड्डों के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसी योजनाओं को लागू किया गया है. निवेश और विनिवेश के नियमों में परिवर्तन भी किये गये हैं. पिछले कुछ वर्षों में 1500 से ज्यादा पुराने व बेकार कानूनों को खत्म किया गया है. सुधारों की वजह से दुनिया का नजरिया बदला है.

नयी पीढ़ी की कौशल दक्षता, स्टार्टअप, आउटसोर्सिंग और मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति के कारण अब विदेशी निवेशक भारत क्यों की जगह भारत ही क्यों नहीं कहने लगे हैं. जो देश नवाचार में आगे बढ़ते हैं, वहां एफडीआइ बढ़ने लगता है. विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआइपीओ) द्वारा जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक (ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स) 2021 में भारत दो पायदान ऊपर चढ़ कर 46वें स्थान पर पहुंच गया है.

पिछले वर्ष 2020 में जब दुनिया में कोरोना की पहली लहर आयी, तब भारत ने भी दुनिया के कई विकसित देशों की तरह कोरोना वैक्सीन पर शोध शुरू किया, लगातार प्रयोग किये गये और कुछ ही महीनों में कोरोना वैक्सीन विकसित की. अब सितंबर 2021 में दिखाई दे रहा है कि भारत कोरोना वैक्सीन का बड़ा उत्पादक देश बन गया है. साथ ही भारत से जरूरतमंद देशों को कोरोना टीकों का निर्यात किया जा रहा है.

इसमें भी कोई दो मत नहीं हैं कि कोविड-19 के कारण चीन के प्रति बढ़ती हुई नकारात्मकता और भारत की सकारात्मक छवि के कारण भी भारत में एफडीआइ प्रवाह बढ़ा है. कोरोनाकाल में भारत ने दुनिया के कई देशों को कोरोना उपचार की दवाइयां निर्यात की हैं. चूंकि दुनिया के कई खाद्य निर्यातक देश कोरोना महामारी के व्यवधान के कारण चावल, गेहूं, मक्का और अन्य कृषि पदार्थों का निर्यात करने में पिछड़ गये, ऐसे में भारत ने इस अवसर का दोहन करके कृषि निर्यात बढ़ा लिया और इससे दुनिया के विकासशील ही नहीं, कई विकसित देशों को खाद्यान्न और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की कमी के बीच उन्हें बड़ी राहत दी.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक भारत दुनिया में नौवें क्रम का सबसे बड़ा कृषि निर्यातक देश बन गया है. दुनियाभर में भारत के द्वारा उपलब्ध करायी गयी खाद्य सुरक्षा का स्वागत किया जा रहा है. ऐसी सकारात्मकता के कारण भारत के कृषि क्षेत्र में भी विदेशी निवेश बढ़ा है.

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सात विकसित औद्योगिक देशों अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, इटली और जापान के समूह यानी जी-7 के वित्त मंत्रियों की बैठक में वैश्विक स्तर पर कॉरपोरेट कर की दर को न्यूनतम 15 फीसदी रखे जाने हेतु ऐतिहासिक समझौते पर सहमति बनी है. यह कर समझौता वैश्विक कर परिदृश्य में दशकों का सबसे बड़ा और दूरगामी परिवर्तन साबित हो सकता है. ऐसा समझौता भारत के लिए लाभप्रद होगा. इस तरह के समझौते के बाद भारत में एफडीआइ बड़ी रफ्तार से बढ़ते हुए दिखाई दे सकेंगे.

यदि हम चालू वित्त वर्ष 2021-22 में पिछले वित्त वर्ष के तहत प्राप्त किये गये करीब 82 अरब डॉलर के एफडीआइ से अधिक की नयी ऊंचाई चाहते हैं, तो जरूरी होगा कि वर्तमान एफडीआइ नीति को और अधिक उदार बनाया जाए. जरूरी होगा कि देश में लागू किये गये आर्थिक सुधारों को तेजी से क्रियान्वयन की डगर पर आगे बढ़ाया जाए. जरूरी होगा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की विभिन्न बाधाओं को दूर करके इसका विस्तार किया जाए. ऐसा किये जाने पर चालू वित्त वर्ष 2021-22 में एफडीआइ की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में लिया जा सकेगा और इससे देश के उद्योग, अर्थव्यवस्था और कारोबार तेजी से आगे बढ़ते हुई दिखाई दे सकेंगे.

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