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इवीएम पर बेवजह के सवाल

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक प्रभात खबर इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (इवीएम) की विश्वसनीयता पर बेवजह सवाल उठाये जा रहे हैं. लोगों के मन में इवीएम को लेकर एक शंका पैदा की जा रही है. सबसे गंभीर बात है कि इस बहाने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को निशाना बनाया जा रहा है. अजीब स्थिति […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (इवीएम) की विश्वसनीयता पर बेवजह सवाल उठाये जा रहे हैं. लोगों के मन में इवीएम को लेकर एक शंका पैदा की जा रही है. सबसे गंभीर बात है कि इस बहाने चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को निशाना बनाया जा रहा है. अजीब स्थिति है, जब भी कोई राजनीतिक दल चुनाव हारता है, तो वह हार का ठीकरा इवीएम पर फोड़ दे रहा है.
चुनाव आयोग इवीएम पर लोगों का भरोसा कायम रखने के लिए सारे सवालों का जवाब दे रहा है, सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुला रहा है. लेकिन कुछेक राजनीतिक दल इसको बेवजह तूल दे रहे हैं. इसमें सबसे प्रमुख है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी. एक दौर में भाजपा भी इवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठा चुकी है, लेकिन आज वह उसके पक्ष में खड़ी है.
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने भी अपनी हार के लिए इवीएम मशीनों को ही जिम्मेदार ठहराया था. यादव कुनबे में चुनाव के पहले कितनी सरफुटव्वल हुई, यह हम सभी जानते हैं. उनकी हार का एक बड़ा कारण कुनबे की लड़ाई थी. भतीजा चाचा को हराने में लगा था और चाचा भतीजे से हर कीमत पर हिसाब चुकता कर लेना चाहते थे. लेकिन जब हार की वजह की बात आयी तो अखिलेश यादव ने इवीएम की गड़बड़ी पर संदेह जताया.
अरविंद केजरीवाल ने तो हद कर दी. उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी थी कि नतीजे पक्ष में नहीं आये तो इवीएम के खिलाफ आंदोलन छेड़ा जायेगा. लेकिन जब आम आदमी पार्टी की दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसी इवीएम से भारी जीत हुई थी, तब उन्हें इससे कोई शिकवा नहीं था. यह दलील कैसे चलेगी कि जब आप जीतें, तो मशीन ठीक और जब हारें, तो मशीन खराब.
वर्ष 2009 में लोक सभा चुनावों में हार के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इवीएम पर सवाल उठाये थे. आडवाणी ने मतपत्रों की वापसी की मांग तक की थी और पार्टी ने इसके खिलाफ एक अभियान भी चलाया था. भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तो 2009 में इवीएम के खिलाफ एक किताब ही लिख डाली थी जिसका शीर्षक था ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क, कैन वी ट्रस्ट आवर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ यानी लोकतंत्र खतरे में है, क्या हम अपनी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा कर सकते हैं. इस किताब की भूमिका लालकृष्ण आडवाणी ने लिखी थी. किताब में इवीएम से धोखाधड़ी पर विस्तार से चर्चा की गयी थी. इतना ही नहीं किताब में मतदान विशेषज्ञ स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड डिल के हवाले से बताया गया था कि इवीएम का इस्तेमाल सुरक्षित नहीं है. जीवीएल नरसिम्हा राव ने अपनी किताब में वह मामला भी छापा था, जिसमें हैदराबाद के एक तकनीकी विशेषज्ञ ने एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी के लोगों के साथ इवीएम को हैक करने का दावा किया था. अब जीवीएल इवीएम पर सवाल उठाने वाली पार्टियों को ही कठघरे में खड़ा कर देते हैं.
सुब्रमण्यम स्वामी तो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गये और उन्होंने इवीएम को लेकर एक जनहित याचिका भी दाखिल की थी. उन्होंने इसे ‘होलसेल फ्रॉड’ तक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सुब्रमण्यम स्वामी की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान वीवीपैट वाली इवीएम के इस्तेमाल का आदेश दिया था. वीवीपैट इवीएम की तरह ही होती है, लेकिन इसमें वोटिंग के समय एक परची निकलती है जिसमें यह जानकारी होती है कि मतदाता ने किस उम्मीदवार को वोट डाला है. इससे मतदाता को यह पता चल जाता है कि उसका वोट सही उम्मीदवार को गया या नहीं.
दूसरी ओर अन्य दलों के नेता भी हार के बाद इस पर सवाल उठाते रहे हैं. उड़ीसा कांग्रेस के नेता जेबी पटनायक ने 2009 के विधानसभा में बीजू जनता दल की जीत की वजह इवीएम को ठहराया था. और तो और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद कांग्रेसी नेता और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भी इवीएम पर सवाल उठाये थे और कहा था कि भाजपा की जीत की वजह इवीएम है. कांग्रेस में दिलचस्प स्थिति है. कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह का बयान सामने आया है कि उनका कभी इवीएम पर भरोसा नहीं रहा है. दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के नेता और पंजाब में कांग्रेस की जीत का सेहरा पहनाने वाले कैप्टर अमरिंदर सिंह को इवीएम से कोई शिकायत नहीं है.
लोकतंत्र का बुनियाद तत्व है कि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष हो और जिसमें मतदाता को यह भरोसा हो कि उसका वोट वहीं पड़ा है, जहां वह देना चाहता था. भारत में खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में बूथ कैप्चरिंग एक बड़ी समस्या थी. साथ ही पहले पेपर बैलेट का इस्तेमाल होता था तो सही स्थान मुहर न लगने के कारण लगभग चार से पांच फीसदी वोट रद्द हो जाते थे. इवीएम के इस्तेमाल से यह सब बंद हो गया.
एक तर्क दिया जाता है कि यूरोप के देशों में अब भी बैलेट व्यवस्था जारी है. ये सभी छोटे-छोटे मुल्क हैं, जिनकी जनसंख्या हमारे एक बड़े राज्य से भी कम हैं. साथ ही इन देशों में बूथ लूटने और अन्य चुनावी धांधलियों जैसी कोई समस्या नहीं है. चुनाव आयोग के अनुसार भारत में 81 करोड़ से अधिक मतदाता हैं. यह संख्या अमेरिका, यूरोप के सभी मतदाताओं मिला दें तो उनसे भी ज्यादा है. हमारी चुनौतियां यूरोप और अमेरिका से एकदम भिन्न हैं, इसलिए इस दलील में भी कोई दम नहीं है. इसलिए नेताओं को चाहिए कि इवीएम पर बेवजह के सवाल उठाने तत्काल बंद करें ताकि जनता के मन में कोई संशय पैदा न हो.

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