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अनोखी पहल रोटी बैंक

रमेश ठाकुर पत्रकार बेसहारा, असहाय, गरीबों, भिखारियों व अपाहिजों का खाली पेट भरने की जिम्मेवारी सियासी लोग चुनावी मंचों पर खूब करते हैं, लेकिन गुजरते समय के साथ भूल जाते हैं. देश के करोड़ों लोग आज भी हर रोज भूखे पेट सोते हैं. पर, अब ऐसे लोगों का पेट भरने का काम कुछ लोगों ने […]

रमेश ठाकुर
पत्रकार
बेसहारा, असहाय, गरीबों, भिखारियों व अपाहिजों का खाली पेट भरने की जिम्मेवारी सियासी लोग चुनावी मंचों पर खूब करते हैं, लेकिन गुजरते समय के साथ भूल जाते हैं. देश के करोड़ों लोग आज भी हर रोज भूखे पेट सोते हैं. पर, अब ऐसे लोगों का पेट भरने का काम कुछ लोगों ने ‘रोटी बैंक’ नाम से एक संस्था बना कर उसके जरिये भूखों को खाना पहुंचाना शुरू किया है.
सूखे से बेहाल बुंदेलखंड के पिछड़े जिले महोबा में भूखे लोगों तक भोजन पहुंचाने की एक अनोखी मुहीम शुरू हुई है. इस मुहीम का उद्देश्य भोजन के अधिकार को जमीन पर उतारना है.
करीब 40 युवाओं द्वारा चलाये जानेवाले इस मुहीम का नाम ‘रोटी बैंक’ है, जिसमें रोज गरीबों को घर का बना खाना खिलाया जाता है. रोटी बैंक न तो सरकारी और न गैरसरकारी संस्था है, यह तो कुछ लोगों द्वारा चलाया जा रहा एक पहल है, एक सोच है, ताकि बुंदेलखंड के अलावा देश का कोई भी व्यक्ति खाली पेट न सोये!
‘रोटी बैंक’ के सदस्यों ने करीब दो साल पहले इस अभियान की शुरुआत की थी. जब फसलें कटती हैं, तो ये लोग घरों में जाकर धान-गेहूं एकत्र करते हैं. अभी गेहूं की फसल कटी है, तो इन्होंने गेहूं एकत्र कर लिया है. इस गेहूं से ये लोग साल भर रोटी बना कर गरीबों में बांटेंगे.
हालांकि, उनकी इस मुहीम से दानी लोग भी सहयोग करने के लिए जुड़ने लगे हैं. दानी लोग अपनी स्वेच्छा से इनका सहयोग करते हैं. दरअसल, इस संस्था ने इस मुहिम की शुरुआत भिखारियों और रेलवे स्टेशन पर दिखनेवाले गरीबों के साथ की थी, लेकिन अब बुंदेलखंड के कई जिलों में रोटी बैंक की मुहिम ने रफ्तार पकड़ ली है. अभियान की शुरुआत करनेवाले बताते हैं कि चाहे अस्पताल के बाहर मरीजों के तीमारदार हों या सड़क पर गरीब, रेलवे स्टेशन पर लोग हों या झुग्गी बस्ती में रहनेवाले लोग, रोटी बैंक सबको खाना उपलब्ध कराने की कोशिश में लगा हुआ है.
रोटी बैंक न तो किसी धर्म विशेष के लोगों का काम है और न ही किसी धार्मिक गुरुओं का. यह बेड़ा उन लोगों ने उठाया है, जिन्हें सिर्फ इंसानियत से मतलब है.
कुछ दिन पहले बुंदेलखंड में जब गरीबी के कारण लोग घास की रोटी खाने लगे थे, तब वहां के वृद्ध लोगों से नहीं रहा गया, तो उन्होंने खाना बना कर भूखों को खिलाने का काम शुरू किया. जब उनके इस काम की सराहना हुई, तो लोगों ने इस मुहीम को ‘रोटी बैंक’ का नाम दिया. इस मुहीम का अब कई लोग समर्थन कर रहे हैं. कुछ हलवाई भी इनकी मदद करते हैं, रोटी बैंक के कर्ताधर्ता मोहम्मद शहजाद कहते हैं कि हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि भोजन को बरबाद नहीं करना है, बचा हुआ भोजन जरूरतमंदों तक पहुंचाना है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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