13.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

अयोध्या पर अदालत

सामुदायिक जीवन का कोई प्रसंग जब आस्था का सवाल बना कर खुद को पेश करता है, मामला बड़ा जटिल हो उठता है. आस्था से जुड़े मामलों पर इसलिए अक्सर अदालतें भी दुविधा में पड़ जाती हैं कि देश के भविष्य के लिहाज से कौन-सा रुख अपनाना उचित रहेगा. बाबरी मसजिद-रामजन्मभूमि विवाद सामुदायिक जीवन की आस्था […]

सामुदायिक जीवन का कोई प्रसंग जब आस्था का सवाल बना कर खुद को पेश करता है, मामला बड़ा जटिल हो उठता है. आस्था से जुड़े मामलों पर इसलिए अक्सर अदालतें भी दुविधा में पड़ जाती हैं कि देश के भविष्य के लिहाज से कौन-सा रुख अपनाना उचित रहेगा.
बाबरी मसजिद-रामजन्मभूमि विवाद सामुदायिक जीवन की आस्था से जुड़ा ऐसा ही सवाल है. इसे जल्दी सुलझाने की एक अर्जी पर सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव के स्वर में कहा है कि अदालत से बाहर संबद्ध पक्ष आपसी रजामंदी से विवाद का निपटारा कर लें. प्रधान न्यायाधीश ने इस प्रक्रिया में मदद देने की बात कही है. इस सुझाव से लग सकता है कि सामुदायिक आस्था से जुड़े एक बड़े मामले में अदालत दुविधा की मनोदशा में है. लेकिन, इस पर कोई टिप्पणी करने से पहले यह सोचना होगा कि अयोध्या विवाद अपने अदालती सफर में अभी किस मुकाम पर है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला (2010) है कि 2.77 एकड़ की जमीन पर जहां रामलला की मूर्ति प्रतिष्ठित है, उसे ‘रामलला विराजमान’ की नुमाइंदगी कर रहे पक्ष को दी जाये, सीता की रसोई और राम चबूतरा वाला हिस्सा निर्मोही अखाड़े को मिले और शेष भूमि वक्फ बोर्ड के हिस्से में जाये. जमीन के मालिकाने के इस फैसले में कहीं यह नहीं कहा गया है कि उस जमीन पर राम मंदिर बने या नहीं, या फिर यह कि बाबरी मसजिद का पुनर्निर्माण कहां हो अथवा कोई वैकल्पिक मसजिद बनती है तो उसे कहां जगह दी जाये. इस विवाद का राजनीतिक सवाल जमीन के मालिकाने का सवाल नहीं है.
यह सवाल आज भी वहीं है जहां 1949 में था, जब बाबरी मसजिद परिसर में रामलला की मूर्ति रखी मिली थी. मुद्दे पर होनेवाली राजनीति उसी जमीन पर भव्य राममंदिर के निर्माण को लेकर है. इस राजनीति के पैरोकार दल की केंद्र और उत्तर प्रदेश में सरकारें हैं. राज्य विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने मंदिर बनाने के मुद्दे को अपने दृष्टिपत्र में रखा था और यह कहा था कि समाधान संविधान के दायरे में रह कर किया जायेगा. बाबरी मसजिद एक्शन कमिटी को उम्मीद अदालत से है, किसी सरकार से नहीं. न्यायालय का सुझाव मामले की इसी जटिल स्थिति को देखते हुए आया है. अदालत समुदाय के प्रतिनिधियों की नेकनीयती पर भरोसा करके चल रही है.
अब जिम्मेवारी मामले से जुड़े धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों की है. वे चाहें, तो बातचीत के जरिये समाधान की पहले की बेनतीजा रही कोशिशों और कटुताओं को भुला कर नये सिरे से कोशिश कर सकते हैं, ताकि रंजिश की किसी राजनीति को आगे कोई मौका न मिले.
Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel