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किसान कौन बनना चाहता है?

हाल ही में एक कृषि महाविद्यालय जाना हुआ. विशाल कैंपस, हरियाली और सफाई भी. वहां छात्र-छात्राओं से बातचीत का मौका मिला. मैंने उनसे पूछा कि कृषि स्नातक होने के बाद कौन-कौन किसानी पेशा अपनायेगा? मेरे सवाल पर हॉल में चुप्पी छा गयी. उनकी चुप्पी ने मुझे परेशान कर दिया. आखिर हम किसानी को लेकर इतने […]

हाल ही में एक कृषि महाविद्यालय जाना हुआ. विशाल कैंपस, हरियाली और सफाई भी. वहां छात्र-छात्राओं से बातचीत का मौका मिला. मैंने उनसे पूछा कि कृषि स्नातक होने के बाद कौन-कौन किसानी पेशा अपनायेगा? मेरे सवाल पर हॉल में चुप्पी छा गयी. उनकी चुप्पी ने मुझे परेशान कर दिया. आखिर हम किसानी को लेकर इतने निराश क्यों होते जा रहे हैं? क्या वजह है कि हम पढ़ाई के बाद खेत-खलिहान से दूर होते जा रहे हैं.

यह सवाल सदियों से यथावत है कि किसान और उसके परिवार का भविष्य क्या होगा. कृषि स्नातक युवा कृषि वैज्ञानिक या फिर बैंकों में फील्ड ऑफिसर बनने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन किसान नहीं.

खेती में अनिश्चितता की स्थिति में किसानों के सुरक्षित भविष्य के लिए सक्षम और कारगर योजना बनाने की जरूरत है. खेती-किसानी में किसानों की पूरी पूंजी लगी होती है. इसके बाद भी किसान आशान्वित नहीं होते कि उन्हें आमदनी होगी. खेती की बढ़ती लागत से किसानों को राहत दिलाने के लिए कई उपाय किये जा रहे हैं. कुछ राज्यों में तो उनके लिए अलग से कृषि बजट का प्रावधान किया गया है. उन्हें शून्य ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा दी जा रही है. उन्हें सिंचाई के लिए सालाना कुछ यूनिट बिजली नि:शुल्क दी जा रही है. लेकिन, इससे क्या? इसलिए किसान होने का डर भगाने की जरूरत है.

गांव के अरविंद से बात हो रही थी. अरविंद अब खेती नहीं करना चाहता है. उसके पास जमीन पर्याप्त है, लेकिन कहता है कि खेती से पेट नहीं भरता. उसने अपनी जमीनें बेचने का फैसला लिया है और कहता है कि सारा पैसा बैंक में रखूंगा, क्योंकि उससे मिलनेवाला ब्याज भी खेती से ज्यादा है. उसने बताया कौन माथापच्ची करे, ट्रैक्टर मंगाये, जमीन जोते, बीज बोये, खाद डाले, रातों को फसल की रखवाली करे, बारिश न हो तो बोरिंग से पटवन करे, कटाई में मजदूर खोजे और हिसाब करे, तो पता चले कि लागत भी मुश्किल से निकल रही है.

अरविंद से मैंने पूछा कि अगर सारे किसानों ने यही कर दिया तो क्या होगा? उसने कहा- ‘धान-गेहूं महंगा होता है, तो मिडिल क्लास परेशान हो जाता है. उसको सस्ता में खिलाने का हमने क्या ठेका ले रखा है?’ अरविंद को जब हमने बताया कि सरकार सब्सिडी देती है, ऋण देती है, तो खेती फायदे का सौदा हो सकता है. इस पर वह आग-बबूला हो गया और कहा- ‘सब्सिडी सबसे बड़ा सरकारी धोखा है. डीजल, खाद, बीज और कीटनाशकों के बाद जो वापस मिलता है, उससे लोग जहर भी नहीं खरीद सकते हैं.’

आज गांव कालोनी में तब्दील हो रहे हैं, बुआई का रकबा कम हो रहा है. जो कृषि काॅलेज से स्नातक की डिग्री लेकर निकलते हैं, वे खेत में नहीं, सचिवालयों में दिखते हैं. परंपरागत किसानी को कई कारणों ने खत्म किया है. सरकारी योजना का लाभ वोट के प्रतिशत से जुड़ गया है.

इस घोर निराशा के बीच मुझे नवाजुद्दीन सिद्दीकी याद आ रहे हैं. वे जबरदस्त अभिनेता तो हैं ही, अच्छा किसान बनने की तैयारी में भी जुट गये हैं. फिल्मों के व्यस्त जीवन और शूटिंग से वक्त मिलते ही वे अपने गांव चले जाते हैं और खेतों में फावड़ा चलाने से भी नहीं हिचकिचाते.

एकतरफ कृषि महाविद्यालय में किसान बनने के नाम पर छात्र-छात्राओं की चुप्पी और दूसरी तरफ ग्राउंड में एक किसान का गुस्सा, इन दोनों ने मुझ जैसे किसान को परेशान कर दिया है. लेकिन, नवाजुद्दीन जैसे लोग उत्साह भी बढ़ाते हैं. इन सबके बावजूद परेशानी एक बात की बनी हुई है कि हम किसान अब तक असंगठित ही हैं.

गिरींद्र नाथ झा

ब्लॉगर एवं किसान

girindranath@gmail.com

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