सीएनटी राज्य का अहम मुद्दा रहा है आैर इस पर सत्ता व विपक्ष दाेनाें की अपनी-अपनी राय रही है. दाेनाें काे राजनीति करनी है अाैर दाेनाें कर रहे हैं.
बुुंडू में एक नाबालिग काे कैसे पुलिसकर्मियाें ने पीट-पीट कर मार डाला, ताेपचांची में कैसे एक दाराेगा-डीएसपी ने अपने सहयाेगियाें काे प्रताड़ित किया, ये मुद्दे उठ सकते हैं. शिक्षकाें की बहाली में हुई गड़बड़ी का मुद्दा उठ सकता है. कहीं लाेग बिजली नहीं मिलने से परेशान हैं, ताे कहीं अस्पताल की व्यवस्था खत्म है. शिक्षकाें या सरकारी नाैकरी में हाेनेवाली बहाली में उम्र सीमा बढ़ाने की मांग हाे सकती है. ये मांग काेई भी विधायक उठा सकता है, चाहे वह सत्ता पक्ष का हाे या विपक्ष का. यह ताे जनता की मांग है. लेकिन विधायकाें काे इसकी चिंता नहीं दिखती. रांची, जमशेदपुर आैर धनबाद, कम से कम ये तीन शहर ऐसे हैं, जहां लाेग ट्रॉफिक जाम से परेशान है. इन शहराें के लिए क्या याेजना है, यह बात उठायी जा सकती है. पूरे राज्य में समस्याआें की कमी नहीं है. बिरसा चाैक ताे इसका उदाहरण है. दर्जनाें धरने चल रहे हैं आैर उसका खामियाजा जनता काे भुगतना पड़ रहा है. विधानसभा के पास का गेट बंद हाेने से एचइसी की बड़ी आबादी प्रभावित हाेती रही है. सदन से नियमन दिया जा चुका है कि गेट बंद न हाे, लेकिन प्रशासन की मजबूरी अलग है. सब तबाह हैं. काेई सुननेवाला नहीं. विधायकाें काे इसकी चिंता नहीं है. जाम करनेवालाें काे इसकी चिंता नहीं है. अगर पक्ष-विपक्ष का काेई विधायक जनता की इन समस्याआें काे उठाता, ताे उसे जनता आंखाें पर बैठाती, जनता की नजर में उस विधायक का कद ऊंचा हाे गया हाेता. अभी भी यह संभव है.
जनता ने उम्मीद के साथ चुन कर भेजा है. उनकी उम्मीदाें पर पानी मत फेरिए. सदन है, पक्ष आैर विपक्ष है ताे मतभेद हाेंगे ही, लेकिन इसकी सीमा हाेनी चाहिए. एक-एक दिन की सदन की कार्यवाही पर लाखाें रुपये जनता के खर्च हाेते हैं. लंबी-लंबी दूरी तय कर (जैसे संताल के जिलाें से) विधायक आते हैं आैर एक सवाल भी नहीं उठा पाते. अतीत से सीख लें आैर आनेवाले तीन दिनाें तक पक्ष-विपक्ष जनता के असली मुद्दाें काे उठायें, उनका समाधान निकालने का प्रयास करें. यही जनता आैर राज्य के हित में हाेगा.