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हंगामा नहीं, चर्चा से निकलेगा हल

अनुज कुमार सिन्हा झारखंड विधानसभा में दाे दिनाें से अगर कुछ हाे रहा है ताे वह है सिर्फ हंगामा. पक्ष आैर विपक्ष दाेनाें अड़े हुए हैं. इस अड़ियल रवैये से काम नहीं बननेवाला, राज्य का भला नहीं हाेनेवाला. छह दिन का छाेटा सा सत्र, आैपचारिकता आैर हंगामे में तीन दिन ऐसे ही खत्म. अब सिर्फ […]

अनुज कुमार सिन्हा
झारखंड विधानसभा में दाे दिनाें से अगर कुछ हाे रहा है ताे वह है सिर्फ हंगामा. पक्ष आैर विपक्ष दाेनाें अड़े हुए हैं. इस अड़ियल रवैये से काम नहीं बननेवाला, राज्य का भला नहीं हाेनेवाला. छह दिन का छाेटा सा सत्र, आैपचारिकता आैर हंगामे में तीन दिन ऐसे ही खत्म. अब सिर्फ तीन दिन बचे हैं. मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति माेरचा आक्रामक तेवर में है. पहले दिन एडीजी अनुराग गुप्ता पर कार्रवाई की मांग काे लेकर झामुमाे अड़ा रहा. दूसरे दिन मुद्दा अलग था-सीएनटी एक्ट में संशाेधन का जाेरदार विराेध. यह विराेध इतना कि सदन नहीं चला.

सीएनटी राज्य का अहम मुद्दा रहा है आैर इस पर सत्ता व विपक्ष दाेनाें की अपनी-अपनी राय रही है. दाेनाें काे राजनीति करनी है अाैर दाेनाें कर रहे हैं.

इस राजनीति से ऊपर है राज्य का हित, राज्य की जनता का हित. हाे-हंगामे से हल नहीं निकलता. सदन में चर्चा हाे, बहस हाे. विपक्ष काे विधानसभा से बेहतर अवसर नहीं मिलता, लेकिन यह तभी मिलेगा, जब सदन चले. विपक्ष काे भी अपनी बात कहने का पूरा हक है. सरकार काे भी जवाब देने का हक है. अभी जिद की राजनीति हाे रही है आैर किसी का भला नहीं रहा है. अनुपूरक बजट पेश किया गया है. इस पर चर्चा हाेनी है. विपक्ष के पास अवसर है कि चर्चा में भाग लेते हुए राज्य के मुद्दे काे उठाये. लेकिन अगर हंगामा हाेता रहा, ताे इसी हंगामे के बीच बजट पास हाे जायेगा आैर विपक्ष के हाथ कुछ नहीं लगेगा.
विधायकाें काे (चाहे वह सत्ता पक्ष के हाें या विपक्ष के) अपने क्षेत्र के लाेगाें काे आज नहीं तो कल जवाब देना हाेगा. जनता अपने विधायक से सवाल पूछेगी कि उन्हाेंने अपने क्षेत्र के कितने मामले काे सदन में उठाया आैर क्या जवाब मिला. किसानाें काे कैसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है (बीज मिला कि नहीं, खाद मिला कि नहीं आदि), कहां-कहां पुल-पुलिया नहीं हैं, कहां टूट या बह गये, काैन गांव टापू बन गया है, कहां बाढ़ आ गयी है, आदि-आदि. कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठ सकता है.

बुुंडू में एक नाबालिग काे कैसे पुलिसकर्मियाें ने पीट-पीट कर मार डाला, ताेपचांची में कैसे एक दाराेगा-डीएसपी ने अपने सहयाेगियाें काे प्रताड़ित किया, ये मुद्दे उठ सकते हैं. शिक्षकाें की बहाली में हुई गड़बड़ी का मुद्दा उठ सकता है. कहीं लाेग बिजली नहीं मिलने से परेशान हैं, ताे कहीं अस्पताल की व्यवस्था खत्म है. शिक्षकाें या सरकारी नाैकरी में हाेनेवाली बहाली में उम्र सीमा बढ़ाने की मांग हाे सकती है. ये मांग काेई भी विधायक उठा सकता है, चाहे वह सत्ता पक्ष का हाे या विपक्ष का. यह ताे जनता की मांग है. लेकिन विधायकाें काे इसकी चिंता नहीं दिखती. रांची, जमशेदपुर आैर धनबाद, कम से कम ये तीन शहर ऐसे हैं, जहां लाेग ट्रॉफिक जाम से परेशान है. इन शहराें के लिए क्या याेजना है, यह बात उठायी जा सकती है. पूरे राज्य में समस्याआें की कमी नहीं है. बिरसा चाैक ताे इसका उदाहरण है. दर्जनाें धरने चल रहे हैं आैर उसका खामियाजा जनता काे भुगतना पड़ रहा है. विधानसभा के पास का गेट बंद हाेने से एचइसी की बड़ी आबादी प्रभावित हाेती रही है. सदन से नियमन दिया जा चुका है कि गेट बंद न हाे, लेकिन प्रशासन की मजबूरी अलग है. सब तबाह हैं. काेई सुननेवाला नहीं. विधायकाें काे इसकी चिंता नहीं है. जाम करनेवालाें काे इसकी चिंता नहीं है. अगर पक्ष-विपक्ष का काेई विधायक जनता की इन समस्याआें काे उठाता, ताे उसे जनता आंखाें पर बैठाती, जनता की नजर में उस विधायक का कद ऊंचा हाे गया हाेता. अभी भी यह संभव है.

जनता ने उम्मीद के साथ चुन कर भेजा है. उनकी उम्मीदाें पर पानी मत फेरिए. सदन है, पक्ष आैर विपक्ष है ताे मतभेद हाेंगे ही, लेकिन इसकी सीमा हाेनी चाहिए. एक-एक दिन की सदन की कार्यवाही पर लाखाें रुपये जनता के खर्च हाेते हैं. लंबी-लंबी दूरी तय कर (जैसे संताल के जिलाें से) विधायक आते हैं आैर एक सवाल भी नहीं उठा पाते. अतीत से सीख लें आैर आनेवाले तीन दिनाें तक पक्ष-विपक्ष जनता के असली मुद्दाें काे उठायें, उनका समाधान निकालने का प्रयास करें. यही जनता आैर राज्य के हित में हाेगा.

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