शून्य, बिंदु, त्रिकोण, पंचतत्व, पुरुष-प्रकृति के जटिल संबंधों जैसे भारतीय दर्शन परंपरा के तत्वों को आधुनिक कला की संवेदना से जोड़ कर रजा ने रंगों और आकृतियों का अनोखा ज्यामितीय संसार रचा, जो आज वैश्विक कला में अमूल्य धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित हैं. उन्होंने युवावस्था में ही कलाकारों की राजधानी कहे जानेवाले शहर पेरिस का रुख कर लिया था. चित्रकला की बारीकियों और कौशल का ज्ञान वहीं पाया, वहीं प्रेमिका भी मिलीं, उनके रचना-कर्म का शानदार उसी शहर में रचा गया. प्रेमिका जेनिन, जो बाद में जीवन संगिनी बनीं, भी सिद्धहस्त चित्रकार थीं.
उनकी मृत्यु के बाद रजा पेरिस में नहीं रह सके और छह दशकों के लंबे प्रवास के बाद भारत लौट आये. हृदय और मस्तिष्क के संयोग के आग्रही रजा यूरोप के सबसे सौंदर्यपूर्ण शहर के निवासी रहे, पश्चिमी जगत की कलाओं और उनकी परिपाटियों को करीब से देखा और जाना, सीखा भी, लेकिन उनके यथार्थवाद को न अपना कर उन्होंने विशिष्ट भारतीय भाव अमूर्तन को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया. बीसवीं सदी के चौथे दशक में साहित्य, कला और राजनीति में आयी प्रगतिशील धारा से प्रभावित रजा उदारमना तथा सहज व्यक्तित्व के धनी थे. भारत से उनके गहरे जुड़ाव का एक पक्ष यह भी है कि वे अपनी डायरी नागरी लिपि में ही लिखते थे.
उन्हें निकट से जाननेवाले बताते हैं कि वे कविताएं भी लिखते थे. उनकी अनेक चित्रों में हिंदी के शब्द और पंक्तियां हैं. पूरी दुनिया में नाम-सम्मान के बावजूद विनम्रता की पूंजी हमेशा उनके पास बची रही, और वे स्वयं पर आश्चर्य करते रहे कि जाने-बिना जाने उनसे इतना कुछ हो सका. अपनी चित्रकारी को पूजा की संज्ञा देनेवाला यह महान कलाकार बतौर विरासत हमारे लिए अद्भुत कृतियों के साथ आचरण और विचार का अनुकरणीय उदाहरण भी दे गया है. उन्हें संभालना ही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.