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मानसिकता सुधारें
हमारा समाज अश्लीलता की सीढ़ी पर चढ़ने को अग्रसर हो गया है. अश्लील गानों का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है. त्योहार हो या शादी विवाह, जिधर देखो अश्लील गाने बिना किसी संकोच के बजते दिख जायेंगे. महिला हो या पुरुष, सभी आसानी से इन गानों पर थिरकते नजर आ जाते हैं. एक सरकार जो […]
हमारा समाज अश्लीलता की सीढ़ी पर चढ़ने को अग्रसर हो गया है. अश्लील गानों का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है. त्योहार हो या शादी विवाह, जिधर देखो अश्लील गाने बिना किसी संकोच के बजते दिख जायेंगे. महिला हो या पुरुष, सभी आसानी से इन गानों पर थिरकते नजर आ जाते हैं.
एक सरकार जो इन गानों पर पाबंदी नहीं लगा रही, दूसरे हम जो इसे तेजी से स्वीकार कर रहे हैं. सीधे शब्दों में कहें तो हमारी सोच और मानसिकता ही असभ्य हो गयी है, जो ऐसे गानों को स्वीकार कर ले रही है. कुलीन वर्ग को इन गानों से जो परेशानी होती है, वो बतलाने की जरूरत नहीं. परिणाम यह है कि छोटे बच्चे भी इन अश्लील गानों के बोल को गुनगुनाते मिल जाते हैं.
वे तो बच्चे हैं, जो देखते हैं – जो सुनते हैं, वही सीखते हैं. अगर कहीं बच्चे गानों का मतलब पूछने लगें तो क्या हम उन्हें समझा पायेंगे? इसलिए आप सभी से अनुरोध है कि जहां पर भी ऐसे गाने बजाये जाते हैं, उन्हें बंद कराने की कोशिश अवश्य करें, नहीं तो इसके दुष्परिणाम को भुगतने वाले भी हम ही होंगे.
सौरभ सिन्हा, बरही
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