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राज्य में विदेश मंत्रालय!

भारतीय लोकतंत्र में संघीय ढांचे की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, देश की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा विशेष रूप से केंद्र सरकार के पास होता है. लेकिन, खबरों की मानें तो तेलंगाना राज्य में विदेशी मामलों से संबंधित एक अलग मंत्रालय आगामी दिनों में हकीकत बन सकता है! इतना ही नहीं, राज्य के मुख्यमंत्री […]

भारतीय लोकतंत्र में संघीय ढांचे की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, देश की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा विशेष रूप से केंद्र सरकार के पास होता है. लेकिन, खबरों की मानें तो तेलंगाना राज्य में विदेशी मामलों से संबंधित एक अलग मंत्रालय आगामी दिनों में हकीकत बन सकता है!
इतना ही नहीं, राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव अपने बेटे केटी रामाराव को इस विभाग का मंत्री भी बना सकते हैं. इस समय राज्य मंत्रिमंडल में रामाराव के पास सबसे अधिक मंत्रालयों का प्रभार है और वे अनिवासी भारतीयों (एनआरआइ) से संबद्ध विभाग के भी मंत्री हैं.
सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अन्य खाड़ी देशों और अमेरिका में बड़ी संख्या में तेलंगाना के लोग रह रहे हैं, जिनसे संबद्ध मामलों के लिए राज्य का एनआरआइ मंत्रालय काम करता है. केरल और पंजाब में भी इसी तर्ज पर एनआरआइ मंत्रालय हैं, जो विदेशों में रह रहे उन राज्यों के निवासियों के हितों की देखभाल करते हैं. हालांकि, तेलंगाना में अपना विदेश मंत्रालय बनाने की तैयारी संबंधी खबरों की राज्य सरकार ने अभी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है.
लेकिन, किसी राज्य में विदेश मंत्रालय स्थापित करना तर्कों से परे है और इससे भ्रम की स्थिति भी पैदा हो सकती है. विदेश मंत्रालय का एक खास मतलब और महत्व होता है, यह किसी देश के अंतरराष्ट्रीय संबंधों से जुड़े मामलों को देखता है. हालांकि, वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से छपी खबरों में यह भी बताया गया है कि प्रस्तावित मंत्रालय राज्य में निवेश की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए तेलंगाना की छवि को विदेशों में प्रचारित करेगा. अन्य राज्यों में यही काम राज्य के वित्त, वाणिज्य, उद्योग और पर्यटन मंत्रालय करते रहे हैं और अब तक कभी ऐसा अवसर नहीं आया है, जब किसी राज्य सरकार ने अपने लिए एक अलग विदेश मंत्रालय की जरूरत महसूस की हो.
ऐसे में तेलंगाना के मुख्यमंत्री का ऐसा विचार अचंभित भी करता है और संघीय ढांचे की व्यवस्थाओं में हस्तक्षेप की आशंका भी पैदा करता है. अपनी पार्टी और सरकार में अपने परिवार को प्रमुखता देने को लेकर चंद्रशेखर राव की पहले भी आलोचना होती रही है.
ऐसे में राज्य के लिए अपना अलग विदेश मंत्रालय बनाने जैसी पहल को सत्ता-सुख के विस्तार और महत्वाकांक्षाओं को एक नया रूप देने का प्रयास ही माना जायेगा. ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले, चंद्रशेखर राव को यह जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि संवैधानिक व्यवस्थाओं तथा स्थापित मर्यादाओं का मनमाना उल्लंघन देश और राज्य के हित में नहीं है.

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