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बदलते मायने

हमारा भारत, जिसके भीतर ही कहीं एक नया भारत जन्म ले रहा है़ यह मांग करता है अपने हक की, अभिव्यक्ति की आजादी की. पर वह कैसी आजादी हो, यह गौर करने का विषय है. एक देश जहां अगर आप ‘अनुराग कश्यप’ हैं तो आपको सच कहने या दिखाने का हक नहीं है, क्योंकि हुक्मरानों […]

हमारा भारत, जिसके भीतर ही कहीं एक नया भारत जन्म ले रहा है़ यह मांग करता है अपने हक की, अभिव्यक्ति की आजादी की. पर वह कैसी आजादी हो, यह गौर करने का विषय है. एक देश जहां अगर आप ‘अनुराग कश्यप’ हैं तो आपको सच कहने या दिखाने का हक नहीं है, क्योंकि हुक्मरानों को वह सच्चाई कड़वी लग सकती है.
लेकिन वहीं अगर आप ‘उमर’ या ‘कन्हैया’ हैं, तो आपको यह हक दिया जाता है कि आप अपने राष्ट्रविरोधी नारों से आतंकियों का गुणगान करें और एक देश की जमीन पर खड़े होकर, उसी देश के करोड़ों लोगों के समक्ष, उसी देश के टुकड़े करने का दावा करें. उसे अभिव्यक्ति की आजादी का नाम देना कहां तक जायज है? यह तो वही बात हो गयी कि आपको अपने पिता के सामने बोलने की आजादी चाहिए? क्या आजादी के मायने बदल रहे हैं या यह कुछ और ही है?
शैलेश पांडेय, ई-मेल से

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