प्रभात रंजन
कथाकार
मेरी बेटी दस साल की हो गयी है. पांचवीं कक्षा में पढ़ती है. हिंदी का लेखक हूं, जो भी मिलता है यही सलाह देता है कि बेटी को हिंदी पढ़ने की आदत डालो. उसको हिंदी का बाल साहित्य पढ़ाओ. लेकिन कोई यह नहीं समझा पाता कि क्या पढ़ाओ? कहने को हिंदी में बहुत सारा बाल साहित्य मौजूद है. बहुत लिखा भी जा रहा है. बहुत सारी संस्थाएं बाल साहित्य के सृजन को लेकर काम कर रही हैं, लेकिन क्या सच में ऐसा बाल साहित्य हिंदी में है, जो आज के बच्चों की रुचियों, उनकी सोच को शब्द दे पाता हो?
यह सवाल ऐसा है, जिसका जवाब आसान नहीं है. सवाल हिंदी में बाल साहित्य की उपलब्धता का नहीं है. सवाल यह है कि आज के बच्चों की सोच को वह साहित्य अभिव्यक्त कर पा रहा है या नहीं. आज के बच्चों की दुनिया बहुत बदल चुकी है.
उसको बाल साहित्य के नाम पर आप मोरल स्टोरीज पढ़वा कर नहीं टरका सकते हैं. आज बच्चों के पास ज्ञान, सूचना के इतने स्रोत हैं कि बाल साहित्य के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कैसे उसको उन साधनों से खींच कर बाल साहित्य से जोड़ा जा सके. आज बच्चा छोटी उम्र से ही फोन, कंप्यूटर का उपयोग शुरू कर देता है, टीवी पर एक से बढ़ कर एक कार्यक्रम आते हैं, जो बच्चों की कल्पनाशीलता को जाग्रत करनेवाले होते हैं.
बाल साहित्य का उद्देश्य आज रोचकता होनी चाहिए, जो बच्चों की कल्पनाशीलता को जाग्रत कर सके. अंगरेजी में हैरी पॉटर जैसी शृंखला न केवल लिखी जा सकती है, बल्कि बच्चों में गजब की लोकप्रियता भी उसको मिलती है. लेकिन हम हिंदी वाले अभी बाल साहित्य के नाम पर बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं, उपदेश देना चाहते हैं. यह सब इतना उबाऊ हो जाता है कि बच्चे हिंदी से जुड़ नहीं पाते हैं.
आज बच्चे अगर आरंभ से हिंदी से नहीं जुड़ पाते हैं, तो इसका कारण यह भी है कि आज बच्चों की सोच और उनकी समझ के मुताबिक जिस तरह का बाल साहित्य अंगरेजी में उपलब्ध है, हिंदी में न के बराबर है.
यह जरूर है कि हिंदी में बाल पत्रिकाएं निकलती हैं, उनका प्रसार भी है और उनमें कुछ पत्रिकाएं ऐसी भी हैं, जिनमें आज के बच्चों की सोच-समझ के मुताबिक थोड़ी बहुत सामग्री होती भी है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि आज भी हिंदी में बच्चों को लेकर किसी तरह की कथा शृंखला नहीं लिखी जाती है, जो मौलिक हो. उदाहरण के लिए अंगरेजी में ‘विम्पी किड’ जैसी शृंखलाएं हैं, जिनका बच्चे शिद्दत से इंतजार करते हैं. हम इस बात का रोना तो बहुत रोते हैं कि बच्चे अपनी भाषा से दूर होते जा रहे हैं, लेकिन हमने ऐसी कोशिश कब की है कि बच्चे अपनी भाषा से जुड़ें.
मसलन, हिंदी के किस बड़े लेखक ने बच्चों के लिए लिखने का संकल्प लिया है? हिंदी के किस बड़े प्रकाशक ने यह संकल्प लिया है कि वे हिंदी में मौलिक बाल साहित्य को बढ़ावा देंगे, उसके लेखकों को सम्मान-पहचान देंगे.
सच्चाई यह है कि हिंदी में बच्चों के लिए लिखना आज भी बच्चों का काम माना जाता है. यह माना जाता है कि बच्चों के लिए लिखना कमतर साहित्य है. इसी वजह से हिंदी में अच्छी प्रतिभाएं बाल साहित्य के सृजन में नहीं, बाल साहित्य के नाम पर जो सामने आता है, वह ज्यादातर भर्ती का साहित्य होता है.
अगर सच में हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हिंदी में ऐसा बाल साहित्य सामने आये, जो आज के बच्चों को आकर्षित करे, तो बाल साहित्य को लेकर इस मानसिकता को भी बदलने की जरूरत है और उसके लिए लेखकों-प्रकाशकों सबको सामने आने की जरूरत है. हिंदी का विस्तार हो रहा है, ऐसे में बाल साहित्य का भी विस्तार होना चाहिए.