-हरिवंश-
‘बाउंड टूगेदर’ किताब (लेखक, नयन चंदा. प्रकाशक, पेंग्विन – विकिंग. कीमत-525.) दुनिया और मानव के आपसी जुड़ाव का इतिहास है. देश, संसार और समाज की कहानी. हमारे (मनुष्य कौम) उद्भव से अब तक. पुस्तक का उपशीर्षक प्रखर और स्वत: स्पष्ट है. यह है ‘हाउ ट्रेडर्स, प्रिचर्स, एडवेंचर्स एंड वैरियर्स शेपड ग्लोबलाइजेशन’. उपशीर्षक का हिंदी तरजुमा होगा, कैसे व्यापारियों, प्रचारकों, जोखिम लेनेवालों और योद्धाओं ने ग्लोबलाइजेशन (खगोलीकरण) को आकार दिया? ईसा सदी से लगभग सत्तर हजार वर्षों पहले हुई शुरुआत. जब हम सबके पुरखे-पूर्वज (आदिमानव) अफ्रीका से पूरी दुनिया में फैले. एंथ्रोपालाजी, विज्ञान और डीएनए के शोधों और टेस्टों ने यह पुष्ट कर दिया है कि मानव जाति के पूर्वज एक थे. वे सभी अफ्रीका में साथ रहते थे.
पुस्तक में दस अध्याय हैं. पहला अध्याय है ‘अफ्रीकन बिगनिंग ’. बर्फ युग का अंतिम दौर. हमारे पुरखों की टोली अफ्रीका से निकली. अच्छे जीवन, खाद्यान्न और सुरक्षा की तलाश में. पचास हजार वर्षों तक समुद्र के किनारे-किनारे भटकाव, यात्रा और आशियाने की खोज चली. फिर अलग-अलग महाद्वीपों में पड़ाव. और इस तरह एक कुटुंब अलग-अलग आबोहवा में बिखरा, बंटा और बढ़ा. फिर अलग-अलग रूप-रंग और नाक-नक्श हुए. यह प्रसंग पढ़ते हुए उपनिषद् के ऋषियों की बात गूंजती है.
अयं निज परोवेति गणना लघुचेतसाम्
उदार चरितानांतु वसुधैव कुटुम्बकम्
अर्थात् यह अपना है, वह पराया है, इसकी गणना संकीर्ण बुद्धिवाले करते हैं. लेकिन जो उदार हैं, वे पृथ्वी पर रहनेवाले सभी प्राणियों को, अपना परिवार मानते हुए, व्यवहार करते हैं.
वसुधा ही कुटुंब है, यानी पूरी दुनिया ही परिवार है. एक ही कुंड और पिंड से निकले हम आज भिन्न और अलग हैं. पर इस दुनिया में बड़ा फर्क तब आया, जब व्यापारियों, धर्म-प्रचारकों, सेनाओं और साहसी अन्वेषकों ने नयी तलाश शुरू की. दूसरे अध्याय में उल्लेख है, ऊंट से शुरू हुआ कारोबार और व्यापार, कैसे अब इ-कॅामर्स के दौर में पहुंच गया है. इसी दौर में कभी भारत के सूत विक्रेताओं ने दुनिया में सूती उद्योग में अपना सिक्का चलाया. औद्योगिक क्रांति में भारत का यह सूती उद्योग तबाह हो गया. पर विचित्र संयोग है कि आज भारत के कॉल सेंटर और साफ्टवेयर प्रोग्रामर, फाइबर ऑप्टिक केबुल के सहारे दुनिया को एक सूत्र में बांधे हुए हैं. पहले की अपेक्षा अधिक मजबूती से.
तीसरा अध्याय है ‘द वर्ल्ड इनसाइड’ (अंदर से दुनिया ). इस अध्याय में रोज इस्तेमाल होनेवाले तीन चीजों के नाम हैं. जो विश्व व्यापार के गर्भ से निकले, पर आज दुनिया में प्रचलित हैं. मानव, समाज – देशों को जोड़ते हुए. कॉटन (रुई) जन्मा भारत में, पर यहीं से फैला पूरी दुनिया में. कॉफी, अरब देशों की देन, पर आज पूरी दुनिया की पसंद है. दुनिया के लाखों लोग इस कॉफी व्यवसाय की डोर से बंधे हैं. आज ग्लोबलाइजेशन का सबसे महत्वपूर्ण धागा है, माइक्रोचिप. सूचना क्रांति का जन्मदाता. गणित और भौतिकी (फिजिक्स) की देन है, यह. हजारों वर्षों में तीन महाद्वीपों में हुई गणित और भौतिकी में प्रगति का परिणाम है, यह चिप्स और कंप्यूटर.
चौथे अध्याय में कहानी है ‘प्रिचर्स वर्ल्ड ’(प्रचारकों की दुनिया) की. धर्म प्रचारकों ने कैसे दुनिया को प्रभावित किया. बुद्ध ने ढाई हजार वर्षों पहले कहा. अपने 65 शिष्यों के बीच. हे भिक्षुओं, जाओ, सबों की भलाई के लिए. बहुसंख्यक की खुशी के लिए. दुनिया के प्रति करूणा के कारण. मानव धर्म के कल्याण के लिए. दो, एक दिशा में न जाओ. हे भिक्षुओं, धर्म बताओ. शुरुआत की अच्छाई, मध्या? की अच्छाई और अंत की अच्छाई की चर्चा करो. बौद्ध धर्म ने कला, संस्कृति और समाज को बदला. क्रिश्चियन और मुस्लिम प्रचारकों के पीछे तलवार की भी ताकत रही. अपनी ताकत से इन्होंने अपने अनुयायी बनाये. पर आधुनिक दौर में एक सेक्यूलर समाज भी उभरा है. दुनिया के गंभीर सवालों पर सहमति बनाते हुए. मसलन पर्यावरण संकट जैसे सवालों पर विश्व जनमत का बनना.
अगला अध्याय है ‘वर्ल्ड इन मोशन’ (गति में संसार). यह उन धुनी और सहासी अन्वेषकों की गाथा है, जो पूरी दुनिया के चप्पे-चप्पे को जानना और देखना चाहते थे. यह कोलंबस,वास्को डी गामा, माका पोलो, इब्नबतूता से लेकर फेरडीनेंड मैगेलन जैसे साहसी लोगों की कथा है. घूमंतु टूरिस्टों का यह अध्याय है, जिन्होंने दुनिया को आपस में बांधा. फिर छठे अध्याय में ‘द इंपीरियल वीभ’ (साम्राज्यवादी बुनावट) का ब्योरा है. इस अध्याय में महत्वाकांक्षी शासकों, योद्धाओं के प्रसंग हैं, जो दुनिया को मुट्ठी में करना चाहते थे. सिकंदर से लेकर चंगेज खां. रोमन साम्राज्य से लेकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद और इसके गर्भ से उत्पन्न वैधानिक व्यवस्था, भाषाई एकता, बड़े पैमाने पर पेड़-पौधों, पशुओं के नस्लों के आदान-प्रदान का विवरण. सातवें अध्याय में ‘स्लेभस्, जर्मस् एंड ट्राजन हासस’ (गुलाम, रोग और विजयी घोड़े) के वृतांत हैं. गुलाम कैसे बने? यूरोप ने गुलामी की व्यवस्था को कहां तक पहुंचा दिया? फिर रोग के कीटाणु कैसे इधर-उधर फैले ? इस ग्लोबल दौर में तो कंप्यूटर वायरस ने पूरी दुनिया को ध्वस्त और नष्ट या तबाह करने की क्षमता पा ली है. यह ग्लोबल विलेज की नयी महामारी है.
आठवें अध्याय में ग्लोबलाइजेशन की चर्चा है. इस शब्द की उत्पत्ति से इसे अभिशाप मानने तक का विश्लेषण. 1961 में पहली बार अंग्रेजी शब्दकोश में ग्लोबलाइजेशन शब्द आया. आहिस्ते से. अगले अध्याय में आंकलन है कि ‘हू इज अफ्रेड आफ ग्लोबलाइजेशन’ (ग्लोबलाइजेशन से डरता कौन है). यह अध्याय ग्लोबलाइजेशन में शामिल और छूटे लोगों की बात करता है. अंतिम अध्याय है, ‘द रोड अहेड’ (आगे का रास्ता). ग्लोबलाइजेशन की अब तक की प्रक्रिया का सारांश और उलझनों से भरे भविष्य की बात.
ग्लोबलाइजेशन से जुड़े प्रसंगों पर, अच्छी पुस्तक है यह. सरल, साफ शब्दों में स्पष्ट अवधारणाएं हैं. मनुष्य की अफ्रीका से शुरू यात्रा आज ग्लोबलाइजेशन के नये पड़ाव पर है. हम जिस देश या परिवेश में जो भी खाते-पीते या इस्तेमाल करते हैं, वे सब चीजें कहां से और कैसे हम तक पहुंची हैं, यह जानना अलग दृष्टि देता है. जिन चीजों या परिवेश को हम अपना कहते, मानते हैं, वे सब न जाने कब दुनिया के किस कोने में बनीं या उत्पादित हुईं या प्रयोग में आयीं ? हम उनका उद्भव नहीं जानते? मसलन जापान का कैनन कैमरा. यह संसार का मशहूर ब्रांड है. बोधित्सव या अवलोकितेश्वर अनुवाद होकर चीनी भाषा में ‘गुनियन’ और जापानी में ‘क्वानोन’ हुए. यही क्वानोन जापान के मशहूर कैनन कैमरा ब्रांड के पीछे है.
पुस्तक के लेखक नयन चंदा ‘येल सेंटर’ स्थित स्टडी ऑफ ग्लोबलाइजेशन (ग्लोबलाइजेशन का अध्ययनपीठ) के निदेशक हैं. येल ग्लोबल आन लाइन के संपादक भी. ‘फार इस्टर्न इकोनॉमिक रिव्यू’ के पूर्व संपादक. एशियन वालस्ट्रीट जर्नल के भी पूर्व संपादक. पुस्तक को महत्वपूर्ण माननेवालों में दुनिया के जाने-माने लोगों और संस्थाओं के नाम हैं, थामस एल फ्रीडमैन, नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ इ स्टिगलिट्ज, नारायणमूर्ति, न्यूजवीक, द न्यूयार्क टाइम्स, फारेन पालिसी, द ब्रूकिंगस् इंस्टीटय़ूशन इस पुस्तक को उल्लेखनीय बताते हैं.
यह पुस्तक पढ़ते हुए बदलती दुनिया की झलक मिलती है, तो नये गंभीर सवालों से भी सामना होता है. नयन चंदा एक जगह आइपॉड की चर्चा करते हैं, जिसे उन्होंने अपने बेटे के लिए खरीदा. यह मशीन बनायी अमरीकन कंपनी एप्पल ने. मशीन का हृदय माइक्रोड्राइव बना, जापान के हिटैची कंपनी से. साउथ कोरिया ने बनाया कंट्रोलर चिप. चीन में बना सोनी बैटरी. इडेनबर्ग (स्कॉटलैंड) की कंपनी ने बनाया स्टीरियो डिजिटल से एनालॅाग कनवर्टर. फ्लैश मेमोरी चिप जापान में तैयार हुआ. एक चिप पर वह सॉफ्टवेयर बना, जो दस हजार गानों में से एक गाना तलाशता है. उसकी डिजाइन तैयार की, भारत स्थित पोर्ट ब्लेयर्स के प्रोग्रामर ने. आज दुनिया इंटरनेट, मोबाइल फोन और केबल टीवी कनेक्शन से एक धागे में बुन सी गयी है. गतिशील पूंजी, व्यापार और टेक्नोलॅाजी ने एक नया संसार गढ़ दिया है, जिसे मशहूर पत्रकार थामस एल फ्रीडमैन की भाषा में कहें तो ‘द वर्ल्ड इज फ्लैट’. हम मनुष्य जाति का भाग्य, जीवन और भविष्य कैसे, एक दूसरे से मिला और गुथा हुआ है.
पर इस ग्लोबलाइजेशन की सबसे बड़ी चुनौती है, उपभोक्तावाद की अबाधित बाढ़, भूख और ललक. आज अमरीका में तीन में से दो लोग गाड़ी रखते हैं. अगर भारत और चीन में यही स्थिति बनी, तो सत्तर करोड़ चीनी कारें और साठ करोड़ भारतीय कारें कहां ले जायेंगी दुनिया को? पर्यावरण को? इन्हें बनाने के लिए कहां से स्टील, अल्यूमीनियम मिलेंगे? चलाने के लिए तेल का भंडार कहां होगा? कहां होगीं सड़कें जिन पर ये गाड़ियां दौड़ेंगी? इन चीजों के लिए दुनिया के कितने बड़े इलाके में लौह अयस्क का खनन होगा? कितने तेल कूएं चाहिए, ताकि ये गाड़ियां दौड़ें? कार बनाने के कितने कारखाने होंगे? और अंतत: कितना कार्बन डाइआक्साइड निकलेगा? वह गैस इस धरती, प्रकृति और संसार को कहां पहुंचायेगी? ये सवाल अनुत्तरित हैं, और इन्हीं सवालों से जुड़ा है ग्लोबलाइजेशन का भविष्य और मानव भविष्य भी.
इस पुस्तक को पढ़ते हुए लगा, कितने दरिद्र हैं हमारे विश्वविद्यालय, बुद्धिजीवी, शासक और राज चलाने वाले? खासतौर से हिंदी पट्टी के लोग, जिन्हें अपने पाठय़क्रमों में इस बदलती दुनिया का ब्यौरा या बदलाव न पढ़ाया या न बताया जाता है. जिन प्रसंगों या विषयों का जीवन से रिश्ता नहीं, वे कूड़े विषय हमारे छात्रों के पाठ्यक्रमों में हैं. विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक जीवन में उठते हैं? पढ़े-पढ़ाये जाते हैं और गुने जाते हैं. उन विषयों पर विवाद होता है, जो बांझ हैं, बंजर हैं और हमें बदलती दुनिया के रोशनदान तक नहीं पहुंचाते. जो फ्यूचरोलाजी (नया विषय) और धाराएं दुनिया को गढ़ और बना रही हैं, उनसे हमारा सरोकार कब होगा?