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मरीचिका के पीछे मोदी व श्री श्री
पवन के वर्मा पूर्व प्रशासक एवं राज्यसभा सदस्य श्री श्री रविशंकर के विरुद्ध मेरे मन में कुछ भी नहीं है. बेंगलुरु की अपनी एक यात्रा के दौरान मुझे उनसे मिलने तथा उनका आशीर्वाद लेने का अवसर भी मिला था. इस तरह मैं आर्ट ऑफ लिविंग आंदोलन के विरुद्ध भी नहीं हूं. यदि इसकी साधना करनेवाले […]
पवन के वर्मा
पूर्व प्रशासक एवं राज्यसभा सदस्य
श्री श्री रविशंकर के विरुद्ध मेरे मन में कुछ भी नहीं है. बेंगलुरु की अपनी एक यात्रा के दौरान मुझे उनसे मिलने तथा उनका आशीर्वाद लेने का अवसर भी मिला था. इस तरह मैं आर्ट ऑफ लिविंग आंदोलन के विरुद्ध भी नहीं हूं. यदि इसकी साधना करनेवाले लाखों लोगों को इससे शांति और संतुष्टि मिलती है, तो यकीनन यह एक प्रभावी चीज होगी.
मगर मैं ऐसे आध्यात्मिक गुरुओं के खिलाफ हूं, जो अपनी स्वीकार्यता का फायदा ऐसे कार्यों के लिए उठाते हैं, जो वृहत्तर सार्वजनिक हितों के सीधा विरुद्ध होता है. विगत 11 से 13 मार्च तक पर्यावरणविदों की गहरी चिंता तथा एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के तीखे अवलोकनों के बावजूद दिल्ली के यमुना तट पर एक सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन कर श्री श्री रविशंकर एक ऐसे विवाद में जा पड़े, जो मेरे विचार से उनकी आध्यात्मिक विश्वसनीयता को हानि ही पहुंचायेगा. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी भी एक अलग किंतु उतनी ही चिंता की वजह है.
यमुना की बाढ़भूमि पर इस उत्सव के आयोजन हेतु किये गये निर्माण कार्यों से वहां के पर्यावरण को क्या क्षति पहुंची, इसे समझने के लिए एनजीटी के आदेश में प्रयुक्त शब्दों पर एक नजर डालना ही काफी होगा, जिसने अपनी साफगोई में कोई कोताही नहीं बरती.
‘पर्यावरण, पारिस्थितिकी, जैवविविधता तथा नदी के जलीय जीवन’ को पहुंची क्षति के लिए एनजीटी ने फाउंडेशन (आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन) को जिम्मेवार मानते हुए ‘उत्सव आरंभ होने के पूर्व’ उसे ‘पर्यावरणीय मुआवजे’ के रूप में 5 करोड़ रुपये भुगतान करने को कहा. वैधानिक रूप से गठित इस शीर्ष अधिकरण के प्रति एक उल्लेखनीय उदासीनता प्रदर्शित करते हुए श्री श्री रविशंकर ने कहा कि वे यह दंड भरने के बजाय जेल जाना ज्यादा पसंद करेंगे. आयोजन की सन्निकटता को ध्यान में रख एनजीटी के सामने उनके द्वारा तत्काल 25 लाख रुपयों के भुगतान की बात मान लेने के सिवाय दूसरा कोई चारा न था.
यहां प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या आध्यात्मिक गुरु अपने कानून खुद ही गढ़ेंगे?
अपने आदेश में एनजीटी ने इस मामले के एक अन्य चिंताजनक पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘फाउंडेशन ने आज (आयोजन के एक दिन पूर्व) तक पुलिस तथा अग्निशमन विभाग अथवा जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय से आवश्यक अनुमति प्राप्त नहीं की है’ और यह भी कि ‘ये सभी अपने सार्वजनिक कर्तव्यों के समुचित निर्वहन में विफल रहे हैं.’
इसने आगे यह भी कहा कि फाउंडेशन ने जितने बड़े स्तर पर निर्माण कार्य किये, उसके विषय में उसके द्वारा प्रस्तुत विवरण विस्तृत तथा सटीक ही नहीं थे. श्री मोदी अथवा भाजपा से श्री श्री की नजदीकियां जाहिर हैं. साफ है कि फाउंडेशन ने इसी वजह से ही ऐसा व्यवहार किया. हालांकि, आमंत्रण के बावजूद राष्ट्रपति इस आयोजन में नहीं गये, मगर क्या एनजीटी के अवलोकनों, श्री श्री द्वारा उसकी अवहेलना की खुली घोषणा तथा इस तथ्य के मद्देनजर कि फाउंडेशन द्वारा जरूरी अनुमति हासिल नहीं की गयी, प्रधानमंत्री मोदी के लिए इस आयोजन में शरीक होना उचित था?
दो अन्य पहलू भी अहमियत रखते हैं. पहला, एक निजी समारोह के लिए पुल इत्यादि के निर्माण में सहायता के लिए सेना को कैसे तैनात किया गया? इस तरह के फैसलों से यह कैसी नजीर कायम की जा रही है?
क्या दूसरे आध्यात्मिक संगठनों के द्वारा आयोजित ऐसे ही निजी आयोजनों में सेना इसी तरह मदद पहुंचायेगी? दूसरा, श्री मोदी ने इस अवसर को ‘संस्कृति का कुंभ मेला’ बताया और ‘अपनी सांस्कृतिक विरासत पर अभिमान करने’ की जरूरत पर बल दिया. क्या एक बार के ऐसे वृहत आयोजनों से हमारी सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवन मिल सकेगा, जबकि हमारे देश में संस्कृति से संबद्ध प्रायः सभी प्रमुख संस्थान वित्तीय, कार्मिक तथा नीतिगत संकटों से जूझ रहे हैं?
श्री मोदी तथा श्री श्री रविशंकर दोनों ही विराटता के रोग के शिकार हैं, जहां सारतत्व से ज्यादा अहमियत नजारे को दी जाती है.
श्री मोदी की कल्पना को भड़कीली बुलेट ट्रेनें तथा बड़े औद्योगिक प्रक्षेत्र अधिक भाते हैं, जबकि हमारी नियमित ट्रेन प्रणाली अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. जिन किसानों की जमीन औद्योगिक प्रक्षेत्रों के लिए ली जा रही हैं, वे सैकड़ों की संख्या में आत्महत्या कर रहे हैं. श्री श्री रविशंकर का यकीन है कि पर्यावरण की क्षति की कीमत पर भी एक ऐसा वृहत ‘सांस्कृतिक’ आयोजन, जो गिनीज बुक ऑफ रिकाॅर्ड्स में दर्ज हो जाये, भारत को विश्व मंच पर पहचान दिला देगा. ये दोनों व्यक्ति एक मरीचिका के पीछे भाग रहे हैं.(अनुवाद : विजय नंदन)
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