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कुपोषित बच्चे या फिर सोच?

रांची में 13 सितंबर को एक समारोह में यूनिसेफ प्रमुख ने झारखंड के भविष्य और विकास को लेकर गंभीर बात कही थी़ मामला राज्य के कुपोषित बच्चों का है. डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की ओर से साल की शुरुआत में राष्ट्रीय स्तर पर किये गये रैपिड सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि झारखंड में […]

रांची में 13 सितंबर को एक समारोह में यूनिसेफ प्रमुख ने झारखंड के भविष्य और विकास को लेकर गंभीर बात कही थी़ मामला राज्य के कुपोषित बच्चों का है. डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ की ओर से साल की शुरुआत में राष्ट्रीय स्तर पर किये गये रैपिड सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि झारखंड में पांच वर्ष से कम उम्र के 100 में से 47 बच्चे कुपोषित हैं. यहां के लगभग आधे बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिलता, जिससे इनका सही ढंग से विकास नहीं हो पा रहा है. राज्य के हालात उत्साहजनक नहीं हैं.

राष्ट्रीय स्तर पर जो औसत है उसमें झारखंड काफी पीछे है. राष्ट्रीय स्तर का औसत देखें, तो हर 100 में से 28.7 बच्चे कुपोषित हैं. वर्ष 2006 के बाद झारखंड में इस दिशा में हल्का सुधार हुआ है. यहां 100 में से 49.8 बच्चे कुपोषित थे. यूनिसेफ प्रमुख ने भी कहा कि झारखंड में जिन बच्चों की मौत हो रही है, उसमें 45 फीसदी मौतें कुपोषण की वजह से होती है. इतना ही नहीं, यहां की 43 फीसदी किशोर लड़कियां कुपोषण से पीड़ित हैं. इनमें 22 फीसदी लड़कियाें की 18 वर्ष से भी कम उम्र में विवाह कर दी जाती है.

इन आंकड़ों के बीच सवाल यह है कि आखिर ऐसे मामलों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जाता़ कौन-सी सोच काम करती है़ क्या ऐसे में राज्य का विकास संभव है़ रही बात रिपोर्ट की, तो दुनिया भर में बच्चों के विकास और उनके स्वास्थ्य पर नजर रखनेवाली संस्था ने बाकायदा सर्वेक्षण कराने के बाद इसे पेश किया है़ आज जरूरत रिपोर्ट पर ध्यान देने की है, ताकि राज्य के भविष्य को संवारा जा सके. इसके साथ ही, ध्यान देनेवाली यह भी बात है कि जब बच्चे स्वस्थ और पोषित हाेंगे, तो वह यहां के विकास में अपनी भागीदारी निभा सकेंगे.
Àगणेश सिटू, हजारीबाग

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