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इनसे सीखो तुम

सीखो तुम उस मेड़, मटका व मूर्ति से, ओ मेरे देश के बादशाहों सीखो तुम उस स्वार्थहीन मेड़ से जो सर्दी, गरमी व वर्षा ङोल तुम्हें देते मीठे बेल, वह खुद धूप में तप कर तुम्हें देते आनंददायक छांव, वह खुद सर्दी ङोल पत्तें दे करते तुम्हें गरम, सीखो तुम उस दानी मेड़ से जो […]

सीखो तुम उस मेड़, मटका व मूर्ति से, ओ मेरे देश के बादशाहों
सीखो तुम उस स्वार्थहीन मेड़ से जो सर्दी, गरमी व वर्षा ङोल
तुम्हें देते मीठे बेल, वह खुद धूप में तप कर
तुम्हें देते आनंददायक छांव, वह खुद सर्दी ङोल
पत्तें दे करते तुम्हें गरम, सीखो तुम उस दानी मेड़ से
जो सदा तुम्हें प्राण वायु देते, ओ मेरे देश के बादशाहों
सीखो तुम उस मटके से, जो पहले पानी में गूंथा
फिर चाक पर चला, प्रहार सहा, अग्नि में तमा
तत्पश्चात मटका बना जो तुम्हें शीतल जल देते
ओ मेरे देश के बादशाहों, सीखो तुम उस मूर्ति से
जो पहले छेनियों का प्रहार ङोला, कितना बार घीसा गया
– सुमन कुमार, मुसरीघरारी, समस्तीपुर

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