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धन्य है रावण! तेरी माया अपरंपार

।।जावेद इस्लाम।।(प्रभात खबर, रांची) लक्ष्मणपुर बाथे का नाम सुनते ही लक्ष्मण जी याद आ गये, गांव के नाम में लक्ष्मण शब्द जुड़ा रहने के कारण. लक्ष्मण याद आयें तो स्वाभाविक है रामजी भी याद आयेंगे. अब रामजी याद आयें, मौका विजयादशमी का हो और रावण याद न आये, यह तो हो ही नहीं सकता. बुराई […]

।।जावेद इस्लाम।।
(प्रभात खबर, रांची)

लक्ष्मणपुर बाथे का नाम सुनते ही लक्ष्मण जी याद आ गये, गांव के नाम में लक्ष्मण शब्द जुड़ा रहने के कारण. लक्ष्मण याद आयें तो स्वाभाविक है रामजी भी याद आयेंगे. अब रामजी याद आयें, मौका विजयादशमी का हो और रावण याद न आये, यह तो हो ही नहीं सकता. बुराई के प्रतीक रावण का वध कर के ही तो रामजी पूजनीय बने थे. इसलिए तो हमलोग हर दशहरा में रावण दहन करते हैं. इस बार भी दशहरा में हमने सैकड़ों-हजारों रावणों का दहन किया. मगर यह कमबख्त संख्या ही बढ़ाता जा रहा है. रामजी ने त्रेता में ही इसकी पुंगी बजा दी थी.

मगर वह मरने का नाम नहीं ले रहा है. जैसे खुद को अमर कर देने की कसम खा रखी हो. इस कलयुग में अपना नया-नया संस्करण पैदा करता जा रहा है. जिधर देखो उधर रावण. राजनीति में तो इनका बोलबाला है ही. अब यह धर्म-अध्यात्म सहित सभी क्षेत्रों में भी घुस आया है. जैसे सामंतवाद नहीं रहा पर सामंती मानसिकता अब भी मौजूद है. उसी तरह रावण नहीं रह कर भी हर जगह धड़ल्ले से है. वह मायावी है, भाव है, स्वभाव है और आजकल तो इसका खूब बढ़ा हुआ भाव है. जरा देखिये, लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार का फैसला रावणों का भाव बढ़ानेवाला है या नहीं? अदालत ने सारे आरोपियों को पुलिसिया कार्रवाई की तकनीकी खामियों के आधार पर आरोपमुक्त कर दिया. रावण की माया! वह कब किससे क्या न करा ले.

1 सितंबर 1997 को रात के अंधेरे में लक्ष्मणपुर बाथे के 58 गरीब-ग्रामीणों को मौत की नींद सुला दिया गया था. इनमें बच्चे-बूढ़े जवान, औरत-मर्द सब थे. गर्भवती महिलाओं के गर्भ चीर कर अजन्मे शिशुओं की भी हत्या कर दी गयी थी. इस जघन्य कांड से मानवता दहल उठी थी. पर नहीं कांपा था, तो हत्यारों का दिल. तब के राष्ट्रपति ने इस घटना को राष्ट्रीय शर्म कहा था. पर, वह शर्म तो इन सोलह-सत्रह वर्षो में बेशर्मी में बदल गया है. न तो व्यवस्था को तब शर्म आयी थी, न आज शर्मसार दिखती है.

मानवाधिकार संगठनों ने इस समय पुलिस-प्रशासन के साथ हत्यारों के रिश्ते की जांच की मांग की थी. इस रिश्ते के आगे सर झुकाने की सरकारी अदा को भी जांच के दायरे में लाना जरूरी बताया था, पर क्या हुआ? सभी पर रावण का साया पड़ गया है शायद. बाथे-बथानी-मियांपुर से लेकर मध्यविहार में सामंती मानसिकता वाले लोगों द्वारा किये गये जनसंहारों के एक भी अपराधी को सजा नहीं मिल पायी? शायद इसलिए कि मारे गये सभी बड़े नहीं छोटे लोग थे और हमारे गांव-शहर के लिए यह छोटी-छोटी बातें थी. पुलिस ने हत्यारों को बचाने में पूरी ईमानदारी बरती पर, उसे किसी की डांट-फटकार नहीं मिली क्योंकि गरीबों का जनसंहार रेयर ऑफ रेयरेस्ट में तो आता ही नहीं फिर न्यायिक सक्रियता क्यों दिखे, मीडिया चीख-पुकार क्यों करे? धन्य है रावण, तेरी माया अपरंपार!

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