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स्थानीयता पर बेटियों से भेदभाव

‘पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ, सुजस धवल जगु कह सब कोऊ.’- गोस्वामी बाबा तुलसी दास की इस चौपाई में अब बड़ी विडंबना नजर आती है. रामचरितमानस में पुत्री से दो कुल की पवित्रता की बात की जाती रही है. बिना इन आदर्शो को माने हम कभी भी बेटे-बेटियों में समानता स्थापित नहीं कर सकते है. […]

‘पुत्रि पवित्र किये कुल दोऊ, सुजस धवल जगु कह सब कोऊ.’- गोस्वामी बाबा तुलसी दास की इस चौपाई में अब बड़ी विडंबना नजर आती है. रामचरितमानस में पुत्री से दो कुल की पवित्रता की बात की जाती रही है. बिना इन आदर्शो को माने हम कभी भी बेटे-बेटियों में समानता स्थापित नहीं कर सकते है.
एक बेटी जो झारखंड में जनमी, यहां की माटी में पली, फिर यहां के शैक्षणिक संस्थानों से पढ़ाई शुरू कर समाप्त की. पढ़ाई के दौरान उसने कभी सोचा भी न था कि होनहार बेटियों की पढ़ाई का अर्थ शून्य है. वह एक शिक्षिका बन कर राज्य की सेवा करने का सपना देखी थी. वह इस राज्य के एक ऐसे युवक शादी करती है, जो इस राज्य का तो है, लेकिन 1932 के खतियान के आधार पर यहां का स्थायी निवासी नहीं है.
ऐसे में उसकी पूरी पहचान ही बदल जाती है. यह किसी एक की बानगी नहीं है. ऐसी कई बेटियां हैं इस राज्य में. एक ओर तो हम बेटियों को बराबरी का हक देने की बात करते हैं. वहीं, उसके परिचय का हम लगातार गला घोंट रहे हैं.
लड़की पहले किसी की बेटी होती है. बाद में किसी की पत्नी बनती है. आज कई ऐसे पिता हैं, जो यहां के स्थायी निवासी है, लेकिन वे अपनी बेटी का आवासीय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए अधिकारियों से गुहार लगाते नजर आ रहे हैं. यदि शिक्षक नियुक्ति प्रक्रिया में नब्बे फीसदी झारखंडी होंगे, तो क्या वह बेटी झारखंडी नहीं? आखिर स्थानीयता के आरक्षण में ऐसा विभेद क्यों? क्या हमारा समाज बेटों के साथ ऐसा भेद बरदाश्त कर सकेगा? झारखंड सरकार कम से कम बेटियों के महत्व को तो समङो और उसके आधार पर स्थानीयता की नीति का प्रारूप तैयार करे.
अंशु मोहन सहाय, जामताड़ा

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