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हमारे देश में कुछ सरकारी सिस्टम है, जिसे हम बहुत कोसते है. हर र्दुव्‍यवस्था के लिए सिस्टम को जिम्मेदार मानते है. जैसे कि भ्रष्टाचार, पुलिस व्यवस्था, सरकारी अधिकारी का कार्य इत्यादि. अगर भ्रष्टाचार की बात करें तो इसका जिम्मेदार है कौन? क्या सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था या हम? कहीं न कहीं हमारी भी गलती होती है. […]

हमारे देश में कुछ सरकारी सिस्टम है, जिसे हम बहुत कोसते है. हर र्दुव्‍यवस्था के लिए सिस्टम को जिम्मेदार मानते है. जैसे कि भ्रष्टाचार, पुलिस व्यवस्था, सरकारी अधिकारी का कार्य इत्यादि. अगर भ्रष्टाचार की बात करें तो इसका जिम्मेदार है कौन?
क्या सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था या हम? कहीं न कहीं हमारी भी गलती होती है.
कोई भी काम जल्दी करने के लिए हम रिश्वत तक देने में नहीं ङिाझकते हैं, बस हमारा काम किसी भी तरह या किसी भी कीमत पर हो जाये. और इस तरह हम अफसरों को रिश्वतखोर बना देते हैं. अगर हम ही शुरू से ठीक से ईमानदार रहे तो, कोई भी अफसर रिश्वत मांगने की हिम्मत नहीं करेगा.
नियम-कानून और ईमानदारी के साथ अगर हम चलने लगे तो कोई भी पुलिसकर्मी या अधिकारी दबंगई दिखाने काकोशिश नहीं करेगा. अगर हम भी पुलिस वालों की थोड़ी मदद करें और सही जानकारी दें तो,अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है. अगर हम व्यवस्था के नियमों का पालन करने में सफल रहे तो कोई भी सरकारी अधिकारी धोखा देने से पहले सौ बार सोचेगा. वह कामचोरी से भी बचने की कोशिश करेगा.
सिर्फ नेताओं की आस में बैठे रहना हमारी भूल है. व्यवस्था के सुधार में हम जो आलस दिखा रहे हैं, यह गलत है. आखिर यह देश किसका है? हमारा ही न! तो फिर हम किसका इंतजार कर रहे हैं.
हम प्रोएक्टिव बन कर आगे आयें. सिर्फ सरकार के भरोसे बैठे न रहें. अपनी समस्याओं के हल के लिए हम इस तरह काम करें कि हमारे द्वारा चुने गए नेता को भी शर्म आ जाये. हमें दिखाना होगा कि हम किसी भी सरकार की मेहरबानी के मोहताज नहीं हैं. जब हम ही सरकार को बनाते हैं तो क्या हम अपने भारत को एक खुशहाल देश नहीं बना सकते हैं?
पालुराम हेंब्रम, सालगाझारी

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