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स्त्री शिक्षा की भूमिका

संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध है– ‘नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरु:’. इसका मतलब यह है कि इस दुनिया में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान गुरु नहीं है.’ यह बात पूरी तरह सच है. बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है. माता ही […]

संस्कृत में यह उक्ति प्रसिद्ध हैनास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति मातृ समोगुरु:. इसका मतलब यह है कि इस दुनिया में विद्या के समान नेत्र नहीं है और माता के समान गुरु नहीं है. यह बात पूरी तरह सच है. बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है.

माता ही अपने बच्चे को पाठ पढ़ाती है. बालक का यह प्रारंभिक ज्ञान पत्थर पर बनी अमिट लकीर के समान जीवन का स्थायी आधार बन जाता है. लेकिन आज पूरे भारतवर्ष में इतने दरिंदे उभर आये हैं, जिन्होंने मांबहनों का रिश्ता खत्म कर दिया है और जो भोगविलास की जिंदगी जीना अधिक उपयोगी समझने लगे हैं. यही कारण है कि कस्बों से लेकर शहरों की मांबहनें असुरक्षित हैं.

असुरक्षा के कारण ही बलात्कार, गैंग रेप जैसी अनेक घटनाओं के जाल में फांस कर उन्हें मछली की तरह तवे पर भूना जा रहा है. मेरा मानना है कि इसका सबसे बड़ा कारण है स्त्रियों में शिक्षा की कमी.

हाल ही में हजारीबाग में घटी दुष्कर्म जैसी अनेक घटनाओं में आज हमें बुराई नजर आती है, तो उसके लिए अधिकांशत: जिम्मेदार मां को ही ठहराया जाता है. एक मां दुलार में छिपी अपनी अज्ञानता के कारण ही बेटेबेटी को नये फैशन का कपड़ा, कम उम्र में मोबाइल, खर्च से अधिक पैसा देना आदि जैसे लापरवाही पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. परिणामस्वरूप वे गलत रास्ते पर चले जाते हैं.

वास्तव में कहा जाता है कि महिलाओं की शिक्षा, किसी भी पुरुष की शिक्षा से कम महत्वपूर्ण नहीं है. उस नयी समाज की रूपरेखा तैयार करने में महिलाओं की शिक्षापुरुषों से सौ गुना अधिक उपयोगी है. इसलिए स्त्री शिक्षा के लिए सरकार को प्रयासरत होना चाहिए, तभी अत्याचार जैसी घटनाओं पर काबू पाया या सकता है.

प्रकाश कुमार, पत्थलगडा, चतरा

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