अधिकांश इंग्लैंड यूरोप से अलगाव चाहता है. अधिकांश स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलगाव चाहता है, और यूरोप के साथ बना रहना चाहता है. इस स्थिति का परीक्षण दो साल में होनेवाले जनमत-संग्रह में होगा.
हर चुनाव राजनीति में बदलाव लाता है. लेकिन भू-राजनीति को बदलनेवाले चुनाव असाधारण होते हैं. मई के पहले सप्ताह में ब्रिटेन एक भिन्न देश बन गया. ब्रिटेन के चुनाव की बड़ी खबर यह नहीं है कि बमुश्किल पैर टिकाने की जगह को उन्होंने कामयाब आशियाने में तब्दील कर दिया. न ही यह है कि एड मिलिबैंड सैंडविच खाने की एक अजीब अकुशलता के साथ अब परिदृश्य से हट जायेंगे. ऐतिहासिक महत्व की खबर यह है कि स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन से अलग हुए बिना ही इंग्लैंड से राजनीतिक आजादी की घोषणा कर दी है. इसका शासन, स्थिरता और एकता पर क्या असर होगा, यह भविष्य के गर्भ में है. स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी, ऐसा नाम जो अपने उद्देश्य को स्पष्ट तौर पर अभिव्यक्त करती है, उसकी भारी जीत ने किसी भी तरह के संदेह को दूर कर दिया है. इस पार्टी को स्कॉटलैंड की 59 में से 56 सीटें मिली हैं. टोरी और लेबर दोनों बस इंग्लैंड की पार्टी बन कर रह गये हैं. और, थके हारे लिबरल डेमोक्र ेट्स बस नाम-मात्र ही बचे हैं.
लेबर पार्टी की हार के दो कारण हैं, और दूसरे कारण का समाधान कर पाना काफी मुश्किल होगा. अर्थशास्त्र से संबंधित बहस में यह पार्टी पिछड गयी क्योंकि इसे यह मानने में कठिनाई है कि बेतुका समाजवाद अब बीते जमाने की बात है. यह हर उस व्यक्ति के लिए एक संदेश है, जिसे दिलचस्पी है, और इसमें हम भारतीय भी शामिल हैं. उदासी के अर्थशास्त्र में अब मतदाताओं की रुचि नहीं है. उनकी मांग आकांक्षा और पूर्ति के अर्थशास्त्र की है.
राजनीतिक साक्षरता का निर्धारण आसान तरीके से किया जा सकता है, चाहे आपका दिमाग बंद हो या खुला. अनेक भारतीय राजनीतिक पार्टियों में, विशेष रूप से कांग्रेस में, ऐसे अनेक राजनेता हैं, जिनकी कल्पना में पुराने पड़ गये कागज ही विचारों का विकल्प हैं. कोई भी मतदाता शासन से जीवन की बेहतर गुणवत्ता की इच्छा रखता है. आदम के जमाने से ऐसा ही चला आ रहा है. सबकी इच्छा गरीबी के निवारण और समृद्धि की बढ़ोतरी की होती है. लोकतंत्र का उपयोगी पहलू यह है कि मतदाता समृद्धि के तार्किक रास्तों को समझता है. उन्हें छद्म संरक्षण और रोजगार के अवसर बढानेवाले विकास में अंतर की समझ होती है. लेकिन इस चुनाव का एक महत्वपूर्ण आयाम ऐसा है, जो इसे ब्रिटिश इतिहास में एक विशिष्ट चुनाव बनाता है. अगर स्कॉट लोगों ने अपनी नेशनलिस्ट पार्टी को वोट दिया है, तो अंगरेजों ने भी इंग्लिश पार्टी- टोरी- को समर्थन दिया है. यही वह निर्णायक अंतर्धारा थी, जो कैमरून को विजय की ओर ले गयी. न इधर, न उधर के रहे लेबर कई मायनों में पराजित हुए. ऐसे दल जो हवा का रु ख भांपने का दावा करते हैं, वे भी चूक गये. उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकिप). यह पार्टी ब्रिटेन को यूरोप से बचाने में इतनी व्यस्त हो गयी थी कि वह हठी स्कॉटलैंड से इंग्लैंड को बचाने के लिए खड़ी न हो सकी. नतीजतन, टोरियों ने ‘अंगरेजों के लिए इंग्लैंड’ की भावनावाले मतों को जीत लिया.
कैमरून को इंग्लैंड में मिली सीटों से ही बहुमत प्राप्त हुआ है और उन्हें 36.9 फीसदी मत मिले हैं. लेकिन यह अंक, एक अच्छे आंकड़े या जैसा कि कहा जाता है, एक बिकिनी की तरह बताने से अधिक छुपाता है. आप इसमें से स्कॉटलैंड और वेल्स को निकाल दें, जहां उसका समर्थन न के बराबर है, और फिर आप आप्रवासियों की संख्या घटा दें, तो आप पायेंगे कि टोरियों को श्वेत अंगरेजों का 40 फीसदी से अधिक मत हासिल हुआ है.
कैमरून के सामने पांच सदी पूर्व शामिल हुए स्कॉटलैंड के साथ बने संघ और यूरोपीय संघ से जुड़ी चुनौतियां हैं. यह त्रिकोण बिखर रहा है. अधिकांश इंग्लैंड यूरोप से अलगाव चाहता है. अधिकांश स्कॉटलैंड ब्रिटेन से अलगाव चाहता है, और यूरोप के साथ बना रहना चाहता है. इस स्थिति का परीक्षण दो साल में होनेवाले जनमत-संग्रह में होगा. टोरी स्कॉटलैंड को अधिक स्वायत्तता और आर्थिक सहयोग देना चाहते हैं. पर समझौता आदान-प्रदान पर ही निर्भर होता है. यह पहली सरकार होगी, जिसमें स्कॉटिश मंत्री नहीं होंगे. अब प्रश्न यह है कि क्या टोरी और स्कॉटिश पार्टी के बीच खाई बहुत अधिक बढ़ गयी है?
आगले पांच सालों तक ब्रिटेन अंतरराष्ट्रीय मंचों की जगह आंतरिक समस्याओं में फंसा रहेगा. यह स्वाभाविक ही है. अभी भी टोरी एकांत में मारग्रेट थैचर के जमाने में हांगकांग के जाने का दुख व्यक्त करते हैं. लेकिन, जैसा कि स्कॉटिश नेता एलेक्स सालमॉण्ड ने कहा है, स्कॉटलैंड में एक शेर ने दहाड़ा है. पर कैमरून उसे कमरे में हाथी के रूप में ही देखना चाहेंगे- खतरनाक, पर शाकाहारी. अब देखना यह है कि क्या शेर अपनी खुराक की आदत में बदलाव करता है या नहीं!
एमजे अकबर
प्रवक्ता, भाजपा
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