यह परिस्थितियों की विडंबना है कि देश में जो सरकार है, वह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हुई है. हम लोग ऐसी व्यवस्था में हैं, जिसमें सिर्फ शासक वर्ग का ही विकास निहित है. जिस तरह बड़े–बड़े घोटाले, भ्रष्टाचार, गलत आर्थिक नीतियों से बढ़ती महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी आदि अखबार की सुर्खियों में छायी रहती हैं, उससे ऐसा लगता है कि इन सबका समाधान इस व्यवस्था में नहीं है.
सरकार देश के तमाम बड़े मुद्दों एवं समस्याओं को लेकर गंभीर नहीं है. कोयला घोटाले से संबंधित फाइलों के गायब होने की खबर से यह लगता है कि मंत्रालय कितना सक्रिय और गंभीर है. ये फाइलें इसलिए लापता हुई, क्योंकि इनमें सत्ता में बैठे कुछ बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं. देशप्रेम की बात करें, तो नेताओं में यह नहीं के बराबर है. आज के नेताओं के लिए देशप्रेम की परिभाषा ही अलग है. शायद तभी तो हमारी सरकार ‘शहीद–ए–आजम’ भगत सिंह को शहीद ही नहीं मानती है.
जो व्यवस्था सबको रोटी, शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, सम्मान नहीं दे सकती, ऐसी व्यवस्था को बदलना समय की मांग है. जिस सरकार के नेतृत्व, नीतियां व निष्ठाएं राष्ट्रहित व लोकहित में नहीं हैं, वैसी सरकार से सुशासन की आशा रखना व्यर्थ है. जो व्यवस्था 150 साल पहले चली थी, आज भी वही कायम है. जिस तरह पहले लूटतंत्र था, आज भी वही लूटतंत्र है. हथियार वही हैं, सिर्फ निशाना बदल गया है. इसलिए ईमानदार, देशभक्त, समर्पित लोगों को देशहित के लिए राजनीति में आना होगा और इस अंगरेजी तंत्र (व्यवस्था) को मिटा कर स्वच्छ, स्वस्थ, स्वदेशी और लोकहितकारी व्यवस्था का निर्माण करना होगा, जिससे सही अर्थो में सुशासन का राज कायम हो और देश का उत्तरोत्तर विकास हो.
भोलानाथ भक्त, आसनवनी, जादूगोड़ा