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रियल एस्टेट क्षेत्र के नियमन की कोशिश

हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना घर हो. बीते दशकों में शहरी आबादी में तेज वृद्धि ने बड़ी संख्या में आवासीय व व्यावसायिक परिसरों की जरूरत पैदा की है. परिणामस्वरूप रियल एस्टेट सेक्टर में नयी परियोजनाएं तेजी से आकार ले रही हैं, पर इस क्षेत्र की गतिविधियों के सुचारु संचालन के लिए […]

हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना घर हो. बीते दशकों में शहरी आबादी में तेज वृद्धि ने बड़ी संख्या में आवासीय व व्यावसायिक परिसरों की जरूरत पैदा की है. परिणामस्वरूप रियल एस्टेट सेक्टर में नयी परियोजनाएं तेजी से आकार ले रही हैं, पर इस क्षेत्र की गतिविधियों के सुचारु संचालन के लिए कोई नियामक संस्था अब तक नहीं बनी है.
नतीजतन यह क्षेत्र ठगी, मनमामी वसूली, निर्माण में देरी, भ्रामक दावों और काला धन सरीखी समस्याओं से बुरी तरह ग्रस्त है. मनमोहन सरकार ने इस सेक्टर के कामकाज को व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिए एक विधेयक प्रस्तावित किया था, जो अभी राज्यसभा में विचाराधीन है. अब इसमें कुछ नये प्रावधान जोड़ कर मोदी सरकार ने एक नया विधेयक प्रस्तावित किया है, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर में सुधार की उम्मीदें जगी हैं. इसमें केंद्र और राज्य स्तर पर एक नियामक का प्रस्ताव है, जहां सभी रिहायशी व व्यावसायिक परियोजनाओं का पंजीकरण होगा.
इनसे जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाओं को सार्वजनिक करने से ग्राहकों को निवेश से पूर्व जरूरी जानकारियां मिल सकेंगी. प्रोमोटरों को फ्लैट या व्यावसायिक परिसर में ग्राहक को मिलनेवाली जगह का सटीक ब्योरा देना होगा. इस क्षेत्र में समय पर आवंटन न होना, निर्माण के दौरान कीमतें बढ़ाना तथा नक्शे में बदलाव जैसी शिकायतें आम हैं. प्रस्तावित कानून में इन्हें रोकने के लिए कड़े प्रस्ताव किये गये हैं.
ग्राहकों से नकदी लेकर प्रोमोटर जाने-अनजाने उन्हें भी आपराधिक लेन-देन का हिस्सा बना देते हैं. साथ ही, वे एक प्रोजेक्ट का धन दूसरी जगहों पर भी निवेश कर देते हैं, जिससे परियोजनाओं के पूरा होने में देरी होती है. विधेयक में इन पर लगाम लगाने के प्रावधान भी किये गये हैं. कृषि के बाद सर्वाधिक, 3.5 करोड़, रोजगार देनेवाले तथा औद्योगिक वृद्धि के इस आधार क्षेत्र में इस वर्ष 8-9 फीसदी की दर से वृद्धि की उम्मीद है, जो 2017 में 20 फीसदी तक हो सकती है.
रियल एस्टेट में खामियों का बड़ा कारण प्रोमोटरों के साथ राजनेताओं और नौकरशाहों की सांठ-गांठ भी है. ऐसे में प्रस्तावित विधेयक एक सराहनीय पहल है. इसके कानूनी रूप लेने के बाद असली चुनौती इस पर अमल की होगी और ईमानदारी से अमल होने पर ही ग्राहकों को इसका लाभ मिल सकेगा.

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