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पर्यावरण कानूनों में बदलाव का उद्देश्य

केंद्र की नयी सरकार विकास और सुशासन के वादे से बनी है और जान पड़ता है कि इस काम में वह पुराने कानूनों को बाधक मान कर चल रही है. प्रधानमंत्री एक दिन पहले मुख्यमंत्रियों व न्यायाधीशों के एक संयुक्त सम्मेलन में कह चुके हैं कि उनके कार्यकाल में हर रोज एक कानून को खत्म […]

केंद्र की नयी सरकार विकास और सुशासन के वादे से बनी है और जान पड़ता है कि इस काम में वह पुराने कानूनों को बाधक मान कर चल रही है. प्रधानमंत्री एक दिन पहले मुख्यमंत्रियों व न्यायाधीशों के एक संयुक्त सम्मेलन में कह चुके हैं कि उनके कार्यकाल में हर रोज एक कानून को खत्म किया जायेगा, जिसके लिए 1,700 पुराने कानूनों की पहचान की गयी है.
अब वन एवं पर्यावरण मंत्रियों की बैठक में सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा-संरक्षा से संबंधित पांच कानूनों को खत्म कर एक नया कानून बनाने का इरादा जाहिर किया है. इनमें 1927 में बना इंडियन फॉरेस्ट एक्ट ही नहीं, 1986 में बना एन्वायर्नमेंट प्रोटेक्शन एक्ट और 1988 का वाइल्डलाइफ एक्ट भी शामिल है.
सरकार नेशनल फॉरेस्ट पॉलिसी और नेशनल वाइल्डलाइफ पॉलिसी पर भी पुनर्विचार कर रही है. इन बदलावों के लिए हो रही बैठक के सत्रों के शीर्षक व्यवसाय को आसान बनाने तथा संपदा के निर्माण से संबंधित हैं. इससे आशंका जगती है कि सरकार उद्योग-व्यापार की बढ़वार के लिए पर्यावरण से जुड़े कानूनों में ढील देना चाहती है. यह ठीक है कि सरकार दस शहरों में वायु गुणवत्ता की सूचना के लिए एक निर्देशांक विकसित करना चाह रही है, लेकिन यह समाधान नहीं है, इससे सिर्फ एक चेतावनी प्रणाली विकसित होगी.
पुराने पर्यावरणीय कानूनों की समाप्ति के पक्ष में प्रधानमंत्री के मूल तर्क दो हैं. पहला यह कि भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन विकसित देशों से कम है और दूसरा यह कि विकसित देश चाहते हैं कि भारत ऊर्जा के लिए कोयला व पेट्रोलियम सरीखे प्रदूषणकारी स्नेतों पर ही निर्भर रहे, इसलिए वे एटमी ऊर्जा जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकी हमें नहीं देना चाहते. ये तर्क बहस की मांग करते हैं, क्योंकि कार्बन-उत्सर्जन की दर कम होने से यह साबित नहीं होता कि भारत पर्यावरणीय सुरक्षा के उपायों में आगे है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं. एन्वायर्नमेंटल प्रीफरेंस इंडेक्स में वायु की गुणवत्ता में भारत को 178 देशों की सूची में 155वें स्थान पर रखा गया है. एटमी ऊर्जा-संयत्रों को भी कई अध्ययनों में खतरनाक बताया गया है. इसलिए पर्यावरण संबंधी कानूनों में बदलाव का उद्देश्य पर्यावरण की सुरक्षा होना चाहिए, न कि सिर्फ उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देना.

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