22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राजनीतिक गणित देख कर फैसला

विशेष राज्य का दरजा झारखंड से केंद्र सरकार ने दो–टूक कह दिया है कि विशेष राज्य का दरजा नहीं मिलेगा. पड़ोसी राज्य बिहार को यह दरजा देने का मामला अभी विचाराधीन है. झारखंड के प्रति केंद्र के इस रुख से साबित होता है कि केंद्र विशेष राज्य देने या न देने का फैसला, मेरिट के […]

विशेष राज्य का दरजा

झारखंड से केंद्र सरकार ने दोटूक कह दिया है कि विशेष राज्य का दरजा नहीं मिलेगा. पड़ोसी राज्य बिहार को यह दरजा देने का मामला अभी विचाराधीन है. झारखंड के प्रति केंद्र के इस रुख से साबित होता है कि केंद्र विशेष राज्य देने या देने का फैसला, मेरिट के आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक नफेनुकसान के आधार पर करता है.

विशेष राज्य का दरजा देने का काम राष्ट्रीय विकास परिषद का होता है. परिषद ने इसके मापदंड भी तय कर रखे हैं. लेकिन, इसके बावजूद अब तक विशेष राज्य घोषित करने का फैसला राजनीतिक ही रहा है.

विशेष राज्य के मापदंड के लिए सात बिंदु तय हैं, जिनमें से पांच झारखंड के हक में हैं. झारखंड के साथ भेदभाव यह बता रहा है कि बगैर लड़े, शायद ही विशेष राज्य का दरजा हासिल होगा. बिहार ने अपने हक के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है. उसने विशेष राज्य के दरजे के मापदंडों पर ही सवाल खड़ा किया. इसका नतीजा यह हुआ कि नये मापदंड तय करने के लिए विशेष कमेटी बन गयी.

इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बिहार को विशेष राज्य का दरजा देने की वकालत की है. दरअसल बिहार के मुख्यमंत्री ने एक ओर विशेष राज्य के मापदंडों पर सवाल उठाया, तो दूसरी ओर राजनीतिक पेच भी भिड़ाया. झारखंड को इससे सीख लेते हुए अपनी रणनीति तैयार करनी होगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सत्ता के साझेदार कांग्रेस पर भी नैतिक दवाब बना सकते है.

इसमें कोई हर्ज भी नहीं है, राज्यहित से जुड़ा मामला है. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को भी विशेष राज्य के दरजा की मांग में सुर से सुर मिलाने में शायद ही परहेज हो. केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्ववाली यूपीए की सरकार है. इसका फायदा भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को लेना चाहिए. झारखंड को विशेष राज्य का दरजा देने का मामला चुनावी मुद्दा भी बन सकता है.

भाजपा बिहार को विशेष राज्य का दरजा देने और झारखंड की अनदेखी करने का मामला उछालने का मौका शायद ही छोड़ना चाहेगी. ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेसियों को इसके चुनावी मुद्दा बनने का भान नहीं है. मुश्किल यह है कि स्थानीय स्तर पर कांग्रेस का कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जो इन सब मामलों को लेकर मुखर हो.

अब अगर इस तरह के मामले में भी कांग्रेस के स्थानीय नेता चुप रहेंगे, तो आनेवाले चुनावों में इसका नुकसान भी उठाना पड़ेगा. बहरहाल, राजनीतिक फायदेनुकसान के बावजूद सभी नेताओं को दलीय राजनीति से ऊपर उठ कर झारखंड हित में आवाज उठानी चाहिए, ताकि राज्य की तसवीर बदल सके.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें