देव–भाषा और एक प्राचीन सभ्यता की प्रतीक संस्कृत और इसके प्रेरक ब्राह्मण, दोनों आज देश में विलुप्त होने के कगार पर हैं. संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है. आज यह समाज, राज्य और अपने ही देश में उपेक्षित है.
संस्कृत विद्यालय अब नाममात्र के बचे हैं. संस्कृत पढ़ने–पढ़ानेवाले ब्राह्मण आज उपेक्षित हैं. एक समय राजा–महाराजाओं के महामंत्री, अमात्य, नीति निर्धारक आज हाशिए पर हैं. परशुराम, चाणक्य, बीरबल के वंशजों को आज अपने जीवन–यापन के लिए किसी तरह की सुविधा प्राप्त नहीं है. फटेहाल ब्राह्मण पुरोहित कर्म करके किसी तरह अपने परिवार का भरण–पोषण कर रहे हैं.
फटी हुई धोती, दोरंगी चप्पल, हाथ में झोला और माथे पर तिलक इनके निशान हैं. बीपीएल धारक नहीं होने के कारण इन्हें इंदिरा आवास, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि की सुविधा भी नहीं मिलती है. अपनी बची–खुची जमीन बेच कर ये बच्चों की पढ़ाई एवं बेटियों की शादी करने को मजबूर हैं. आज आरक्षण के कारण साक्षर ब्राह्मण भी छोटे–मोटे काम करने को मजबूर हैं. समाज व सरकार इस पर ध्यान दें.
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