चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
अब यह चार बच्चों वाली बात को देखिए. ये चाहते हैं भारत का हर नागरिक तीन से ज्यादा बच्चे न पैदा करे. इस बहाने से मुसलमानों को भी घसीट लेंगे. इनका खेल बहुत टेढ़ा है. हिटलर भी इसी तरीके का खिलाड़ी था.
वाकया लब-ए-सड़क है. जैसा कि भारतीय समाज के हर गांव में होता है. गोड़ फुलना आजी गांव के रिश्ते में सब की आजी (दादी) लगती हैं. दादी जब उम्र के उस मुकाम पर पहुंच जाती है, तो हर किसी को यह हक मिल जाता है कि वह आजी से खुल्लम-खुल्ला हंसी मजाक करे. उनके दोनों बेटे अपने बीबी-बच्चों के साथ बंबई कमाते हैं.
बेटों ने बहुत मनाया, आरजू-मिन्नत की कि चल अम्मा तुम भी शहर चल. एक बार कुछ दिनों के लिए गयीं भी, लेकिन जल्द ही लौट आयीं. ढेरों शिकायतों के साथ- ‘निगोड़ा शहर! न हंसी न मजाक, बस अपने काम से काम. उहौ कौनो रहे क जगह अहे? माचिस डिबिया माफिक मकान. ऊपर के रहत बा किसी को ना मालुम. ऊ पैसा कमाये क जगह होय सकत है, मुला रहे खातिर त कत्तई ना है.. बेटे ने कहा कि अम्मा अकेले रहती हो, कौनो जरूरत पड़ जाये तो? आजी ने घुड़का- आइंदा से ई बात ना बोलना. अरे पूरा गांव आपन है रे..
आजी लाठी लिये लब-ए-सड़क चौराहे पर आ टकरायीं. कयूम मियां ने जगह दी. आओ आजी, चाय पियो. बस आजी ने इतना सुना नहीं कि कयूम की तीन पीढ़ी को खंगाल आयीं- ई चाय का होत है रे? दूध, दही, माठा.. कुछ और पूछे होते? ई मुंह झूंसी चाह जब से आय बा, गांव खराब होय गवा.. सब को मालूम है कि आजी चाय नहीं पीतीं. फिर भी पूछने के बहाने आजी से बतियाना तो फर्ज बनता ही है. बात को लाल्साहेब ने आगे बढ़ाया- आजी! अब तो दो ठो और निकाले के पड़ी.
– ऊ काऊ रे? आजी को अचरज हुआ.
– ई देखो पंचों. आजी को इत्ता भी नहीं मालुम. सरकार कह रही है कि हर हिंदू औरत को चार बच्चा देना जरूरी है.
आजी हत्थे से उखड़ गयीं- माटी मिले! तोरे बाप की दाढ़ी में. कौन कहेस रे? कहि दे ओसे अपने अम्मा से निकाले चार चाहे चार सौ. ऊ मुआ के होत है तय करे वाला कि चार निकालो?
आजी जब गालियां देते-देते थक गयीं, तो उठ कर चलने को हुईं. आजी आगे बढ़ गयीं, लेकिन चौराहे पर- हर हिंदू औरत चार बच्चे जरूर पैदा करे, का सवाल गोल-गोल घूमता रहा. लखन कहार ने पूछा औरत भी हिंदू होती है? पंडित रामदीन बताते रहे कि औरत की कोई जाति नहीं होती, वो जिसको बरन करती है, उसी जाति की हो जाती है. जब जाति तक नहीं है, तो धर्म कहां से आ गया? कीन उपाधिया की पार्टी जाग गयी- बुड़बक हो लखन!
इ बात जे बोला है ऊ मामूली आदमी ना है. बाबा है, संसद का सदस्य है, समङो? नवल उपाधिया ने बीच में ही टोका- काहे हड़का रहे हो लखन को? कौन बाबा रे, कुछ जानते भी हो? उसपे दर्जनों मुकदमे हैं. चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार का-का नहीं है? उसे बाबा बोल रहे हो? कीन खिसिया गये- यह तो विरोधियों का प्रचार है. कयूम बोले- नवल बेटवा! तुम अकेले हो न? तुम्हें तीन और होना है. तुम्हरे बाप की शादी में हम गये रहे, पीसतीन बजाये रहे. मेरा मन डोले, मेरा तन डोले.. कौन बजाये पिस्तीनवा.. पीसतीन नहीं बासुरी- लाल्साहेब ने दुरुस्त किया. चौराहा ठहाके से भर गया.
भिखई मास्टर ने चिखुरी से पूछा- दादा! आप तो सुराजी हैं, सियासत समझते हैं. ये लोग इतना गैर-जिम्मेवाराना बयान क्यों देते रहते हैं? कभी गोड्से को देश भक्त बताते हैं कभी रामजादा-हरामजादा बोलते हैं, कभी घर वापसी की बात करते हैं. ये सब क्या हो रहा है? चिखुरी मुस्कुराये- इसके पीछे दो कारण हैं.
एक-जिस वजह से देश की जनता ने इन्हें गद्दी दिया, उस मुद्दे पर ये पूरी तरह असफल रहे. उससे बचने का एक ही तरीका है कि उससे देश का ध्यान हटा दिया जाये. दूसरा और असल मुद्दा इनकी छिपी हुई गहरी चाल है. जब इन्होंने रामजादा और हरामजादा का नारा दिया, तो इसके पीछे केवल एक चाल रही कि जो इनके समर्थक रहे, उन तक यह संदेश पहुंच जाये कि अभी भी यह सरकार उतनी ही हिंदू है, जितनी इसकी नींव में रखा हुआ है.
वो अगले चुनाव तक एकजुट रहें. क्योंकि दिन-ब-दिन इनके वोट में गिरावट आ रही है. अब यह चार बच्चों वाली बात को देखिए. ये चाहते हैं भारत का हर नागरिक तीन से ज्यादा बच्चे न पैदा करे. इस बहाने से मुसलमानों को भी घसीट लेंगे. इनका खेल बहुत टेढ़ा है. हिटलर भी इसी तरीके का खिलाड़ी था. लेकिन यह गांधी का मुल्क है. अब गोडसे स्थापित होंगे?
– नाथूराम गोडसे? उसकी मूर्ति लगी?
– इतना ही नहीं, कीन कह रहे थे कि अब नोट के ऊपर से गांधी की तसवीर हटायी जायगी.
चिखुरी ने लंबी सांस ली- कहां-कहां से हटाओगे उसे, वो तो दिलों में बैठ गया है. सीमा लांघ गया है. अब सारी दुनिया में स्थापित हो गया है. चिखुरी को संजीदा होते देख नवल उठ गये. साइकिल की घंटी बजी और गाइड बज गया. दूर तक बजता गया- मोसो छल किये जाये..