प्रधानमंत्री को चाहिए कि सरकारी तंत्र द्वारा सफाई की जिम्मेवारियों का निर्वाह सुनिश्चित करें. तभी जनता के सहयोग की सार्थकता है. रेलवे स्टेशन जाने की उपयोगिता तभी है, जब वहां ट्रेन आये. इसी तरह सफाई की उपयोगिता तभी है, जब नगरपालिका उस कूड़े को रिसाइकिल करे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान को तमाम सिने सितारों का समर्थन मिल रहा है. सूफी गायक कैलाश खेर को प्रधानमंत्री ने इस अभियान में भागीदारी के लिए धन्यवाद दिया. निश्चित ही देशवासियों को स्पष्ट संदेश जा रहा है कि अपने गांव और देश को सुंदर बनाना है. लेकिन स्वच्छ भारत का सपना केवल जनता की भागीदारी से पूरा नहीं होगा, अगर सरकारी तंत्र अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह न करे. नगरपालिका की कूड़ा निस्तारण व्यवस्था को ठीक करना होगा. सड़क पर झाड़ू लगा कर कूड़े को किनारे करने का लाभ तभी है, जब किनारे से उसे हटा लिया जाये, नहीं तो कूड़ा पुन: सड़क पर फैल ही जायेगा. हाल में मैं ट्रेन के सफर में था. स्लीपर कोच का कूड़ेदान भरा हुआ था. प्लेटफॉर्म पर कूड़ेदान नहीं था, मजबूरन कूड़े को बाहर फेंकना पड़ा. यदि हर कोच में कूड़ेदान होता, तो उसे बाहर नहीं फेंकना पड़ता.
आंध्र प्रदेश की बाब्बिली नगरपालिका में घरों से दो प्रकार का कूड़ा अलग-अलग एकत्रित किया जाता है. किचन से निकले गीले कूड़े को पहले एक पार्क में पशुओं के खाने के लिए रख दिया जाता है. बत्तख द्वारा मछली, सूअर द्वारा किचन वेस्ट तथा कुत्ते द्वारा मीट को खा लिया जाता है. शेष को कंपोस्ट करके खाद के रूप में बेच दिया जाता है. कागज, प्लास्टिक तथा मेटल को छांट कर कंपनियों को बेच दिया जाता है, जहां इन्हें रिसाइकिल कर दिया जाता है. जो बच जाता है, उसे लैंडफिल में डाल दिया जाता है. आंध्र की ही सूर्यापेट नगरपालिका एक कदम और आगे है. यहां किराना दुकानों, मीट विक्रेताओं तथा होटलों द्वारा क्रेताओं को अपना थैला लाने पर एक से पांच रुपये की छूट दी जाती है. इन शहरों की सड़कें आज पूरी तरह से साफ-सुथरी हैं.
जो कूड़ा रिसाइकिल नहीं किया जा सकता, वह मुख्यत: दो तरह का होता है. चॉकलेट रैपर तथा आलू चिप्स के पैकेट, जिसे प्लास्टिक तथा मेटल को आपस में फ्यूज करके बनाया जाता है. इन्हें प्लास्टिक की तरह रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है, चूंकि इनमें मेटल होता है और इन्हें मेटल की तरह गलाया नहीं जा सकता है, चूंकि इनमें प्लास्टिक होता है. इसी तरह अकसर कागज के डिब्बों को ऊपर से प्लास्टिक से लैमिनेट कर दिया जाता है. ऐसे कूड़े का उत्पादन बंद होना चाहिए. तब इसे जला कर जहरीली गैसों को वायुमंडल में छोड़ने या लैंडफिल बनाने की जरूरत ही नहीं होगी. अक्षय ऊर्जा मंत्रलय को यह रास्ता पसंद नहीं है. इनका ध्यान बिजली के उत्तरोत्तर ज्यादा उत्पादन पर केंद्रित है. वर्तमान में कूड़े से बिजली बनाने पर मंत्रलय द्वारा 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावॉट की सब्सिडी दी जा रही है. अगर कूड़ा सौ प्रतिशत रिसाइकिल हो जायेगा, तो मंत्रलय का यह धंधा ठप्प पड़ जायेगा.
नगरपालिकाओं की समस्या वित्तीय है. दो तरह के कूड़े को अलग-अलग एकत्रित करने, छांटने और कंपोस्ट बनाने में खर्च ज्यादा आता है. कंपोस्ट और छंटे माल की बिक्री से आमदनी कम होती है. सूर्यापेट का इन मदों पर वार्षिक खर्च 418 लाख है, जबकि आमदनी मात्र 7 लाख रुपये है. अर्थ हुआ कि कूड़े का पूर्णतया पुनर्उपयोग तभी संभव है, जब नगरपालिकाओं को वित्तीय मदद दी जाये. कूड़े के सफल निस्तारण से लोगों का स्वास्थ्य सुधरेगा. क्योंकि नगरपालिका कर्मियों द्वारा कूड़े को न हटाने एवं नालियों को साफ न करने से मच्छर पैदा होते हैं. कूड़े के निस्तारण से हमारे शहर सुंदर हो जायेंगे व विदेशी पर्यटक ज्यादा संख्या में आयेंगे. इन लाभों का आकलन किया जाये, तो सरकार द्वारा स्वच्छ नगरपालिका के लिए सब्सिडी देना आर्थिक दृष्टि से भी उचित होगा.
आपने देखा होगा कि सड़क अथवा रेल पटरी के किनारे से लोग कूड़ा बीन कर कबाड़ियों को बेचते हैं. समस्या है कि इनके लिए विशेष कूड़े को उठाना मात्र लाभदायक होता है. इस दिशा में पूना शहर हमारा मार्गदर्शन करता है. वहां रैग पिकर्स से छांटा हुआ संपूर्ण कूड़ा खरीद लिया जाता है. इनके द्वारा सड़कों, घरों तथा कार्यालयों से अधिकतर कूड़ा उठा लिया जाता है. इस तरह शहर स्वयं साफ हो जाता है.
देश को स्वच्छ बनाने के लिए निम्न कदम उठाने होंगे. पहला, नगरपालिकाओं द्वारा कूड़ा कर्मियों पर सख्ती की जाये और इनके कार्य की सार्वजनिक ऑडिट और जनसुनवाई हो. दूसरा, सभी ऐसे पैकिंग के सामान का उत्पादन बंद कर दिया जाये, जिन्हें रिसाइकिल न किया जा सके. तीसरा, नगरपालिकाओं को सौ प्रतिशत कूड़े को रिसाइकिल करने के लिए इन्सेंटिव दिया जाये. चौथा, रैग पिकर्स के कल्याण व सम्मान के लिए इनके द्वारा एकत्रित संपूर्ण कूड़े को खरीदने की व्यवस्था की जाये.
प्रधानमंत्री को चाहिए कि सरकारी तंत्र द्वारा इन जिम्मेवारियों का निर्वाह सुनिश्चित करें. तभी जनता के सहयोग की सार्थकता है. रेलवे स्टेशन जाने की उपयोगिता तभी है, जब वहां ट्रेन आये. इसी तरह सफाई की उपयोगिता तभी है, जब नगरपालिका उस कूड़े को रिसाइकिल करे.
डॉ भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
bharatjj@gmail.com