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सधुआइन का बैकग्राउंड देखो

जब जनता पूछेगी कि कालाधन कब लाओगे? तब तुम एक लकीर दे दोगे, साध्वी का बैक ग्राउंड देखो. जब जनता कहेगी कि 370 का क्या हुआ, तो एक साधु लकीर खींच देगा कि गोडसे राष्ट्रभक्त है. कितनी लकीर खींचोगे? ऊपरवाला झूठ न बुलवाये. ठंढ में सब कुछ सिकुड़ कर छोटा हो जाता है. दिन को […]

जब जनता पूछेगी कि कालाधन कब लाओगे? तब तुम एक लकीर दे दोगे, साध्वी का बैक ग्राउंड देखो. जब जनता कहेगी कि 370 का क्या हुआ, तो एक साधु लकीर खींच देगा कि गोडसे राष्ट्रभक्त है. कितनी लकीर खींचोगे?

ऊपरवाला झूठ न बुलवाये. ठंढ में सब कुछ सिकुड़ कर छोटा हो जाता है. दिन को देख लो, ये आया वो गया. और रात को देखो, रजाई पाते ही पसर कर ऐसा फैलती है कि काटे नहीं कटती. राजनीति माफिक. ससुरी को जितना सुलझाओ उतनी ही उलझती जाती है. यह नये जमाने की खूबी है. कुछ भी बोल दो और पलट कर माफी मांग लो. कल पूरी रात साधु गरियाता रहा. एक-एक को. जिन्हें मरे मुद्दत हो गयी है, उन्हें भी कम्बख्त नहीं बख्शा..

किसके बारे में बोल रहे हो भाई? ई साधु कौन है? कह कर कयूम मियां ने लाल्साहेब को इशारा किया कि चलो चला जाये चौराहे पर..

चौराहा गुलजार हो चुका था. बोफोर्स नाई भी आज जमा बैठा है. कयूम ने आते ही बोफोर्स को छेड़ा- का बात है भाई, आज हजामत की दूकान बंद है? बोफोर्स कुछ बोले इसके पहले ही उमर दरजी ने टांका लगाया. हजामत की जिम्मेदारी अब उनके पास है, जो सियासत में दखल रखते हैं. अब जनता जनार्दन को ऐसी सुविधा मुहैया करायी जा रही है कि वह घर बैठे अपना थोबड़ा सरकार की ओर सरका दें, सांस बंद करके आंख मीच लें, बस हजामत सामने. चेहरा सफाचट..

लखन कहार से नहीं रहा गया- देख उमर, मुरहप्पन तो करोई मत. सुबहे-सुबह लगे चंदुखाना की गप्प ठोंकने. अबे! यह भी कोई बात है कि सरकार अब हजामत भी बनायेगी? लाल्साहब ने बहस को पलट दिया- यह ‘यू-टर्न’ क्या होता है. मास्टर कह रहे थे कि सरकार यू-टर्न ले रही है. मद्दू पत्रकार ने पूछा- गांव के हो क्या? इस सवाल ने सब को चौंका दिया. कयूम भी चौंके- जे भी कोई सवाल है? मद्दू मुस्कुराये- इसीलिए भुच्चड़ हो. ये हम नहीं कहते, सरकार कहती है. गांव के लोगों को बोलने-बतियाने की तमीज नहीं होती. मद्दू बोलते रहे- इस मुल्क की सरकार में एक मंत्री हैं, जो साधुआईन हैं. उन्हें सरकारी भाषा में साध्वी कहा जाता है. उन्होंने जनता को दो फांक में बांट दिया. उनकी पार्टी को जो वोट दे, वह हुआ रामजादा. और जो न दे, वह हरामजादा. जब इस पर बवाल हो गया, तो साहेब को सामने आना पड़ा. साहेब एक हाथ और आगे निकल गये. उन्होंने जनता से कहा- आप लोग पहले साधुआइन का ‘बैकग्राउंड’ देखिए. वे गांव से आती हैं.. यानी जो ऐसी बात करता मिले, आप समझें कि वह अपने ‘बैकग्राउंड’ से बोल रहा है और वह गांव से है. उमर दरजी ने रोका- हुजूर यह बैकग्राउंड का होता है? कोली दुबे ने तजरुमा किया- बैक कहते हैं पिछवारे को, ग्राउंड कहते हैं मैदान को.

चिखुरी ने रोका-अंगरेजी टेढ़ी जुबान है. बोलो कुछ, अर्थ निकलता है कुछ और. गांव की भाषा, तमीज, तहजीब, उठान-बैठन, सलीका आदि इनसे उनका वास्ता नहीं है. यह मुल्क ही गांव का है. यहां 70 फीसदी आबादी गांव में है. शहर में कुल आबादी का सत्तर फीसद आबादी की जड़ें गांव में हैं. यानी देश में कुल डेढ़ फीसद ही तमीज से बोलते हैं, बाकी भुच्चड़ हैं.. यह रही साधुआइन की बात. अब सुनो साधु ने क्या कहा. साधू ने कहा- गोडसे जिसने महात्मा गांधी की हत्या की, वह बहुत बड़ा राष्ट्रभक्त रहा. यानी बापू देशद्रोही थे?

ये साधू कौन है? इनका नाम है साक्षी महराज..

वही साक्षी जिन पर आशाराम वाली धारा..? जी वही.

धन्य हो! धन्य हो सरकार! तो यह सरकार संसद में यह बोल रही है? चिखुरी ने बोलना शुरू किया- हम अजीब दौर से गुजर रहे हैं. याद है, जब अरुण जेटली ने संसद में कहा कि सरकार ने कब कहा था कि वह काला धन वापस लायेगी? प्रतिपक्ष के पास कोई जवाब नहीं था. किसी ने भी यह नहीं कहा कि ऐसा चुनाव में देश की जनता से कहा गया था. यानी जनता से कुछ भी कहा जाये, उसे संजीदगी से लेनेवाले मूर्ख होते हैं और इस मुल्क में मूर्ख बहुमत तक दे सकते हैं? जनता से बोली हुई बात की कोई जवाबदेही नहीं बनती. इसे कहते हैं यू-टर्न वाली सरकार..

बहस चलती रही. सरकार की बखिया उधड़ती रही. लेकिन कीन उपाधिया से बरदाश्त नहीं हुआ और उनका पारा चढ़ गया- लेकिन कांग्रेस क्यों नहीं बोलती? चिखुरी ने घुड़का- कांग्रेस अगर कहती कि काला धन तकनीकी वजह से नहीं लाया जा सकता, तो तुम मानते क्या? लेकिन अब तो यह सरकार ही कांग्रेस का काम कर रही है. और एक बात बताओ, तुम किसी भी सवाल का जवाब क्यों नहीं दे रहे हो. बस एक फालतू लकीर खींच कर भरमाते हो कि अब इसे पीटो. जनता पूछेगी कि कालाधन कब लाओगे? तब तुम एक लकीर दे दोगे, साध्वी का बैक ग्राउंड देखो. जब जनता कहेगी कि 370 का क्या हुआ, तो एक साधु लकीर खींच देगा कि गोडसे राष्ट्रभक्त है. कितनी लकीर खींचोगे? याद रखना, एक दिन जब जनता लकीर खींचेगी तो क्या गुजरेगा..

चलो चाय पियो और हाथ सेंको. ठंढ ज्यादा है.. और चाय चलने लगी. नवल उपाधिया गाते हुए आगे बढ़ गये.. जाड़ा लगे..

चंचल

सामाजिक कार्यकर्ता

samtaghar@gmail.com

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