मतदाताओं को जागरूक करने के लिए प्रभात खबर का शुरू किया गया जागरूकता अभियान अपने आप में अद्वितीय है, जिसकी खुले दिल से प्रशंसा की जानी चाहिए. जो आंकड़ा प्रभात खबर के द्वारा दर्शाया गया है, वह चौंकाने वाला है. और आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते. इन आंकड़ों पर तो सवाल विधानसभा में भी उठाना चाहिए था तथा इस पर समग्र बहस होनी चाहिए थी, लेकिन झारखंड विधानसभा तो अकर्मठ नेताओं का जमावड़ा है.
आखिर इस पर बहस करेगा कौन? कम से कम लोकतंत्र के चौथा खंभे (प्रेस) ने तो अपनी कर्तव्य का निर्वाहन करते हुए इन आंकड़ों को जनता के सामने रख दिया है. अब जनता जर्नादन ही समङो कि आखिर उसे कैसी सरकार बनानी है. अथवा बनानी है भी कि नहीं? किसी राज्य में चुनाव सिर्फ सरकार अथवा राजनीतिक पार्टियों के लिए ही अग्नि परीक्षा का समय नहीं होता है, बल्कि वह देश के सामने उस राज्य जनता की समझदारी का स्तर भी परिलक्षित करता है.
प्रभात खबर ने राज्य की जनता को राज्य के हालात से रू-ब-रू कराने का काम किया है. वैसे अगर हम अगर राज्य की प्रशासनिक कार्यशैली की बात करें तो प्रशासन आज तक यह नहीं मालूम कर पाया है कि राज्य में हिंसा की हर वारदात के पीछे क्या नक्सलियों का हाथ है? राज्य अलग होने के बाद नक्सलियों की संख्या दिन दोगुनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ी है. यही वजह है कि हिंसक वारदातों पर अंकुश लगाना प्रशासन के लिए मुश्किल हो रहा है. क्या अपने लोगों को नक्सली बनाने के लिए ही हमने अलग राज्य की नींव रखी थी? सच्चाई जो भी हो, इसका जवाब तो राज्य सरकार ही दे सकती है. यही नहीं, आनेवाली सरकार को इन चुनौतियों से निबट कर अपने वजूद को सिद्ध करना होगा.
मृणाल कांत रक्षित, धुर्वा, रांची