मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क नेताओं को बुलाया जाना साबित करता है कि भारत सार्क को लेकर गंभीर है. उसकी चाहत है कि सार्क फिर से सक्रिय हो. इसके सदस्य देश आपसी सहयोग करें. हालांकि भारत के ही कई सार्क देशों से जटिल विवाद हैं. पाकिस्तान के बीच कश्मीर से लेकर तमाम मसलों पर मतभेद हैं. अगर बात श्रीलंका और बांग्लादेश की करें, तो इन दोनों के साथ भारत के संबंधों को हमारी प्रांतीय राजनीति बहुत प्रभावित कर रही है.
आमतौर पर मृतपाय सार्क के सदस्य देशों के बीच सहयोग कम और कटुता ही अधिक रही है. 26-27 नवंबर को काठमांडू में 18वां सार्क शिखर सम्मेलन शुरू हो रहा है. हालांकि, पूरी दुनिया परस्पर आर्थिक सहयोग के महत्व को समझने लगी है, पर सार्क देशों को इस मोर्चे पर अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी है. पिछले कुछ समय में जितनी तेजी से भारत का आर्थिक सहयोग दूसरे देशों के साथ बढ़ा है, सार्क सदस्य देशों के साथ उतनी तेजी से नहीं बढ़े हैं.
साउथ एशिया में इंट्रा-रीजनल ट्रेड सिर्फ छह फीसदी है, जबकि दुनिया के दूसरे क्षेत्रीय संगठनों की बात करें, तो यूरोपियन यूनियन का आपसी कारोबार 60 फीसदी, नाफ्टा का 50 फीसदी और आसियान का 25 फीसदी है. अगर सार्क के सदस्य देशों के साथ अलग-अलग व्यापार पर नजर डालें, तो बांग्लादेश सबसे बड़ा साथी दिखता है. जनवरी से नवंबर, 2013 तक के 11 महीनों में भारत ने बांग्लादेश के साथ 557 करोड़ डॉलर का कारोबार किया. इसके बाद है श्रीलंका, जिसके साथ भारत का कारोबार 415 करोड़ डॉलर का रहा. इसी तरह नेपाल के साथ 298 करोड़ डॉलर और पाकिस्तान के साथ 222 करोड़ डॉलर का कारोबार 11 महीनों में हुआ. इन देशों के अलावा अफगान के साथ भारत का व्यापार करीब 60 करोड़ डॉलर, भूटान के साथ करीब 38 करोड़ डॉलर और मालदीव के साथ करीब 10 करोड़ डॉलर का रहा. इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सार्क देशों के साथ आपसी कारोबार बढ़ाने की गुंजाइश बहुत ज्यादा है.
सार्क देशों में आर्थिक सहयोग की खराब हालत की एक बानगी देखिए. कुछ साल पहले भारत के प्रमुख औद्योगिक समूह टाटा ने बांग्लादेश में तीन अरब डॉलर के निवेश की योजना बनायी थी. टाटा वहां पर अलग-अलग क्षेत्रों में निवेश करना चाहता था. पर वहां इसका भारी विरोध शुरू गया. बांग्लादेश की खालिदा जिया के नेतृत्व में तमाम विपक्षी दलों ने टाटा के बांग्लादेश में निवेश की योजना का यह कह कर विरोध किया कि वह देश के लिए इस्ट इंडिया कंपनी साबित होगा. फिर बांग्लादेश सरकार ने भी टाटा के प्रस्ताव को हरी झंडी देने में देरी की. टाटा समूह ने निवेश योजना के तहत स्टील प्लांट, यूरिया फैक्ट्री और कोयला खदान के लिए 1,000 मेगावाट क्षमता वाली बिजली इकाई लगाने का प्रस्ताव दिया था. इस उदाहरण से साफ है कि सार्क देशों में आपसी व्यापार को गति देने के लिहाज से खराब माहौल है.
दरअसल, दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौता (साफ्टा) के क्रियान्वयन में ‘सराहनीय प्रगति’ के चलते सार्क देशों के बीच व्यापार के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की जरूरत है. दक्षिण एशिया में आर्थिक वृद्धि में तेजी लाने में व्यापार सबसे महत्वपूर्ण औजार हो सकता है. साफ्टा के क्रियान्वयन में सराहनीय प्रगति हुई है, फिर भी काफी कुछ किया जाना बाकी है. सार्क देशों के बीच साफ्टा पर 2004 में इस्लामाबाद में हस्ताक्षर किया गया था और इसके तहत वर्ष 2016 के अंत तक सीमा शुल्क घटा कर शून्य पर लाने का लक्ष्य रखा गया है. साफ्टा के तहत सार्क देशों के बीच व्यापार बढ़ तो रहा है, पर यह हमारे कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार की तुलना में बहुत कम है, जबकि संभावनाएं ज्यादा हैं.
अगर आर्थिक पहलू से हट कर बात करें, तो सार्क शिखर सम्मेलन में तमाम विषयों के साथ-साथ आतंकवाद को कुचलने के सवाल पर एक साथ रणनीति बनाने पर कोई एक राय बन जाये, तो बेहतर रहेगा.
फिलहाल, यह अहम नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काठमांडू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से अलग से मुलाकात करेंगे या नहीं. हां, यह जरूरी है कि मोदी-शरीफ और बाकी राष्ट्राध्यक्ष आतंकवाद के मसले पर दीर्घकालिक रणनीति को अंतिम रूप देने में सफल हो जायें. सार्क देश लंबे समय से आतंकवाद का सामना कर रहे हैं. बेहतर होता कि इस अहम मसले पर सार्क देश मिल कर काम करते. कुछ लोग कहते हैं कि सार्क आतंकवाद से लड़ने का संकल्प तो लेता है, पर बात आगे नहीं बढ़ पाती. इसके अलावा भी तमाम मसलों पर सार्क में आपसी तालमेल और परस्पर सहयोग का अभाव ही दिखता है.
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई तथा इसे जड़ से खत्म करने के लिए सार्क शिखर बैठकों में हर बार रस्मी तौर पर प्रस्ताव पारित होता है. इसमें कमोबेश यही कहा जाता है कि सार्क देश आतंकी गतिविधियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े लोगों की गिरफ्तारी, उन पर अभियोजन और उनके प्रत्यर्पण में सहयोग करेंगे. इसमें हर तरह के आतंकवाद के सफाये और उससे निपटने के लिए सहयोग को मजबूत करने पर जोर दिया जाता है.
साथ ही यह भी कहा जाता है कि ये मुल्क अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होने देंगे. प्रस्ताव में आतंकवाद, हथियारों की तस्करी, जाली नोट, मानव तस्करी आदि चुनौतियों से निपटने में क्षेत्रीय सहयोग की बात कही जाती है. हालांकि, कुल मिला कर बात प्रस्ताव से आगे नहीं बढ़ती. सार्क सम्मेलन के दौरान साइबर अपराध, मानव तस्करी तथा राष्ट्रीय सीमाओं पर हथियारों की गैरकानूनी आवाजाही जैसे समान हित के विषयों पर विचार होगा.
नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क राष्ट्रों के नेताओं को आमंत्रित करके इस मृत होते जा रहे संगठन को फिर से जिंदा करने की अच्छी पहल की थी. आप गौर से देखें, तो पायेंगे कि सार्क की तभी मीडिया में थोड़ी बहुत चर्चा होती है, जब इसका शिखर सम्मेलन होता है. इसके बाद इसकी गतिविधियों के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं रहती. इस लिहाज से मोदी की पहल महत्वपूर्ण थी.
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक-राजनीतिक संगठन है. इसकी स्थापना 8 दिसंबर, 1985 को भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव एवं भूटान द्वारा मिल कर की गयी थी. अप्रैल, 2007 में 14वें शिखर सम्मेलन में अफगानिस्तान इसका आठवां सदस्य बना. 1970 के दशक में बांग्लादेश के तत्कालीन राष्ट्रपति जियाउर रहमान ने दक्षिण एशियाई देशों के एक व्यापार गुट के सृजन का प्रस्ताव रखा. मई, 1980 में दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग का विचार रखा गया. अप्रैल, 1981 में सातों देश के विदेश सचिव पहली बार कोलंबो में मिले.
इनकी समिति ने क्षेत्रीय सहयोग के लिए पांच क्षेत्रों की पहचान की.
बहरहाल, मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में सार्क नेताओं को बुलाया जाना साबित करता है कि भारत सार्क को लेकर गंभीर है. उसकी चाहत है कि सार्क फिर से सक्रिय हो. इसके सदस्य देश आपसी सहयोग करें. हालांकि, भारत के ही कई सार्क देशों से जटिल विवाद हैं. पाकिस्तान के बीच कश्मीर से लेकर तमाम मसलों पर मतभेद हैं. अगर बात श्रीलंका और बांग्लादेश की करें, तो इन दोनों के साथ भारत के संबंधों को हमारी प्रांतीय राजनीति बहुत प्रभावित कर रही है. तृणमूल सरकार ने तीस्ता जल-समझौता और सीमा-समझौता नहीं होने दिया और तमिल पार्टियां श्रीलंका के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने में बाधा पहुंचाती हैं.चूंकि दुनिया उम्मीद पर टिकी है. इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि सार्क देश देर से ही सही, अब परस्पर आपसी सहयोग करेंगे.
विवेक शुक्ला
वरिष्ठ पत्रकार
vivekshukladelhi@gmail.com