भारतीय राजनीति में अच्छी बात बोलो तो उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है और न बोलो तो अयोग्य कहा जाता है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह बात कि मुसलमान देशभक्त हैं, कुछ लोगों को खटक गयी. कुछ लोग तो इसे एक परिष्कृत राजनीतिक चोंचला समझने लगे. शाही इमाम ने तो यहां तक कह दिया कि इस देश के मुसलमानों को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.
पता नहीं कि सर्टिफिकेट की जरूरत है भी या नहीं, लेकिन हाल ही में एक सज्जन, हिफजुर रहमान साहब ने प्रभात खबर (शनिवार, 27 सितंबर) के माध्यम से कुछ छुटभैये नेताओं के जहर उगलने वाले वक्तव्यों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया. बड़ी अच्छी बात है, क्योंकि इस देश में अलगाववादी और बांटनेवाले लोग काबिल-ए-बरदाश्त नहीं हो सकते. चाहे वे किसी धर्म या जाति के हों. लेकिन हिफजुर साहब का नजरिया अगर निष्पक्ष होता तो बहुत खुशी होती. उन्होंने एक वर्ग विशेष के नेताओं की तो आलोचना कर डाली, लेकिन जनाब ओवैशी साहब के जहर उगलने वाली बातों को नजरअंदाज कर दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी साहब के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, जो निंदनीय है.
असदुद्दीन ओवैसी साहब के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने तो हैदराबाद में एक भाषण के दौरान यहां तक कह डाला था कि अगर मुसलमानों को 15 मिनट छोड़ दिया जाये तो 25 करोड़ मुसलमान एक अरब लोगों को ठीक कर देंगे (सौजन्य: इंडिया टीवी का शो ‘आप की अदालत’). तो मैं हिफजुर साहब से यह जानना चाहूंगा कि क्या यह जहर उगलनेवाली बात नहीं है? वैसे मुङो उनकी इस खुशफहमी पर तरस आता है कि इस देश के नेता एक खास तबके को निशाना बनाते हैं. उत्तर प्रदेश में आजम खां साहब कितना जहर उगलते हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. अंत में बस यही कहना चाहूंगा कि इस देश के मुसलमान बेशक देशभक्त हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो कराची में ठंड पड़ने पर यहां छींकना शुरू कर देते हैं.
प्रभात नायक, रांची