योगेंद्र यादव
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देश में बने बेरोजगारी का रजिस्टर
योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com देश को अगर कोई राष्ट्रीय रजिस्टर चाहिए, तो वह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय बेरोजगारी रजिस्टर है. अगर सरकार इस प्रस्ताव को मान लेती है, तो देश का हजारों करोड़ रुपये का खर्चा बचेगा, करोड़ों लोग भय और आशंका से मुक्त हो जायेंगे और देश बेरोजगारी […]
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
देश को अगर कोई राष्ट्रीय रजिस्टर चाहिए, तो वह राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय बेरोजगारी रजिस्टर है. अगर सरकार इस प्रस्ताव को मान लेती है, तो देश का हजारों करोड़ रुपये का खर्चा बचेगा, करोड़ों लोग भय और आशंका से मुक्त हो जायेंगे और देश बेरोजगारी की समस्या को सुलझाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठायेगा.
हालांकि, प्रधानमंत्री ने दिल्ली के अपने भाषण में एनआरसी की योजना से पांव खींचने के संकेत दिये, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर यह नहीं कहा कि सरकार आगे इस योजना पर अमल नहीं करेगी. प्रधानमंत्री ने एनआरसी के बारे में बोलते हुए असत्य का सहारा लिया, कहा कि इस पर तो चर्चा भी नहीं हुई है.
सच यह है कि एनआरसी की चर्चा अनेक बार आधिकारिक रूप से हो चुकी है. इसकी घोषणा पिछले गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने की थी. भाजपा ने इसे अपने 2019 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में शामिल किया. कैबिनेट द्वारा पारित राष्ट्रपति के अभिभाषण में बाकायदा इस योजना को लागू करने की घोषणा हुई है.
वर्तमान गृहमंत्री कई बार संसद समेत तमाम मंचों पर एनआरसी की योजना को दोहरा चुके हैं, साल 2024 तक इस रजिस्टर को पूरा करने का आश्वासन भी दे चुके हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा मासूमियत दिखाना, मानो उन्हीं इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था, यह लोगों को आश्वस्त करने की बजाय उनकी आशंकाओं को और बढ़ायेगा.
नागरिकता रजिस्टर के पक्षधर कहते हैं कि किसी भी देश के पास अपने सभी नागरिकों की एक प्रमाणित सूची होनी चाहिए. हां, देश के सभी नागरिकों की प्रामाणिक सूची बनाने में कोई एतराज नहीं होना चाहिए. इससे योजनाओं को लागू करने में मदद ही मिलेगी. सवाल यह है कि ऐसी सूची कैसे तैयार हो? क्या इसके लिए 130 करोड़ से अधिक भारतीयों की नये सिरे से गिनती की जाये? क्या भारत में रहनेवाले हर व्यक्ति पर जिम्मेदारी डाली जाये कि वह इस सूची में शामिल होने के लिए अपनी नागरिकता का सबूत दे? विवाद इन दो सवालों पर है.
अगर सरकार की नीयत देश के नागरिकों की एक प्रामाणिक सूची बनाने की है, तो नये सिरे से शुरुआत करने की कोई जरूरत नहीं है. पूरे देश में वोटर लिस्ट बनी हुई है. अगर बच्चों का नाम भी जोड़ना है, तो राशन कार्ड की मदद ली जा सकती है. इसके अलावा अब अधिकांश हिस्सों में आधार कार्ड उपलब्ध है. इसके अलावा 2021 में होनेवाली जनगणना भी है.
इन सब सूचियों का कंप्यूटर से मिलान कर नागरिकता का रजिस्टर बन सकता है. इसके लिए करोड़ों लोगों को परेशान करने की कोई जरूरत नहीं है. इस सूची में जिन नामों पर कोई आपत्ति हो या शक हो सिर्फ उन्हीं से प्रमाणपत्र मांगे जा सकते हैं. करोड़ों गरीब लोगों के सर पर एनआरसी की तलवार लटकाने की कोई जरूरत नहीं है.
देश को जिस रजिस्टर की सख्त जरूरत है, वह है बेरोजगारी का रजिस्टर. बेरोजगारी के आंकड़े विश्वसनीय तरीके से इकट्ठे करनेवाली संस्था ‘सेंटर फॉर द मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी’ का अनुमान है कि इस समय देश में बेरोजगारी की दर 7.6 प्रतिशत है. ये पंद्रह साल से ऊपर की उम्र के वे लोग हैं, जो काम करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा. इस हिसाब से देश के 3.26 करोड़ लोग बेरोजगार हैं. हैरानी की बात यह है कि इन बेरोजगारों की कोई सूची सरकार के पास नहीं है.
एक जमाने में सरकार ने एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज बनाये थे, लेकिन वह सब ठप पड़े हैं. एंप्लॉयमेंट एक्सचेंज में सिर्फ उन्हीं का नाम दर्ज होता है, जो जाकर वहां अपना नाम दर्ज करवायें. राष्ट्रीय सैंपल सर्वे पांच साल में बेरोजगारों का एक सर्वेक्षण करता है, लेकिन देशभर में एक प्रतिशत से भी कम लोगों का सैंपल लिया जाता है. आज तक देश में सभी बेरोजगारों की कोई एक सूची तैयार ही नहीं हुई है.
अगर सरकार चाहे, तो 2021 की जनगणना के साथ बेरोजगारों का रजिस्टर भी बनाया जा सकता है. जनगणना में परिवार के हर व्यक्ति की आयु शिक्षा और कामकाज के बारे में जानकारी ली जाती है. इस बार यह भी पूछा जा सकता है कि क्या वह व्यक्ति काम करना चाहता है? क्या उसने अपने लिए कामकाज ढूंढने की कोशिश की है?
क्या उसके बावजूद भी वह बेरोजगार है? बस इतने सवाल पूछने भर से देश के हर बेरोजगार की सूची बनाने का काम शुरू हो जायेगा. राष्ट्रीय बेरोजगार रजिस्टर का मतलब सिर्फ बेरोजगारों की सूची नहीं होगा. इसमें बेरोजगारी की किस्म भी देखी जायेगी.
कोई व्यक्ति पूरी तरह बेरोजगार है या आंशिक रूप से बेरोजगार. यह भी दर्ज होगा कि वह किस प्रकार का रोजगार कर सकता है? उसे कितनी शिक्षा या कौन सा हुनर हासिल है? ये सूचनाएं हासिल करने से सरकार को बेरोजगारों के लिए नीति बनाने में मदद मिलेगी. जिन बेरोजगारों का नाम इस रजिस्टर में आये और जिन्हें एक खास अवधि में सरकार रोजगार नहीं दिला पाती, उनके लिए सरकार को कोई व्यवस्था करनी पड़ेगी.
यह काम आसान नहीं होगा. लेकिन एनआरसी बनाने और हर व्यक्ति की नागरिकता के सबूत जुटाने से आसान होगा. यह रजिस्टर नागरिकों में आशंका की बजाय आशा का संचार करेगा. देश को अतीत में ले जाने की बजाय भविष्य की ओर ले जायेगा. क्या यह सरकार ऐसे किसी भविष्य मुखी कदम का संकल्प रखती है? या सिर्फ अतीत के झगड़ों में उलझाकर जनता की आंख में धूल झोंकना चाहती है?
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