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सदमे में श्रीलंका
कोलंबो और अन्य स्थानों पर रविवार को हुए आतंकी हमलों में मरनेवालों की संख्या 290 हो चुकी है तथा 500 से अधिक घायलों का उपचार चल रहा है. रविवार और सोमवार को भारी मात्रा में जीवित बम भी बरामद हुए हैं. हमलों की भयावहता इंगित करती है कि इनके पीछे किसी संगठित गिरोह का हाथ […]
कोलंबो और अन्य स्थानों पर रविवार को हुए आतंकी हमलों में मरनेवालों की संख्या 290 हो चुकी है तथा 500 से अधिक घायलों का उपचार चल रहा है. रविवार और सोमवार को भारी मात्रा में जीवित बम भी बरामद हुए हैं.
हमलों की भयावहता इंगित करती है कि इनके पीछे किसी संगठित गिरोह का हाथ है. करीब 37 सालों तक चले जातीय गृहयुद्ध की आग से झुलसकर 2009 में निकले इस द्वीपीय देश के लिए यह हमला बड़ा आघात है. अभी देश गृहयुद्ध की छाया से पूरी तरह निकला नहीं है कि बीते सालों में सांप्रदायिक टकराव की चुनौती तेजी से बढ़ी है.
तमिल विद्रोहियों और श्रीलंकाई सेना के संघर्ष में 16 हजार से अधिक नागरिक तथा पांच हजार से अधिक सैनिक अभी तक लापता हैं. उसमें एक लाख से ज्यादा लोग मारे गये थे. लिट्टे के विरुद्ध निर्णायक अभियान में तमिल आबादी पर भयंकर अत्याचार और हत्याओं के मामलों का भी निपटारा बाकी है.
इसी बीच सरकार को सिंहली बौद्धों और मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ती खाई को पाटने की समस्या से भी जूझना पड़ रहा था, लेकिन आतंकी हमलों ने अब ईसाई तबके को भी तनाव के माहौल में खींच लिया है. हालांकि पहले भी ईसाई समुदाय पर सांप्रदायिक हमलों की घटनाएं होती रही हैं, परंतु दंगे, लूट और आगजनी जैसी वारदातें नहीं होती थीं. जातीय और सामुदायिक संघर्षों से भी यह समुदाय बचता रहा है.
आबादी में करीब सात फीसदी की हिस्सेदारी वाले ईसाइयों के लिए हालात अब पहले जैसे नहीं रह सकेंगे. पर्यवेक्षकों की मानें, तो रविवार को ईस्टर के पवित्र अवसर पर हुए हमले बहुसंख्यक सिंहली बौद्ध आबादी और करीब 10 फीसदी मुस्लिम आबादी के बीच खाई को बहुत बढ़ा देंगे तथा इसका फायदा दोनों तरफ के चरमपंथी गुटों को मिलेगा. साल 2006 से 2009 तक सेना की कार्रवाई और लिट्टे के खात्मे के बाद तमिल हिंदू समुदाय अभी अपने पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहा है.
सामाजिक और धार्मिक तनावों के साथ राजनीतिक उथल-पुथल भी अस्थिरता का कारण बन सकता है. कुछ समय पहले पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह से प्रधानमंत्रियों की नियुक्ति और बर्खास्तगी हुई तथा इसमें संसद और अदालत को भी दखल देना पड़ा. आर्थिक लिहाज से श्रीलंका के लिए हालिया साल अच्छे रहे हैं तथा विभिन्न विकास सूचकांकों में उसकी स्थिति बेहतर हुई है.
पर, इधर उसकी आर्थिकी भी लड़खड़ायी है. इस वित्त वर्ष में वृद्धि दर के चार फीसदी रहने की संभावना जतायी गयी है, पर पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में यह दर 1.8 फीसदी तक लुढ़क गयी थी. श्रीलंका के कॉरपोरेट सेक्टर में हुए एक हालिया सर्वे में 55 फीसदी लोगों ने आशंका जाहिर की है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर जारी रहेगा. ऐसी स्थिति में हिंसा और आतंक का माहौल देश को तबाही के कगार पर पहुंचा देगा. यह संतोष की बात है कि हमलों की जांच तेज गति से चल रही है तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी मदद की पेशकश की है.
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