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प्रदूषण भी हो मुद्दा
चुनावी माहौल की सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. बैठकों, बयानों और बहसों में मुद्दों की भरमार है. जिस हवा में सांस लेकर इन सारी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, उसके जानलेवा प्रदूषण पर चर्चा की कमी है. दिल्ली और ऑस्ट्रिया के दो नामी शोध संस्थाओं की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि […]
चुनावी माहौल की सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं. बैठकों, बयानों और बहसों में मुद्दों की भरमार है. जिस हवा में सांस लेकर इन सारी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है, उसके जानलेवा प्रदूषण पर चर्चा की कमी है.
दिल्ली और ऑस्ट्रिया के दो नामी शोध संस्थाओं की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण की रोकथाम के मौजूदा कायदे-कानून के सही तरीके से पालन के बावजूद 2030 तक 67.4 करोड़ से अधिक भारतीय बेहद दूषित हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त होंगे.
इसका सीधा मतलब है कि इस मसले से जुड़े नियमों और प्रयासों पर गंभीरता से समीक्षा करने की जरूरत है. यह समस्या कमोबेश समूचे देश में है, लेकिन सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों यानी उत्तर भारतीय नदी क्षेत्र में जहरीली हवा की जद में ज्यादातर आबादी है. इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के हिस्से शामिल हैं. इनके अतिरिक्त दूसरे राज्यों में भी प्रदूषण का स्तर तय मानकों से ऊपर है.
ग्रीनपीस के अध्ययन के मुताबिक, दुनिया के सबसे प्रदूषित 10 शहरों में से सात भारत में हैं. हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली ही दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी है. इसके साथ इस तथ्य का संज्ञान भी लिया जाना चाहिए कि दमघोंटू हवा की गंभीरता के लिहाज से सबसे खराब 20 शहरों में से 18 भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हैं.
जहरीली हवा में सांस लेने के कारण लाखों लोग असमय ही मौत के मुंह में समा जाते हैं और बीमारों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है. स्वास्थ्य पर बुरे प्रभाव के कारण हमारी श्रम क्षमता पर भी दबाव बढ़ रहा है. वायु प्रदूषण के मुख्य कारण घरों, उद्योगों और वाहनों से होनेवाला उत्सर्जन है. तेज आर्थिक विकास और उपभोग में बढ़त ने ऊर्जा की मांग में भारी बढ़ोतरी की है.
इसका एक नतीजा यह भी है कि पिछले साल हमारे देश में 2017 की तुलना में करीब पांच फीसदी कार्बन उत्सर्जन ज्यादा हुआ है. भारत ने स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छता पर कुछ सालों से अपना ध्यान केंद्रित किया हुआ है, पर इस कोशिश को गति देने की दरकार है. विभिन्न शहरों का राज्य के स्तर पर अध्ययन किया जाना चाहिए तथा प्रदूषण के कारणों को दूर करने की दिशा में प्रयासरत होना चाहिए.
कई इलाकों में दूसरे राज्यों के साथ साझेदारी में यह पहलकदमी की जानी चाहिए, क्योंकि वहां प्रदूषण के कारण सिर्फ क्षेत्रीय नहीं हैं. चूंकि दक्षिण एशिया इस समस्या से सबसे अधिक ग्रस्त है, इस कारण पड़ोसी देशों के साथ सहभागिता भी जरूरी है. प्रदूषण की चुनौती को सिर्फ हवा की गुणवत्ता तक ही सीमित कर नहीं देखा जाना चाहिए.
आर्थिक विकास, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण, शहरी प्रबंधन और नागरिकों की जागरूकता के साथ इस समस्या को जोड़ना होगा, ताकि समाधान की समुचित राह निकल सके. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस चुनाव में विवेकपूर्ण और तर्क सम्मत चर्चा होगी तथा उसके आधार पर आगे की नीति और रणनीति तैयार होगी.
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