आर्थिक स्थिति को पटरी पर बनाये रखने के लिए आमदनी, खर्च और बचत के सही संतुलन का होना जरूरी है. इसी हिसाब से भविष्य के लिए निवेश के लिए भी गुंजाइश बनती है. यह बात किसी परिवार, संस्था और देश पर समान रूप से लागू होती है.
हालांकि हमारी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर संतोषजनक है और उसके बुनियादी आधार मजबूत हैं, लेकिन कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के अनुपात में घरेलू बचत और पारिवारिक बचत की घटती दरें चिंताजनक हैं. वित्त वर्ष 2012 में घरेलू बचत की दर 34.6 फीसदी थी, जो 2018 में घटकर 30.5 फीसदी हो गयी. इसकी तुलना में पारिवारिक बचत दर अधिक तेजी से कम हुई है. जहां यह 2012 में 23.6 फीसदी थी, वहीं 2018 में 17.2 फीसदी रह गयी है. इसके बरक्स पारिवारिक उपभोग दर में बढ़ोतरी हुई है. पिछले वर्ष में तीन फीसदी की बढ़त के साथ यह आंकड़ा 59 फीसदी रहा था, जिसके चालू वित्त वर्ष में 59.5 फीसदी होने का अनुमान है.
इस अनुमान और बीते सालों के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस साल भी बचत दरें नीचे आयेंगी. बचत की कमी का एक नतीजा यह है कि जरूरी मदों में निवेश के लिए पूंजी में कमी आयेगी, जबकि इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, उद्यमों के लिए कर्ज और कार्यक्रमों के लिए धन की बड़ी जरूरत है. जानकारों की राय है कि इस स्थिति के तीन मुख्य कारण हो सकते हैं- परिवारों में बढ़ता उपभोग, रोजगार के अवसरों की कमी और वित्तीय जवाबदेही में बढ़त.
उपभोग का बढ़ना एक तरह से उत्पादन और मांग के लिए सकारात्मक है, पर जरूरी खर्च के बाद थोड़ा-बहुत बचत न कर पाना घटती क्रय शक्ति को भी इंगित करता है. इस संदर्भ में पारिवारिक कर्ज का बढ़ना भी एक बड़ा कारण हो सकता है. जीडीपी के अनुपात में यह 2012 में 3.3 फीसदी था, जो 2018 में 4.3 फीसदी हो गया है. मतलब यह कि उपभोग के लिए लोगों ने धन उधार लिया है, जिसकी देने की जिम्मेदारी के चलते उनकी बचत कम हो पा रही है.
इस स्थिति को बेहतर करने के लिए ज्यादा रोजगार मुहैया कराने की दरकार है. इसमें यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कुशल कामगारों की संख्या बढ़ाकर ही मांग को बढ़ाया जा सकता है, ताकि खर्च और बचत का खाता बढ़े. रोजगार और बचत का सीधा संबंध है. अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अध्ययन भी इसे रेखांकित करते हैं. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार की हलचलों तथा नीतियों और रूझानों की अनिश्चितता को देखते हुए संबद्ध कारकों पर ध्यान देकर गिरती बचत दरों को ऊपर ले जाना होगा.
यदि ऐसा नहीं हुआ, तो विदेशी कर्ज पर हमारी निर्भरता बढ़ेगी, ताकि निवेश का स्तर घरेलू बचत दर से अधिक बना रहे. निश्चित ही हमारी आर्थिकी के लिए वह एक आदर्श स्थिति नहीं होगी. इसलिए कौशल से संपन्न श्रमशक्ति तैयार करना तथा शिक्षा में निवेश बढ़ाने की दिशा में ठोस पहलकदमी होनी चाहिए. आर्थिक प्रबंधन और सुधार प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की बड़ी आवश्यकता भी है.