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अमेरिका समझे भारत का पक्ष

शशांक पूर्व विदेश सचिव delhi@prabhatkhabar.in हमारे विदेश सचिव विजय गोखले अमेरिका गये हुए हैं और वहां के विदेश मंत्री माइक पांपियो से बातचीत हुई है. यह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात है. मुझे लगता है अमेरिका ने अपना स्तर बढ़ाकर हमारे विदेश सचिव से बात की है. दोनों देशों की तरफ से साफ तौर […]

शशांक
पूर्व विदेश सचिव
delhi@prabhatkhabar.in
हमारे विदेश सचिव विजय गोखले अमेरिका गये हुए हैं और वहां के विदेश मंत्री माइक पांपियो से बातचीत हुई है. यह भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात है. मुझे लगता है अमेरिका ने अपना स्तर बढ़ाकर हमारे विदेश सचिव से बात की है.
दोनों देशों की तरफ से साफ तौर पर कह दिया गया है कि पाकिस्तान अपने यहां के आतंकवादियों को जड़ से खत्म करे. यह केवल पाकिस्तान को सलाह नहीं है, बल्कि पाकिस्तान को सावधान हो जाने का संदेश भी है कि वह भारत-अमेरिका के संदेश व वर्तमान स्थितियों को सरलता से न ले. यह बहुत बड़ी बात है.
दूसरी बात यह है कि भारत पाकिस्तान के अंदर घुसकर बालाकोट व अन्य जगहों पर एयर स्ट्राइक कर चुका है, भले पाकिस्तान कह रहा है कि कुछ नहीं हुआ, लेकिन चश्मदीद गवाहों के बयान और भारत अपना पक्ष स्पष्ट कहता है कि एयर स्ट्राइक हुई है और खासी सफल स्ट्राइक हुई है, जिससे पाकिस्तान और उसके अंदर के जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के सरगनाओं को चेतावनी गयी है कि भारत उन्हें छोड़नेवाला नहीं है.
अब अमेरिका के साथ निकले संयुक्त बयान ने भी पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया है कि उसका समय आ गया है कि आज तक उसने जिन आतंकी तत्वों को पैदा किया है, पनाह दी है, फंडिंग दी है, उन्हें खत्म करने का समय आ गया है.
चीन की तरफ से भी अब उम्मीद बंध गयी है कि सुरक्षा परिषद् में जब जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद मजहर का मसला उठाया जायेगा, तब चीन अपना रवैया बदलकर रखेगा. चीन खुद भी आतंकवादियों से पीड़ित है और उसने कई संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर आतंकियों को जेल में डाल रखा है. जेल में पड़े ऐसे तत्वों की संख्या करीब 10 लाख है.
पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन पाकिस्तान में ही ट्रेनिंग चलाते हैं, मिल-जुल कर रहते हैं. चीन ने पाकिस्तान को कह दिया है कि यह दोहरा रवैया नहीं चलेगा. इसलिए, इस बार सुरक्षा परिषद् में जब भारत की मदद के लिए मसला उठाया जायेगा, तो वह रोड़ा नहीं अटकायेगा. अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने मिलकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है.
अमेरिका दक्षिण एशियाई इलाकों से आतंकवाद को खत्म करवाना चाहता है, क्योंकि वह पहली प्राथमिकता के तौर पर अब अपनी फौज को अफगानिस्तान व मिडिल ईस्ट से वापस बुलाना चाहता है. लेकिन, वह ऐसी स्थिति में नहीं इलाका छोड़ना चाहता कि आतंकवादी संगठन, पाकिस्तान की मदद से अफगानिस्तान पर पूरा-का-पूरा नियंत्रण स्थापित कर लें.
अमेरिका इसीलिए चिंतित है. अतीत में पाकिस्तान जिस तरह का रवैया अपनाता रहा है और चीन उसकी मदद करता रहा है, उसी को देखते हुए ही भारत के साथ खड़े होकर अमेरिका ने पाकिस्तान को चेतावनी देने की जरूरत महसूस की है.
जहां तक व्यापार की बात है, भारत और अमेरिका के बीच मतभेद का स्तर वह नहीं है, जो अमेरिका और चीन के बीच मतभेद का है.
अमेरिका चाहता है कि भारत ई-रिटेल और क्रेडिट कार्ड कंपनियों पर भारतीय लोगों के डेटा को भारत के भीतर ही रखने की शर्त न लगाये और टैक्स भी न लगाये. इस तरह की चेतावनी अमेरिका ने भारत को दी है. भारत का कहना है कि पिछले तीन सालों में अमेरिका के बैलेंस ऑफ ट्रेड, जो भारत के फेवर में था उसमें कमी आयी है.
इस संदर्भ में भी विदेश सचिव ने बातचीत की है. अमेरिका ने इतने देशों को जीएसपी सुविधा दे रखी है, पाकिस्तान को तो जीएसपी (जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज) प्लस सुविधा दे रखी है, जबकि पाकिस्तान दोहरा नीति वाला देश रहा है. एक तरफ अमेरिका भारत के साथ आतंकवाद के ऊपर बात करना चाहता है, दूसरी तरफ भारत पर ऐसी कार्रवाई कर रहा है, और टैरिफ लगाना चाहता है.
भारत की जिस ड्यूटी से वह खफा बताता है, वह हैंडीक्राफ्ट से जुड़े गरीब लोगों को राहत देने के लिए रहा है, मिडिल क्लास की राहत के लिए रहा है. दूसरी तरफ, अमेरिका को यह समझना चाहिए कि भारत में ड्यूटी टैक्स का बड़ा कारण देश में औद्योगीकरण की स्थिति का कमजोर होना है, जिसे मजबूत करने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं.
तकनीकी स्तर पर बात करें, तो विदेश सचिव विजय गोखले उच्चतम स्तर के अधिकारी हैं. इससे ऊपर केवल राजनीतिक स्तर के लोगों का ही पद होता है. जितने भी तरह के मसले हैं, चाहे रणनीतिक साझेदारी से लेकर व्यापार का मसला हो, विदेश सचिव अमेरिका को समझा पाने में सफल रहेंगे. भारत का रवैया बहुत बदला है.
रूस से हथियार की खरीद भी हमने लगभग आधी कर ली है, ऐसे कई मसले हैं. एक दिन में सब कुछ ठीक नहीं हो जाता है. चुनाव भी नजदीक है. भारत को जिन संसाधनों की जरूरत लगती है, वह खरीद रहा है. यह सब अमेरिका को समझना होगा. जैसे, ईरान से तेल खरीदना हमारे लिए बहुत जरूरी है, वह हमारा दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है.
फिर भी हमने उसके साथ व्यापार बहुत कम कर लिया है. जबकि, अफगानिस्तान को स्थिर करने के लिए भारत ने अफगान-ईरान के साथ समझौता किया है. और यह अमेरिका की प्राथमिकता भी रही है. इसलिए, उसे भारत का पक्ष भी समझना चाहिए.
(बातचीत : देवेश)

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