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सैन्य कार्रवाई की नयी लक्ष्मण रेखा

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in विंग कमांडर अभिनंदन की सकुशल वापसी से पूरा देश प्रसन्न है. होना भी चाहिए. अभिनंदन ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराया था, लेकिन इस संघर्ष में उनका मिग-21 विमान भी गिर गया और वह पाकिस्तान […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
विंग कमांडर अभिनंदन की सकुशल वापसी से पूरा देश प्रसन्न है. होना भी चाहिए. अभिनंदन ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए भारतीय सीमा में घुसे पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराया था, लेकिन इस संघर्ष में उनका मिग-21 विमान भी गिर गया और वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जा पहुंचे.
पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया, लेकिन भारतीय व अंतरराष्ट्रीय दबाव काम आया और आखिरकार वह रिहा हो गये. जांबाज सैनिक की वापसी को पाकिस्तान ने काफी उलझाये रखा. ऐसी सूचनाएं हैं कि पाकिस्तानी सेना के कुछ जनरल और आइएसआइ के कुछ अफसर अभिनंदन की रिहाई को लेकर नाखुश थे. आखिरी वक्त तक वे अड़चने खड़ी करते रहे. दबाव देकर अभिनंदन से एक वीडियो भी रिकाॅर्ड करवाया गया और रिहाई से ठीक पहले उसे पाकिस्तानी मीडिया को रिलीज कर दिया गया. इस संघर्ष में पाकिस्तान का एक एफ-16 विमान अभिनंदन ने मार गिराया था, लेकिन पाकिस्तान ने इसे अभी तक स्वीकार नहीं किया है. पाकिस्तानी विमान एफ-16 के पायलट को भीड़ ने भारतीय समझ कर पीट-पीट कर मार डाला. सूचना क्रांति के इस युग में कुछ भी छुपा नहीं है.
जो एफ-16 विमान मार गिराया गया, वह पाक वायुसेना की 19वीं स्क्वाड्रन का पायलट शहजाजुद्दीन उड़ा रहा था. भारतीय सेना की यह परंपरा रही है कि वह अपने शहीद सैनिकों के नाम कभी नहीं छुपाती, दूसरी ओर पाकिस्तान हमेशा अपने सैनिकों की मौत की बात छुपाता है. अगर आपको याद हो, करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना के जो भी जवान शहीद होते थे, पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार होता था, लेकिन पाकिस्तान सेना अपने सैनिकों की मौत की बात कभी नहीं कबूलती थी और दबे-छुपे तरीके से उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता था.
भारत पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की लगातार कोशिशें करता आया है, लेकिन कभी कामयाब नहीं मिली. कभी मुंबई में हमला हुआ, तो कभी उड़ी, पठानकोट और पुलवामा में सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अब भी वही पुराना राग अलाप रहे हैं कि भारत सबूत दे कि हमले में पाकिस्तानी संगठन शामिल हैं, तो कार्रवाई करेंगे, जबकि हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन जैशे मोहम्मद ने ली है. जैशे मोहम्मद पाकिस्तान स्थित इस्लामिक आतंकवादी संगठन है. इसके सरगना मसूद अजहर का ठिकाना पाकिस्तान ही है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी स्वीकार कर रहे हैं कि मसूद पाकिस्तान में है. कह रहे हैं कि वह बीमार है, उसका इलाज चल रहा है. इस बार आत्मघाती हमलावर का वीडियो सबसे बड़ा सबूत है, जिसमें वह खुद कह रहा है कि वह जैशे मोहम्मद से जुड़ा हुआ है.
हमले के बाद पाकिस्तान में जैशे मोहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी सार्वजनिक रूप से स्वीकार की थी. इसके बाद भी पाकिस्तान को किन सबूतों की जरूरत है, यह समझ से परे है. मुंबई, पठानकोट और उड़ी सबके सबूत दिये गये हैं, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की. जैशे मोहम्मद और लश्करे तैबा के आतंकवादी वहां खुलेआम घूमते हैं. मैंने पहले भी लिखा है कि पाकिस्तान के पीएम इमरान खान सेना के मुखौटा भर हैं. वह सेना की नीतियों से इधर-उधर जाने की सोच भी नहीं सकते. पाकिस्तानी सेना के सहयोग से ही आतंकवादी संगठन फलते-फूलते हैं और वह उन्हें नियंत्रित करती है. सेना ही उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ करती है.
शांति की किसी भी पहल को वह कामयाब नहीं होने देती. दिलचस्प तो यह है कि पाकिस्तान अब इमरान खान को शांति दूत के रूप में पेश कर रहा है. वहां की संसद में सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने प्रस्ताव पेश किया है कि इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाए, जबकि पाकिस्तान में शांति की बात करने वाले राजनेता ज्यादा दिन नहीं चलते हैं.
दरअसल, 1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने के बाद भारत में मानस बन गया था कि पाक अध्याय अब हमेशा के लिए समाप्त हो गया है. दूसरी ओर, पाकिस्तानी सेना ने मान लिया था कि भारत को पारंपरिक युद्ध में हराना संभव नहीं है और उन्होंने आतंकवादियों का सहारा लेना प्रारंभ कर दिया. 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद तो भारत ने पारंपरिक युद्ध के विकल्प पर विचार करना ही छोड़ दिया और सेना के आधुनिकीकरण का काम लगभग बंद कर दिया. रही-सही कसर रक्षा खरीद में घोटालों के सामने आने के बाद पूरी हो गयी.
दूसरी ओर परमाणु हथियारों को लेकर पाकिस्तान ने खौफ का ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि हम उसके झांसे में आ गये. मौजूदा संघर्ष को देखें, तो अभिनंदन तीन दशक से अधिक पुराने मिग-21 विमान से पाकिस्तान के एफ-16 विमान का मुकाबला कर रहे थे, जिसे संग्रहालय में रख दिया जाना चाहिए था. सैन्य साजोसमान की खरीद की प्रक्रिया शुरू हुई है, तो राफेल विमान पर जम कर राजनीति हो रही है, उसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है.
इस संघर्ष के दौरान कई नयी बातें सामने आयीं. एक संघर्ष भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध मैदान में हुआ. दूसरा भारत और पाकिस्तान के टीवी स्टूडियो और सोशल मीडिया में लड़ा जा रहा है. इस हो-हल्ले में भारतीय कार्रवाई का पूरा विश्लेषण नहीं हो पाया है. पुलवामा हमले के बाद के घटनाक्रम ने भारत और पाकिस्तान संघर्ष की नयी लक्ष्मण रेखा खीच दी है. पुलवामा आतंकी हमले के जवाब में भारतीय वायु सेना ने जैशे मोहम्मद के जिस कैंप को निशाना बनाया वह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के बालाकोट में स्थित है. पहले इस बात को लेकर भ्रम था कि हमला पुंछ के नजदीक बालाकोट पर हुआ है या फिर खैबर पख्तूनख्वाह प्रांत के बालाकोट में, लेकिन जल्द ही यह बात साफ हो गयी. यह बालाकोट पाकिस्तान के मानशेरा जिले का हिस्सा है. भारतीय लड़ाकू विमान वहां कार्रवाई कर सकुशल वापस आ गये और पाकिस्तानी वायु सेना सोती रही.
उड़ी के हमले के बाद भारतीय सेना ने सीमा के नजदीक के आतंकी शिवरों को निशाना बनाया था. इसके आगे सेना नहीं बढ़ी थी, लेकिन पहली बार यह लक्ष्मण रेखा पार की गयी है. इस विषय पर बहस हो सकती है कि कितने आतंकवादी मारे गये, लेकिन पाकिस्तान में कितने अंदर घुस कर कार्रवाई की जाए, इसकी जो लक्ष्मण रेखा भारत ने खींच रखी थी, वह इस बार तोड़ दी गयी. और यह जान लीजिए कि एक बार बंधा टूटा तो फिर बहाव को कोई नहीं रोक सकता है.
अब पाकिस्तान की ओर से किसी भी आतंकवादी घटना का जवाब भारत पाकिस्तान में आतंकी अड्डों को निशाना बना कर दे सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो लकीर खींच दी है, कोई भी भारतीय सरकार उससे पीछे नहीं हट पायेगी.

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