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चीन, चांद, कपास और जुगाड़

अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार anshurstg@gmail.com खबर छपी कि चीन ने चांद पर कपास उगायी है! निश्चित ही उगायी होगी. अरे, वो चीन है चीन. चांद पर कपास तो क्या मंगल पर चाऊमीन का ठेला तक लगवा सकता है. उसका मुकाबला भला क्या करना. सुना है, अभी हाल उसने अपना सूरज बनाकर टांगने की घोषणा भी की […]

अंशुमाली रस्तोगी
व्यंग्यकार
anshurstg@gmail.com
खबर छपी कि चीन ने चांद पर कपास उगायी है! निश्चित ही उगायी होगी. अरे, वो चीन है चीन. चांद पर कपास तो क्या मंगल पर चाऊमीन का ठेला तक लगवा सकता है. उसका मुकाबला भला क्या करना. सुना है, अभी हाल उसने अपना सूरज बनाकर टांगने की घोषणा भी की है. यानी, सूरज महाराज अब उसकी मर्जी से निकलेंगे और छिपेंगे!
चीन के मुकाबले जब मैं अपने मुल्क को देखता हूं, तो चीन की कथित सफलताएं मुझे ‘तुच्छ-सी’ जान पड़ती हैं. इसे रत्तीभर मजाक न समझें, बिल्कुल सत्य कह रहा हूं.…
चीन ने चांद पर कपास उगा कोई ऊंचा तीर तो मार नहीं लिया, हम तो गंजी चांद (खोपड़ी) पर बाल से लेकर कोल्डड्रिंक की खाली बोतल में धनिया उगा डालते हैं. इतना ही नहीं, अपनी पर आ जायें, तो चोरी के मोबाइल के सारे पार्ट्स को खोलकर उसकी कीमत से ज्यादा दाम पर बेचकर तक दिखा सकते हैं. जो हमारे मुल्क के अक्लमंद मैकेनिक कर देते हैं, उस स्तर तक तो चीन के वैज्ञानिक सोच भी नहीं सकते.
अक्सर जब मैं लोगों को चीन की तारीफ करते पाता हूं, तो मेरे तन और बदन में भीषण आग-सी लग जाती है. बताइये, अपने मुल्क में रहकर किसी पराये मुल्क की तारीफ भला कौन ‘देशभक्त’ सहन कर लेगा!
माना कि चीन कुछ बातों में हमसे थोड़ा-सा आगे है, तो क्या हम उसको अपना ‘खुदा’ मान लेंगे. न कतई न. मैं यह बात दावे के साथ कह-लिख सकता हूं कि जिस स्तर और हद तक ‘बकलोली और जुगाड़बाजी’ हमारे मुल्क के बाशिंदे कर सकते हैं, चीन उसका पासंग भर नहीं.
अरे, चीन के तो वैज्ञानिकों ने चांद पर कपास उगायी. हमारे यहां के आम बंदे तो सिर्फ बकलोली और जुगाड़ के बल पर चांद तो क्या शनि-बृहस्पति ग्रह पर भिंडी, टिंडे, तोरी, मूली और भी जाने क्या-क्या उगा डालते.
चीन को शायद मालूम नहीं कि जुगाड़ बैठाने की तरकीब में हम हिंदुस्तानियों का जवाब नहीं. बिन एग्जाम दिये पास होने की जुगाड़ से लेकर खराब टायर का गमला बनाने तक का हुनर सिर्फ हमारे ही पास है. पान, चाय और हेयरकटिंग की दुकान पर जिस सामाजिक और राजनीतिक बातों की चाशनी पकती है, उसका मुकाबला चीन क्या अमेरिका भी नहीं कर सकता.
अपने मुल्क का हर बंदा छोटा-मोटा इंजीनियर और वैज्ञानिक है! भले ही चीन में सबसे तेज ट्रेनें दौड़ती हों, मगर हमारे यहां के लोगों को तो अच्छी-खासी स्पीड पकड़ी ट्रेन को दौड़कर पकड़ने में महारत हासिल है. जरा चलने दीजिये बुलेट ट्रेन को यहां, फिर करके दिखाते हैं उससे मुकाबला.
केवल चांद पर कपास उगा लेने या अपना सूरज टांग लेने से कुछ न होता शीरीमानजी. बात तो तब है, जब चांद, सूरज, सितारे, ग्रह आदि को तंत्र-मंत्र से अपने ‘बस’ में किया जाये.
कुछ मामलों में चीन को हमसे सीखने की जरूरत है, ना कि हमें उससे. वह दम लगाकर ‘अच्छे दिन’ लाने की फिराक में रहता है, हम जुमलों में ही अच्छे दिन ले आये हैं.

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