बीते तीन दशकों में हमारे देश में उदारीकरण की प्रक्रिया को व्यापक और सुगम बनाने में सूचना तकनीक का प्रमुख योगदान रहा है. अगले साल तक इस उद्योग का आकार 250 अरब डॉलर होने की संभावना है.
हाल तक इसका प्रसार सॉफ्टवेयर विकास और सेवाओं के लिए बुनियादी तकनीक उपलब्ध कराने तक सीमित था. इसी कारण हमारे सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में डिजिटल तकनीक का हिस्सा मात्र चार प्रतिशत ही है. लेकिन, हर क्षेत्र में आधुनिक डिजिटल तकनीक के उपयोग से अर्थव्यवस्था को बड़ी ऊंचाई देने की संभावना है. इससे आर्थिक तंत्र में खर्च को कमी करने के साथ क्षमता और सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है. सरकार, उद्योग जगत और उद्यमी इन संभावनाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए प्रयासरत हैं.
माइक्रोसॉफ्ट और आइडीसी एशिया-पैसिफिक की साझा रिपोर्ट का आकलन है कि यह डिजिटल बदलाव साल 2021 तक भारत की जीडीपी में 154 अरब डॉलर का योगदान कर सकता है. आगामी चार वर्षों में जीडीपी में सीधे या बतौर सहायक इसकी हिस्सेदारी 50 से 60 फीसदी तक हो सकती है. मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिसिस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ऑटोमेशन जैसे डिजिटल नवोन्मेषों का लगातार प्रयोग बढ़ रहा है.
पिछले चार-पांच वर्षों में स्मार्ट फोन, तेज इंटरनेट, ब्रॉडबैंड, करोड़ों नये बैंक खाते, लाभुकों के खाते में सीधा भुगतान, आधार, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, डिजिटल लेन-देन, स्टार्ट अप, सेवाओं की बेहतरी जैसे कारकों ने देश की बड़ी आबादी के लिए समावेशी आर्थिक माहौल पैदा किया है. निर्धन और निम्न आय वर्ग के लोगों से लेकर छोटे एवं मध्यम स्तर के उद्यमी तक डिजिटल प्रसार का लाभ उठा रहे हैं.
अवसर, संसाधन, तकनीक, सेवा और सुविधा तक नागरिकों की असमान पहुंच हमेशा से हमारे सर्वांगीण विकास की राह में एक बड़ा अवरोध रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने समुचित रोजगार, सही वेतन-भत्ते, सस्ती स्वास्थ्य सेवा की सुलभता तथा आवश्यक ऋण की उपलब्धता की समस्याएं हैं. डिजिटल तकनीक इस अवरोध को उत्तरोत्तर पाट रही है.
तकनीकी प्रसार के साथ आर्थिक विकास के आधार पर भारत समृद्धि की राह पर अग्रसर है, परंतु वर्तमान गति से संतुष्ट हो जाना उचित नहीं होगा. राष्ट्रीय जीवन में तकनीकी बेहतरी के साथ नवोन्मेष और दूरदृष्टि का भी तालमेल आवश्यक है. सूचना क्रांति में वैश्विक स्तर पर भारत का शानदार योगदान रहा है.
डिजिटल तकनीक के मौजूदा विकास में भी इस भूमिका को सुनिश्चित करने के प्रयास जारी रहने चाहिए. नयी तकनीक के साथ आनेवाली चुनौतियों, जैसे- ऑटोमेशन से बेरोजगारी बढ़ने, डेटा सुरक्षा के खतरे, एकतरफा विकास के कारण आर्थिक और सामाजिक वंचना गंभीर होने तथा बदलते माहौल में सांस्कृतिक असंतुलन आदि- पर भी ध्यान रखा जाना चहिए.