रमेश ठाकुर
वरिष्ठ पत्रकार
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आज राष्ट्रीय मतदाता दिवस है. सात साल पहले इस दिवस की शुरुआत चुनावी समर को बरकरार रखने के मकसद से की गयी थी, लेकिन मतदाताओं की लगातार बढ़ती चुनावों के प्रति उदासीनता को देखते हुए मतदाता दिवस महज रस्म अदायगी तक सीमित न रहे.
लोकतंत्र की जड़ों को जीवंत रखने के लिए देश के प्रत्येक अधिकृत मतदाता को अपने मत का इस्तेमाल करना चाहिए. पर, विगत कुछ वर्षों से भारतीय मतदाताओं का वोटिंग के प्रति रुझान कम हुआ है.
इसके लिए चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से खूब कोशिशें की, लेकिन असर खास नहीं हुआ. देश के वोटरों के प्रति जननेताओं के लिए आक्रोश लगातार बढ़ रहा है. यही वजह है कि चुनाव के वक्त वोटर पोलिंग बूथ पर मतदान करने तो जाते हैं, पर वे ‘नोटा’ दबा कर अपने गुस्से का इजहार करने लगे हैं. यह तस्वीर हमें हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में देखने को मिली.
यह चिंता का विषय है कि देश के मतदाताओं का वास्तविक मतदान की तरफ कम और नोटा की ओर रुझान ज्यादा बढ़ रहा है. बीते दिनों पांच राज्यों में हिंदी पट्टी के तीन राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में वोटरों ने उम्मीद से ज्यादा नोटा का इस्तेमाल किया. आंकड़ों के मुताबिक नोटा का यह वोट हार-जीत के बिल्कुल करीब रहा. चुनाव आयोग और सियासी दलों को इस मसले पर गहन मंथन करने की आवश्यकता है.
चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ और वैज्ञानिक बनाने तथा वोटरों को भयमुक्त कर देना ही पर्याप्त नहीं है. असल चुनौती है आम आदमी की उदासीनता को तोड़ना. वोटरों की चुनावों के दिन उदासीनता को देखते हुए आज सात साल पहले यानी 25 जनवरी, 2011 को भारत की पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने ‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस’ का श्रीगणेश इस उद्देश्य से किया था कि इस दिवस के जरिये लोगों को जागरूक किया जा सकेगा. लेकिन, स्थिति सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ती जा रही है.
चुनाव संविधान के अनुच्छेद 326 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 19 के अनुसार मतदाता के रजिस्ट्रीकरण के लिए न्यूनतम आयु 18 साल मानी गयी है.
लेकिन, इस वक्त लाखों युवा ऐसे हैं, जिन्होंने अपने नाम का पंजीकरण भी नहीं कराया है. हालांकि, वोटरों को वोट नहीं देना और वोटर लिस्ट में नाम दर्ज नहीं कराना, किसी समस्या का हल नहीं हो सकता. इसके लिए मतदाताओं को मजबूती से अपनी मांगों को अपने जनप्रतिनिधियों के समक्ष रखनी चाहिए. सुनवाई नहीं होने पर संवैधानिक संस्थाओं की तरफ कूच करना चाहिए.
लेकिन, मतदान करने से बचना, समझदारी का काम नहीं कहा जा सकता. इसलिए सवाल यह है कि हमें राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाने की जरूरत क्यों आन पड़ी? इवीएम मशीन से धांधली की खबरें भी मतदाताओं के मनोबल को कम करती हैं. हाल ही में जिस तरह से हैकिंग की खबरें बाहर आयी हैं, उससे स्थिति और खराब हो गयी है.