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राष्ट्रीय एकता पर सवाल
यह विडंबना ही है कि जिस गुजरात के सरदार पटेल ने आजादी के पश्चात लगभग 600 देसी रियासतों का भारतीय गणराज्य में विलय कर राष्ट्रीय एकता को एक नया मुकाम दिया था, आज उसी लौह पुरुष की जन्मस्थली से बिहारी भाइयों को निजी राजनीतिक स्वार्थ के तहत भगाया जा रहा है. वो भी तब जब […]
यह विडंबना ही है कि जिस गुजरात के सरदार पटेल ने आजादी के पश्चात लगभग 600 देसी रियासतों का भारतीय गणराज्य में विलय कर राष्ट्रीय एकता को एक नया मुकाम दिया था, आज उसी लौह पुरुष की जन्मस्थली से बिहारी भाइयों को निजी राजनीतिक स्वार्थ के तहत भगाया जा रहा है. वो भी तब जब उसी राज्य में अनेक बिहारी अफसर बतौर मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक व अन्य महती पदों पर अपनी सेवा दे रहे हैं.
अपनी राजनीतिक लिप्सा हेतु सिर्फ परप्रांतीय होने को वजह मानकर, किसी को यूं बाहरी भीतरी का ताना दे बेघर करना, इस ऐतिहासिक गणराज्य की राष्ट्रीय एकता व संवैधानिक संप्रभुता को खंडित करने का कुत्सित प्रयास है. एक ओर जहां हम एक नये व बेहतर भारत की कल्पना करते हैं, वहीं चंद लोगों के गलत कार्यों के कारण सबों से हिंसक सलूक व अमानवीय व्यवहार करना, राष्ट्रीय एकीकरण के विषय पर हमारे सोच व योगदान पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है.
मनोज पांडेय बाबा, चंदनक्यारी, बोकारो
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