कारोबारी सुगमता के हिसाब से देशों का दर्जा तय करनेवाली विश्व बैंक की रिपोर्ट में इस साल भारत ने लंबी छलांग लगायी. ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट में कारोबारी सुगमता के लिहाज से शीर्ष के 100 देशों में शामिल होने के बाद उम्मीद बंधी कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अब पहले की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ेगा. लेकिन, एफडीआई के नये आंकड़े इस आशा के धूमिल होने के संकेत करते हैं.
साल 2016-17 की तुलना में 2017-18 में एफडीआई की बढ़वार की दर तीन गुना घट गयी है. औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के नये आंकड़ों के मुताबिक, देश में एफडीआई के बढ़ने की दर 2017-18 में मात्र तीन प्रतिशत रही और कुल 44.85 अरब डॉलर का निवेश हुआ. यह पिछले पांच सालों में एफडीआई की सबसे कम वृद्धि है. साल 2016-17 में एफडीआई की वृद्धि दर 8.67 प्रतिशत रही थी. विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने कारोबार को सुगम बनाने के लिहाज से बेशक संजीदगी से कदम उठाये हैं, लेकिन उपभोक्ता और खुदरा क्षेत्र की वैश्विक कंपनियां अब भी भारत में निवेश का फैसला लेने में संकोच कर रही हैं.
सबसे ज्यादा विदेशी निवेश सेवा क्षेत्र (6.7 अरब डॉलर) में आया है. एफडीआई के मामले में कंप्यूटर साॅफ्टवेयर और हार्डवेयर, दूरसंचार, ट्रेडिंग, कंस्ट्रक्शन, ऑटोमोबाइल और ऊर्जा क्षेत्र का नंबर इसके बाद आता है.
महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिहाज से देखें, तो ऊर्जा तथा निर्माण क्षेत्र में एफडीआई की बढ़वार बहुत जरूरी है, क्योंकि वांछित आर्थिक वृद्धि दर को बनाये रखने के लिए अगले कुछ सालों तक बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की जरूरत होगी. यह भी देखना होगा कि भारत में एफडीआई में रुचि दिखानेवाले देशों की संख्या और उनके निवेश की मात्रा बढ़े. भारत में एफडीआई करनेवाले देशों में फिलहाल मॉरिशस (15.94 अरब डॉलर) तथा सिंगापुर (12.18 अरब डॉलर) सबसे आगे हैं.
इसके बाद नीदरलैंड, अमेरिका और जापान का नंबर है, जिनमें किसी का भी भारत में निवेश तीन अरब डॉलर से ज्यादा नहीं. पिछले दशक के शुरुआती पांच सालों में भारत का ओडीआई संसाधन समृद्ध ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में होता था, जबकि बाद के सालों में करों पर ज्यादा छूट पाने की नीयत से भारत का ओडीआई मॉरिशस, सिंगापुर, ब्रिटिश वर्जिन आयलैंड तथा नीदरलैंड जैसे देशों में होने लगा.
विशेषज्ञों को संदेह है कि सिंगापुर और मॉरिशस से आनेवाला एफडीआई दरअसल भारतीय पूंजी पर दोतरफा टैक्स लाभ कमाने का बहाना हो सकता है. एफडीआई में कमी आने से एक सीमा के बाद देश के सामने भुगतान-संतुलन के मोर्चे पर कठिनाई खड़ी हो सकती है और इसका असर रुपये की कीमत पर भी पड़ सकता है.
सो, समाधान के तौर पर कारोबारी सहूलियत की कोशिशों को आगे और बढ़ाना होगा, ताकि विदेशी निवेशकों के बीच खुदरा क्षेत्र के साथ-साथ ऊर्जा और निर्माण के क्षेत्र में निवेश के लिए उत्साह बढ़े.