II मिथिलेश कु राय II
युवा रचनाकार
परसों की बात है. कक्का हठात बोलने लगे कि अबकी आम आम ही रहेंगे, खास न हो पायेंगे. वह बता रहे थे कि कोई चाहे किसी ओर भी निकले, बौर से लदे आम के वृक्ष अपनी ओर ध्यान खींच लेते हैं. कई सालों के बाद ऐसा नजारा दिख रहा है कि सभी वृक्ष बौर से लद गये हैं.
कक्का ने बताया कि जरा देखो तो, बौर आने की खुशी में वृक्ष कैसे अपने पत्ते तक को भूले हुए हैं. उन्हें सिर्फ यही याद है कि यह समय उनमें बौर आने का है. अबकी इस तरह से बौर आये हैं कि सिर्फ बौर का ही नजारा है, आंखों के सामने, पत्ते बौर की ओट में जैसे छिप-से गये हैं!
कक्का आह्लादित थे. कह रहे थे कि दोपहर की धूप जैसे ही खत्म होती है और पुरवइया या पछिया अपनी मंथर गति में आती है, मंजर से एक गमक निकलने लगती है. शाम की शीतलता में इस गमक को सारे लोग महसूस करते हैं और एक दिव्य आनंद से सराबोर हो जाते हैं.
कक्का बता रहे थे कि बौर दरअसल, आम के फूल होते हैं. गौर से देखो तो, इन फूलों के कारण वातावरण में क्या खूबसूरत नजारा बन गया है! कक्का की मानूं, तो एक वृक्ष के बौर से दूसरे वृक्ष के बौर में एक महीन अंतर भी होता है.
जितने तरह के आम, उतने तरह के बौर. किसी बौर का रंग एकदम पीला होता है, तो किसी का पीले में कुछ-कुछ लाल. कक्का ने बताया कि किसी-किसी बौर के गुच्छे की लंबाई देखो तो हैरत होती है. एक-एक हाथ के लगभग. लेकिन कोई अपना सामान्य कद-काठी के साथ ही हवा में झूल रहा है. फिर कक्का मुस्कुराते हुए बताने लगे कि गांव की अपनी कुछ खासियत होती है. यहां हरेक परिवार के पास कुछ वृक्ष होते हैं. वृक्षों में भी आम के वृक्ष यहां बड़े प्रसिद्ध हैं.
देख लो, सबके पास एक से अधिक आम के वृक्ष हैं. फागुन आते ही लोग अपने-अपने वृक्षों को निहारने लगते हैं कि अबकी बौर निकलने के क्या आसार हैं. कक्का ने बताया कि आम के वृक्ष फागुन में कुछ हरकत करते हैं, जिससे लोगों को पता चल जाता है कि इस बार बौर आयेंगे कि नहीं. फल की उम्मीद में लोग फरवरी से ही अपने वृक्षों की सुधि लेने लगते हैं. वे उनकी जड़ों के पास सफाई करते हैं, मिट्टी डालते हैं और क्यारी बनाकर नियमित पानी देने लगते हैं.
कक्का बता रहे थे कि आम के मौसम में आमजन फल को लेकर बड़े सजग हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि यही एक ऐसा फल है, जिसे साल में एक बार सबको जीभर खाने को मिलता है.
कक्का का यह मतलब था कि जो लोग बीमार पड़ने के बाद डॉक्टर के कहने पर बड़े मोल-तौल करके कभी किलो-आधा किलो सेब, अंगूर या अन्य फल खरीदने का साहस जुटा पाते हैं, उन लोगों को भी गर्मी के आते ही आम से बड़ी उम्मीदें बंध जाती हैं. कक्का कह रहा थे कि अगर आम फलों का राजा है, तो एक राजा को ऐसा ही होना चाहिए कि वे कम-से-कम साल में एक बार खास से लेकर आम तक पहुंचे और उन्हें अपने होने का एहसास दिलाये.
