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मोदी : एक समाज सुधारक

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया कुछ दिन पहले ही भारत की यात्रा पर आये इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा, ‘आप एक क्रांतिकारी नेता हैं और आप भारत में क्रांति ला रहे हैं. आप इस शानदार देश को भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं.’ नेतन्याहू के ऐसा कहने […]

आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक,
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
कुछ दिन पहले ही भारत की यात्रा पर आये इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा, ‘आप एक क्रांतिकारी नेता हैं और आप भारत में क्रांति ला रहे हैं. आप इस शानदार देश को भविष्य के लिए तैयार कर रहे हैं.’ नेतन्याहू के ऐसा कहने का क्या अर्थ हो सकता है? मेरे शब्दकोश में क्रांति की ऐसी व्याख्या है, ‘पूर्ण या नाटकीय परिवर्तनों को शामिल करना या उसे पैदा करना.’ आमतौर पर इस परिवर्तन में क्रांतिकारी का प्रयास स्थापित नियमों के विरुद्ध, विशेष रूप से राज्य के खिलाफ, एक तरह का विद्रोह करने का होता है.
चूंकि नेतन्याहू भारत को शानदार कह रहे हैं (यह जानना दिलचस्प होगा कि वे ऐसा क्यों सोच रहे हैं), ऐसे में यह मानना सही रहेगा कि वे मोदी द्वारा स्थापित व्यवस्था को तोड़ने के प्रयासों का जिक्र नहीं कर रहे हैं. तो आखिर वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. मुझे वास्तव में इसके बारे में पता नहीं है और मैं अटकलें लगाना नहीं चाहता. एक पल के लिए इस बात को अलग भी कर दिया जाये कि नेतन्याहू यहां एक ऐसे ग्राहक को हथियार बेचने आये हैं, जो खुशामद से प्रभावित हो सकता है.
हालांकि, एक तरह से यह सही है कि नरेंद्र मोदी स्थापित व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं. यह कैसा बदलाव है? मैं इसे सुधार कहूंगा, लेकिन उस तरह नहीं, जिस तरह आम तौर पर इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
आइए, मैं नरेंद्र मोदी की एक महत्वाकांक्षी पहल, स्वच्छ भारत अभियान का उदाहरण देकर इसे स्पष्ट करता हूं.पाठक याद करें कि किस तरह इसकी शुरुआत की गयी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने हाथ में झाड़ू लेकर सार्वजनिक स्थानों को खुद साफ किया और दूसरों को भी ऐसा करने को प्रोत्साहित किया और इसके बारे में ट्वीट भी किया. उनकी वेबसाइट ने स्वच्छ भारत अभियान के उद्देश्य की व्याख्या इस तरह की है, ‘2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर ‘स्वच्छ भारत’ उन्हें भारत की तरफ से दी जानेवाली सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि होगी. स्वच्छता के जन अभियान की अगुवाई करते हुए प्रधानमंत्री ने लोगों से महात्मा गांधी के स्वच्छ व स्वस्थ भारत के सपने को पूरा करने का आह्वान किया.’ प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन से खुद स्वच्छता अभियान की शुरुआत की. इसके लिए उन्होंने अपने हाथों में झाड़ू लेकर धूल साफ की, पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान को जन अभियान बनाया, प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों को न तो खुद कचरा फैलाना चाहिए, न ही दूसरों को ऐसा करने देना चाहिए. उन्होंने इसके लिए मंत्र दिया, ‘न गंदगी करेंगे, न करने देंगे.’
अपनी आरंभिक टिप्पणी में मोदी ने 21 बार साफ, स्वच्छता, कूड़ा और गंदगी शब्द का प्रयोग किया. यहां ‘शौचालय’ और ‘साफ-सफाई’ शब्द का प्रयोग केवल एक बार उस पंक्ति में किया गया, जब स्वच्छता के साथ-साथ उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में लोगों को संबाेधित किया. यहां उन्होंने कहा कि लगभग आधे भारतीय परिवारों को घर में सही तरीके से बने शौचालयों की कमी की वजह से बीमारी का सामना करना पड़ता है. यह लगभग एक पुरानी सोच है, शायद यह पूर्ववर्ती कार्यक्रम का विस्तार था और इसलिए मोदी के लिए अरुचिकर था.
कचरा देखने योग्य नहीं होता और सौंदर्य के लिहाज से यह परेशानी पैदा करता है. स्वच्छता की तरह यह एक राष्ट्रीय संकट नहीं है (दो वर्ष की आयु के 38 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं, उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता पूर्ण रूप से विकसित नहीं है). लेकिन, नरेंद्र मोदी का ध्यान और उनका संदेश कचरे पर केंद्रित था, क्योंकि वे भारतीय नागरिकों के चरित्र में बदलाव लाना चाह रहे थे, क्योंकि उन्हें लगा कि लोगों के व्यवहार को बदलने की जरूरत है, अंदरूनी तौर पर बदलाव लाने की. यह उसी तरह का सुधार है, जैसा आम तौर पर आध्यात्मिक और धार्मिक नेता करते हैं. लोकप्रिय राजनीति के क्षेत्र में ऐसा नहीं होता है.
कोई भी इस तरह के अलग कदम उठाये जाने, जैसे विमुद्रीकरण, को सामाजिक सुधार का ही एक रूप मान सकता है. भारतीयों को काला धन से मुक्ति दिलाना चाहिए और ऐसा करने के लिए उनके व्यवहार में बदलाव लाना और नकदी को उनसे दूर करना है. अंतत: यह प्रभावी होगा या नहीं, इससे लाखों लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा या नहीं, इस कड़े नीतिगत फैसले से वास्तव में लोग मरेंगे या नहीं, इसे लेकर सभी विशेषज्ञ बाद में शोर मचा सकते हैं.
इन सबकी परवाह किये बिना मोदी कदम उठाते हैं और इसलिए वे लोगों पर सही काम करने, या जो उन्हें लगता है कि यह सही है, के लिए दबाव डालेंगे. यह पिता तुल्य व्यक्तित्व का बदलाव है, जो कई मायनों में मोदी बन गये हैं.
हिंदी सिनेमा के निर्देशक मधुर भंडारकर ने हाल ही में इन्हीं मुद्दों के संदर्भ में एक आलेख लिखा (जब एक प्रधानमंत्री सामाजिक सुधारक बना). उस लेख में उन्होंने लिखा, ‘ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो यह दर्शाते हैं कि किस प्रकार हमारा समाज महत्वपूर्ण बदलावों से गुजर रहा है.
जनसमूह तक योग पहुंचाना, सरकारी गाड़ियों पर लाल बत्ती को प्रतिबंधित कर वीआइपी संस्कृति को खत्म करना, दिव्यांगों के लिए विशेष योजनाएं और उनके प्रति लोगों को संवेदनशील बनाना, राजपत्रित अधिकारी से प्रमाणपत्र को अभिप्रमाणित करने की औपचारिकता खत्म करना, लोगों को खाद बनाने के लिए प्रोत्साहित करना आदि जैसे पहल करना- ये भले ही छोटे कदम दिखायी देते हैं, लेकिन इसका असर बड़े पैमाने पर होगा.’
मैं जिन मुद्दों की बात करना चाहता हूं, ये वे मुद्दे नहीं हैं, जिन पर प्रधानमंत्री को ध्यान देना चाहिए. क्या यही सामाजिक बदलाव है, जो उन्होंने किया है. कई बार वे इसे स्वीकार करते हैं कि इन मुद्दों पर गलत या जल्दबाजी में कदम उठाया गया है. आज स्वच्छ भारत वेबसाइट, जिसमें एक शहरी केंद्रों के लिए है, में शौचालय और स्वच्छता नंबर सामने और बीच में लिखे हैं और कचरे के बारे में बहुत कम लिखा है.
नेतन्याहू द्वारा अपनी प्रशंसा के जवाब में मोदी ने कहा, ‘मेरे बारे में यह धारणा है कि मेरी भीतर धैर्य नहीं है और मुझे शीघ्र परिणाम चाहिए होता है, और आप भी ऐसा ही समझते हैं.’ हमें यह उम्मीद करनी चाहिए कि हमारे सुधारों के उनके प्रयास जारी रहें.

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