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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसा चाह रही थीं कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा में फूट पड़े और संगठन कमजोर हो, ठीक वैसा ही होना शुरू हो गया है. 29 अगस्त को जीजेएम के सहायक सचिव विनय तमांग के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने दार्जिलिंग में सीएम के साथ बैठक में भाग लिया. जीजेएम के […]

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसा चाह रही थीं कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा में फूट पड़े और संगठन कमजोर हो, ठीक वैसा ही होना शुरू हो गया है. 29 अगस्त को जीजेएम के सहायक सचिव विनय तमांग के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने दार्जिलिंग में सीएम के साथ बैठक में भाग लिया. जीजेएम के अध्यक्ष बिमल गुरुंग को लगा कि उन्हें दरकिनार करके यह फैसला लिया गया है. इसलिए उन्होंने तमांग समेत चार लोगों को संगठन से बाहर कर दिया.
यह तो तय लग रहा है कि गोरखालैंड मिलनेवाला नहीं है. ऐसे में जो थोड़ी-बहुत स्वायत्ता मिलने की आशा होगी, वह भी चौपट हो जायेगी. इस लिए जेजीएम नेताओं को चाहिए कि वे किसी राष्ट्रीय पार्टी के बहकावे में न आएं, क्योंकि जो कुछ भी मिलेगा, वह कोलकाता से ही मिलेगा, दिल्ली से नहीं.
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी

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